विडम्बना : सबसे बड़े दूध उत्पादक जिले में आधे बच्चे कुपोषण का शिकार
उत्तरी गुजरात के बनासकांठा जिले को एशिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश होने का गौरव प्राप्त है। यहां के किसान रोजाना 60 लाख लीटर से अधिक दूध का उत्पादन करते हैं। विडंबना यह है कि राष्ट्रीय परिवार...
उत्तरी गुजरात के बनासकांठा जिले को एशिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश होने का गौरव प्राप्त है। यहां के किसान रोजाना 60 लाख लीटर से अधिक दूध का उत्पादन करते हैं। विडंबना यह है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के मुताबिक, बनासकांठा में पांच वर्ष तक के 45 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं।
आमदनी में अव्वल, पोषण में पीछे
बनासकांठा डिस्ट्रक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर यूनियन लिमिटेड-बनास डेयरी देश ही नहीं दुनिया में सहकारिता और दूध कारोबार में सफलता का दूसरा नाम माना जाता है। अमूल ब्रांड के तहत बिकने वाले हर तीन में से एक उत्पाद बनास डेयरी में बनता है। बनासकांठा जिले के साढ़े चार लाख लोग इस को-आपरेटिव के सदस्य हैं और रोजाना 60 लाख लीटर से अधिक दूध इस डेयरी को बेचते हैं। सालभर में 7000 करोड़ से अधिक का नकद भुगतान किसानों को दूध के लिए किया जाता है। देश के अन्य हिस्सों में जहां किसानों की मासिक आमदनी 6000 रुपये के करीब है। वहीं बनासकांठा के किसानों की औसत आमदनी सिर्फ दूध से ही 16 से 20 हजार रुपये महीना है। इसके बावजूद इस जिले के 45 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं।
यूनिसेफ कुपोषण के खिलाफ अभियान चला रहा
यूनिसेफ गुजरात के कंसल्टेंट हार्दिक शाह के मुताबिक, खानपान की परंपरागत कमियां और पैसों के लालच में पूरा दूध डेयरी को बेच देना इस समस्या का मुख्य कारण है। यूनिसेफ पिछले आठ महीने से गुजरात सरकार और बनास डेयरी के साथ मिलकर कुपोषण के खिलाफ अभियान चला रहा है।
किसानों की आमदनी का मुख्य स्रोत दूध
बनास डेयरी के जोनल हेड धरम चौधरी कहते हैं कि बीते कुछ दशकों से खेती की आमदनी न के बराबर हो गई है। ऐसे में किसानों की आमदनी का मुख्य स्रोत दूध है। इसलिए किसान ज्यादा से ज्यादा दूध बेचना चाहते हैं। ऐसे में बच्चों को किसी भी प्रकार का पोषण नहीं मिलता और वे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। हम अब किसानों को इस बात के लिए तैयार कर रहे हैं कि वे बच्चों के लिए दूध रखने के बाद ही बचा दूध हमें दें।
लोगों को भी समझ आने लगी समस्या
बनासकांठा में कुपोषण कितना कम होगा, यह तो आने वाला सर्वेक्षण बताएगा। लेकिन गांव में लोगों को इसका अहसास होने लगा है कि बच्चों में कुपोषण आगे चलकर उनके लिए ही परेशानी का कारण बनेगा। पुंजपुर गांव की दूध सोसायटी के अध्यक्ष सचिव नूर मोहम्मद किनइया ने हिन्दुस्तान से बातचीत में कहा कि हमें यह समझ आ गया है कि हमारे बच्चे स्वस्थ होंगे, तो ही हमारा भविष्य उज्ज्वल होगा।