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INS की खरी-खरी, अखबारों को कॉन्टेंट का पैसा दे और रेवन्यू में हस्सेदारी बढ़ाए गूगल

भारतीय समाचारपत्रों की ओर से आईएनएस (इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी) ने गूगल को पत्र लिखकर अखबारों को खबरों के बदले पेमेंट करने और उसके विज्ञापनों के रेवेन्यू में उचित हिस्सेदारी की मांग की है। आईएनएस के...

INS की खरी-खरी, अखबारों को कॉन्टेंट का पैसा दे और रेवन्यू में हस्सेदारी बढ़ाए गूगल
लाइव हिन्दुस्तान ,नई दिल्लीThu, 25 Feb 2021 10:32 PM
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भारतीय समाचारपत्रों की ओर से आईएनएस (इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी) ने गूगल को पत्र लिखकर अखबारों को खबरों के बदले पेमेंट करने और उसके विज्ञापनों के रेवेन्यू में उचित हिस्सेदारी की मांग की है। आईएनएस के प्रेसिडेंट एल. आदिमूलम की ओर से ग्लोबल सर्च इंजन को लिखे पत्र में कहा गया है कि कंपनी को अखबारों की सामग्री इस्तेमाल करने के लिए भुगतान करना चाहिए। गूगल के इंडिया मैनेजर संजय गुप्ता को लिखे पत्र में आईएनएस प्रेसिडेंट ने यह मांग भी की है कि डिजिटल स्पेस में विज्ञापन की व्यवस्था को लेकर कंपनी पारदर्शिता बरते और रेवेन्यू में अखबारों की हिस्सेदारी बढ़ाए।  

पत्र में कहा गया है, "अखबारों में हजारों की संख्या में पत्रकार काम करते हैं, जो खबरें लाते हैं और उनका वेरिफिकेशन करते हैं। इस पर बड़ी राशि खर्च होती है। समाचार पत्रों की ओर से तैयार की गई सामग्री पर उनका मालिकाना हक है। अखबारों की विश्वसनीय सामग्री के चलते ही गूगल को भारत में शुरुआत से ही विश्वसनीयता मिली है।

आईएनएस की ओर से लिखे गए पत्र में गूगल को यह याद दिलाया गया कि कैसे अखबारों की ओर से प्रकाशित विश्वसनीय खबरें, करेंट अफेयर्स, विश्लेषण, सूचनाएं और मनोरंजन की सामग्री उसे मिलती हैं। यही नहीं अखबारों की इन विश्वसनीय खबरों और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर फैलने वाली फेक न्यूज में बड़ा अंतर है। आईएनएस ने कहा कि बीते कुछ सालों में दुनिया भर में प्रकाशकों ने सामग्री की उचित पेमेंट और विज्ञापनों के रेवेन्यू में उचित हिस्सेदारी की मांग गूगल से की है। यही नहीं गूगल ने फ्रांस, यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया में इन मांगों को स्वीकार किया है और प्रकाशकों को उचित पेमेंट करने की बात कही है।

आईएनएस ने कहा कि न्यूज इंडस्ट्री के लिए विज्ञापन रीढ़ की हड्डी की तरह हैं। डिजिटल स्पेस में अखबारों के प्रकाशकों को विज्ञापन से काफी कम रेवेन्यू मिल पा रहा है। इसकी वजह यह है कि विज्ञापनों पर खर्च होने वाली रकम का बड़ा हिस्सा गूगल के खाते में चला जाता है और प्रकाशकों की हिस्सेदारी काफी कम रह जाती है। इसके अलावा डिजिटल वर्ल्ड में विज्ञापन व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी है। अखबारों को गूगल के एडवर्टाइजिंग वैल्यू चेन के बारे में जानकारी ही नहीं मिल पाती है। आईएनएस ने कहा कि गूगल को प्रकाशकों को विज्ञापनों के रेवेन्यू में 85 फीसदी तक हिस्सेदारी देनी चाहिए। इसके अलावा प्रकाशकों को रेवेन्यू की जो रिपोर्ट गूगल की ओर से शेयर की जाती है, उसमें अधिक पारदर्शिता बरती जाए। 

इसके अलावा फेक न्यूज से मुकाबले के लिए आईएनएस ने गूगल से उन प्रकाशकों की सामग्री को ही प्राथमिकता देने की मांग की, जो रजिस्टर्ड प्रकाशक हैं। आईएनएस ने कहा कि गूगल ऐसी बहुत सी साइट्स से सामग्री उठाता है, जो विश्वसनीय नहीं हैं। इसके चलते गलत जानकारियां मिलती हैं और फेक न्यूज फैलती हैं। आईएनएस ने गूगल को लिखे पत्र में कहा कि भारतीय प्रिंट मीडिया देश में समाचारों का सबसे विश्वसनीय स्रोत है। राष्ट्र निर्माण में अखबारों की अहम भूमिका है। हालांकि महामारी और डिजिटल मीडिया की मौजूदा बिजनेस मॉडल प्रकाशकों के लिए ठीक नहीं है। इसके चलते प्रिंट मीडिया के लिए मुकाबले में बने रह पाना मुश्किल हो सकता है। हम पत्रकारिता में बड़ा निवेश करते हैं, जो हमारे न्यूज ऑपरेशन की रीढ़ है क्योंकि अखबार समाज में अहम भूमिका अदा करते हैं।
 

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