Interview: एनडीए या यूपीए में यह चुनाव बाद तय होगा- प्रसन्न आचार्य
लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में नई सरकार गठन में जिन क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम हो सकती है, उनमें एक बीजू जनता दल भी है। ओडिशा की 21 में से 20 लोकसभा सीटों पर बीजद 2014 में जीत दर्ज की थी। फिलहाल...
लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में नई सरकार गठन में जिन क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम हो सकती है, उनमें एक बीजू जनता दल भी है। ओडिशा की 21 में से 20 लोकसभा सीटों पर बीजद 2014 में जीत दर्ज की थी। फिलहाल राज्य की एक सीट खाली है। लोकसभा चुनाव से पूर्व और बाद में पार्टी के संभावित रुख को लेकर बीजद के उपाध्यक्ष प्रसन्न आचार्य से ‘हिन्दुस्तान’ के ब्यूरो चीफ मदन जैड़ा की बातचीत-
ओडिशा में लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव भी होते हैं, आपका मुकाबला किससे है?
हमारा मुकाबला किसी सी नहीं है। हां, भाजपा-कांग्रेस के बीच मुकाबला नंबर-दो पर आने के लिए है।
नंबर-दो के लिए ही सही, आप किसे मजबूत पाते हैं?
पिछले चुनावों में कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी। पर एक साल पूर्व हुए पंचायत चुनावों को देखें तो जिला पंचायत चुनावों में भाजपा दूसरे और कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। अभी तीन राज्यों में भाजपा का पराभव हुआ है। कांग्रेस की जीत हुई है जिसका असर देश भर में होगा। कांग्रेस के लोग काफी उत्साहित हैं। पहले वे हतोत्साहित थे। उनका भाजपा से तगड़ा मुकाबला होगा।
क्या चुनाव से पूर्व एनडीए या यूपीए का हिस्सा बनेंगे?
सवाल ही पैदा नहीं होता। हम अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगे।
चुनाव बाद एनडीए में जाएंगे?
अभी कहना मुश्किल है। चुनाव के बाद देश में क्या स्थिति रहती है, इस पर निर्भर होगा। तब का फैसला तब होगा।
बीजद एनडीए का घटक रहा है, आपको एनडीए का नजदीक माना जाता है?
हम भाजपा व कांग्रेस दोनों से समान दूरी बनाकर रखते हैं। हम क्षेत्रीय दल हैं। पहला लक्ष्य ओडिशा के हित हैं। इसकी पूर्ति के लिए किसी दल का समर्थन या विरोध करते हैं। पर इसका यह मतलब नहीं कि हम राष्ट्रीय भावना से दूर हैं। जब राष्ट्रीय मुद्दा आता है तो राष्ट्र-राज्य के हित को ध्यान में रख फैसला लेते हैं।
अगले चुनावों में बीजद जैसे दलों के प्रदर्शन से कैसी उम्मीद रखते हैं?
देखिए, 2014 के चुनाव में भाजपा हिन्दी क्षेत्र क्षेत्र में चरम पर पहुंच गई। पर सरकार बनने के बाद वह उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी जिससे लोगों में रोष है। इसलिए अगले चुनावों में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ेगा। जब भी लोगों की आशाएं पूरी नहीं होती हैं तो लोग क्षेत्रीय दलों को मजबूती प्रदान करते हैं।
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