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समान अधिकार: वक्त बदला है तो रिवाज क्यों नहीं?

भारतीय परंपरा में विवाह का पवित्र रिश्ता सात जन्मों का अटूट बंधन माना जाता है। विवाह मंडप में सात फेरे लेने के बाद पति-पत्नी शादी के अटूट बंधन में बंध जाते हैं। शादी के दौरान जब वर वधू सात फेरे लेते...

समान अधिकार: वक्त बदला है तो रिवाज क्यों नहीं?
Pankaj Vijay लाइव हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीSat, 5 Oct 2019 01:51 PM
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भारतीय परंपरा में विवाह का पवित्र रिश्ता सात जन्मों का अटूट बंधन माना जाता है। विवाह मंडप में सात फेरे लेने के बाद पति-पत्नी शादी के अटूट बंधन में बंध जाते हैं। शादी के दौरान जब वर वधू सात फेरे लेते हैं तो हर फेरे के साथ एक वचन जुड़ा होता है। वचन स्वीकारने के बाद ही कन्या का हाथ वर के हाथों में सौंपा जाता है। अग्नि को साक्षी मानकर वर-वधू जीवनभर एक दूसरे का हर सुख-दुख में साथ निभाने का वचन देते हैं। लेकिन अगर असल जीवन की बात की जाएं तो क्या पति पत्नी के बीच ये सात फेरे काफी है? आज के चुनौती भरे दौर में वो सात फेरे कितने सार्थक साबित हो रहे हैं? अब बात बराबरी की होनी चाहिए। सवाल यह है कि जब वक्त बदला है तो रिवाज क्यों नहीं। आपका अपना अखबार 'हिन्दुस्तान' इस दिशा में एक खास पहल करने जा रहा है। इंतजार करिए 11 अक्टूबर का। विस्तार से जानने के लिए पढ़ते रहें livehindustan.com 

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