जांच के दौरान बिना अनुमति फिंगर प्रिंट लेना गैरकानूनी नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि जांच के दौरान पुलिस यदि फिंगर प्रिंट उठाती है और इसके लिए उसके पास मजिस्ट्रेट के आदेश नहीं हैं तो भी ये फिंगर प्रिंट अमान्य नहीं होंगे। ये फिंगर प्रिंट...
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि जांच के दौरान पुलिस यदि फिंगर प्रिंट उठाती है और इसके लिए उसके पास मजिस्ट्रेट के आदेश नहीं हैं तो भी ये फिंगर प्रिंट अमान्य नहीं होंगे। ये फिंगर प्रिंट कोर्ट में स्वीकार्य साक्ष्य होंगे।
कोर्ट ने यह आदेश हाईकोर्ट द्वारा एक मामले में बरी करने के फैसले के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए दिया। जस्टिस एनवी रमणा और शांत नागौदर की पीठ ने फैसले में कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि फिंगर प्रिंट अवैध हैं, क्योंकि इन्हें मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना उठाया गया है। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी मामले में कुछ संदेह पैदा हो जाता है तो उसे दूर करने के लिए मजिस्ट्रेट का आदेश लिया जा सकता है लेकिन ये नियम नहीं हो सकता कि हर केस में अभियुक्त के फिंगर प्रिंट उठाने के लिए मजिस्ट्रेट का आदेश जरूरी है।
यह मामला तिहरे हत्याकांड का था और इसमें तीन लोगों को बरी कर दिया गया था। इन तीनों ने एक महाजन, उसकी पत्नी और उसकी पुत्री की हत्या कर लूटपाट की थी। ट्रायल कोर्ट ने तीनों को मौत की सजा सुनाई लेकिन मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले को पलट दिया और तीनों को बरी कर दिया। सरकार और मृतक के परिजन इस मामले में अपील में सुप्रीम कोर्ट आए।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जांच तथा सबूतों में काफी अनियमितताएं हैं, जिससे अभियुक्तों को फायदा मिला है। यह भी सही है कि हत्याकांड स्थल से उठाए गए सूबतों का वहां मिले चाय के कपों पर मिले निशानों से मैच नहीं हुआ है लेकिन फिर ये अमान्य नहीं हैं। यह कहा गया था कि उंगलियों के निशान बिना आदेश के लिए गए थे।
कोर्ट ने कहा कि पुलिस ‘बंदी पहचान एक्ट, 1920’ की धारा 4 से बाध्य है। पुलिस ऐसे किसी भी केस में जिसमें एक वर्ष या उससे ज्यादा की कड़ी सजा का प्रावधान हो उस मामले में गिरफ्तार व्यक्ति की फोटो, माप आदि ले सकती है। हालांकि धारा 5 में इसके लिए मजिस्ट्रेट के आदेश की जरूरत बताई गई है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।