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इसरो जासूसी कांडः वैज्ञानिक की गिरफ्तारी अनावश्यक, 50 लाख रुपये के मुआवजे का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपनी व्यवस्था में कहा कि 1994 के जासूसी कांड में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार करके परेशान किया गया और मानसिक यातना दी गई। इसके साथ ही...

इसरो जासूसी कांडः वैज्ञानिक की गिरफ्तारी अनावश्यक, 50 लाख रुपये के मुआवजे का आदेश
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता Fri, 14 Sep 2018 07:31 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपनी व्यवस्था में कहा कि 1994 के जासूसी कांड में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार करके परेशान किया गया और मानसिक यातना दी गई। इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले में संलिप्त केरल पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए और केरल सरकार को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। 

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ ने इसके सथ ही 76 वर्षीय नंबी नारायणन को इस मामले में मानसिक यातनाओं के लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। पीठ के आदेशानुसार केरल सरकार को आठ सप्ताह के भीतर इसरो के पूर्व वैज्ञानिक को मुआवजे की राशि का भुगतान करना होगा। पीठ ने इसके साथ ही नारायणन को फंसाने की घटना की जांच के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व जज डीके जैन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। 

 नारायणन ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक सिबी मैथ्यू और सेवानिवृत्त पुलिस अधीक्षक केके जोशुआ और एस विजयन के खिलाफ किसी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है। जबकि उनकी गैरकानूनी गिरफ्तारी के लिए सीबीआई ने इन अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया था।

गौरतलब है कि 1994 में नारायणन सहित दो वैज्ञानिकों को एक इसरो से जुड़े कार्यक्रम की जानकारी लीक करने के आरोप में केरल पुलिस ने गिरफ्तार किया था। लेकिन सीबीआई ने अपनी जांच में उनकी संलिप्तता नहीं पाई थी। 

नारायणन : उस गुनाह की सजा मिली, जो हुई ही नहीं 
इसरो के वैज्ञानिक नांबी नारायणन को उस गुनाह के लिए सजा और जिल्लत झेलनी पड़ी, जो कभी हुई ही नहीं। केरल पुलिस ने उन्हें रॉकेट के क्रायोजेनिक इंजन की परियोजना से जुड़े दस्तावेजों की चोरी कर मालदीव के रास्ते पाकिस्तान देने के आरोप में गिरफ्तार किया। जबकि सच्चाई यह थी कि वह तकनीक मौजूद ही नहीं थी। 

राशिदा की गिरफ्तारी बनी आधार
अक्तूबर 1994 में मालदीव की नागरिक मरियम राशिदा की तिरुवनंतपुरम में गिरफ्तारी की गई। 
उसपर भारतीय रॉकेट का डिजाइन हासिल कर पाकिस्तान को देने की साजिश रचने का आरोप लगा। 

नारायणन बने निशाना 
- नवंबर 1994 में क्रायोजेनिक परियोजना के निदेशक पद पर कार्यरत नारायणन की गिरफ्तारी हुई
- उपनिदेशक डी शशिकुमार, रूसी अंतरिक्ष एजेंसी में भारतीय प्रतिनिधि के चंद्रशेखर भी गिरफ्तार  

दो महीने कालकोठरी में बीते
- नवंबर 1994 में गिरफ्तारी के बाद दिसंबर को जांच सीबीआई को सौंपी गई 
- पुलिस और बाद में सीबीआई मामले की जांच में सबूत नहीं खोज पाई 
- 50 दिनों की कैद के बाद नारायणन को जनवरी 1995 में जमानत मिली
- अप्रैल 1996 में सीबीआई ने माना मामला फर्जी केस बंद करने का अनुरोध 
- मई 1996 में मजिस्ट्रेट अदालत ने मामला खारिज कर सभी को बरी किया 
- 1996 में माकपा सरकार ने मामले पर दोबारा जांच शुरू करने की पहल की 
- 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला रद्द कर सभी को आरोप मुक्त किया 

आरोप से मुक्ति नहीं सम्मान की लड़ाई 
- 1999 में नारायणन ने मुआवजे के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
- 2001 में एनएचआरसी ने सरकार से 10 लाख रुपये मुआवजा देने को कहा
- 2001 केरल सरकार एनएचआरसी के फैसले को अदालत में चुनौती दी 
- 2012 केरल हाईकोर्ट ने एनएचआरसी के फैसले को बरकरार रखा 

गुनाहगारों को सजा दिलाने की तमन्ना
- अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट में नारायणन की याचिका पर सुनवाई शुरू की
- गिरफ्तारी में शामिल पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की थी मांग

इरादे के पक्के 
नारायणन के मुताबिक उनके सहयोगी और दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने आरोप मुक्त होने के बाद मुकदमे से बचने की सलाह दी थी। लेकिन वह गुनाहगारों को सजा दिलाने और मुआवजा पाने के फैसले पर अडिग थे। कहा जाता है कि यह प्रकरण राजनीतिक खींचतान का नतीजा था। इस मुद्दे पर कांग्रेस के एक वर्ग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के करुणाकरण को निशाना बनाया। इस वजह से उन्हें बाद में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। बता दें कि नारायणन के दामाद अरुणन भी इसरो में वैज्ञानिक हैं। वह भारत के महत्वकांक्षी मंगलयान मिशन के परियोजना निदेशक थे।
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