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पारंपरिक पकवानों की लिस्ट में शामिल होंगे इंदौरी पोहा और बुरहानपुरी जलेबी

अगर गंभीरता से प्रयास किए जाएं, तो इंदौर के पोहे और बुरहानपुर की मावा जलेबी की जगह उन पारंपरिक पकवानों की सूची में पक्की हो सकती है जिन्हें भौगोलिक पहचान का वैश्विक तमगा हासिल है। चुनिंदा जायकों की...

पारंपरिक पकवानों की लिस्ट में शामिल होंगे इंदौरी पोहा और बुरहानपुरी जलेबी
इंदौर, एजेंसीSun, 29 Jul 2018 07:06 PM
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अगर गंभीरता से प्रयास किए जाएं, तो इंदौर के पोहे और बुरहानपुर की मावा जलेबी की जगह उन पारंपरिक पकवानों की सूची में पक्की हो सकती है जिन्हें भौगोलिक पहचान का वैश्विक तमगा हासिल है। चुनिंदा जायकों की इस फेहरिस्त की शोभा हैदराबाद का हलीम और पश्चिम बंगाल का रसगुल्ला जैसे व्यंजन बढ़ा रहे हैं। मध्यप्रदेश से निर्यात को बढ़ावा देने के उपायों पर केंद्रित भारतीय निर्यात-आयात बैंक (एक्जिम बैंक) की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश सरकार को इंदौरी पोहे और बुरहानपुरी मावा जलेबी को भौगोलिक उपदर्शन (जीआई) प्रमाण पत्र दिलाने की दिशा में प्रयास करने चाहिए। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद राज्य की महिला एवं बाल विकास अर्चना चिटनीस ने कहा कि हम बुरहानपुर की मावा जलेबी के बारे में विस्तृत अध्ययन कराएंगे, ताकि इसे जीआई चिन्ह दिलाने के लिए विधिवत आवेदन किया जा सके।

मुगल काल में "दक्षिण के प्रवेश द्वार" के रूप में मशहूर ऐतिहासिक शहर बुरहानपुर की जलेबी मावे (खोवा) से बनती है। मुंह में पानी ला देने वाली अनोखी मिठास के लिए यह व्यंजन दूर-दूर तक मशहूर है। चिटनीस बुरहानपुर की विधायक भी हैं। उन्होंने कहा कि मावे की जलेबी बुरहानपुर की मीठी विरासत है और इस पारम्परिक व्यंजन पर उनके गृह क्षेत्र का दावा बेहद मजबूत है। पोहा, इंदौर का सबसे पसंदीदा नाश्ता है। अपने पारंपरिक जायकों के लिए देश-दुनिया में मशहूर शहर में पोहे की हजारों दुकानें हैं। खासकर सुबह के वक्त इन दुकानों पर स्वाद के शौकीनों की भीड़ उमड़ी रहती है।
   
बहरहाल, बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े कानूनों के जानकार प्रफुल्ल निकम का कहना है कि पोहे को जीआई चिन्ह दिलाना मध्यप्रदेश के लिये टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। उन्होंने कहा अगर मध्यप्रदेश पोहे को अपना पारंपरिक व्यंजन बताकर इसे जीआई प्रमाणपत्र दिलाने के लिये औपचारिक आवेदन करता है, तो बहुत संभव है कि इस दावे को महाराष्ट्र की ओर से तगड़ी चुनौती मिले। निकम ने कहा कि महाराष्ट्र में सदियों से पोहा खाया जा रहा है। खासकर पुणे के करीब 90 प्रतिशत घरों में पारंपरिक तौर पर हर सुबह नाश्ते के रूप में पोहा ही पकता है।
   
उन्होंने कहा कि गुजरे बरसों में बासमती चावल, रसगुल्ला और कड़कनाथ चिकन को जीआई प्रमाणपत्र दिलाने के मामले में अलग-अलग राज्यों में रस्साकशी देखी गयी है। लिहाजा अगर मध्यप्रदेश इंदौरी पोहे और बुरहानपुरी जलेबी को भौगोलिक पहचान का यह विशिष्ट चिन्ह दिलाना चाहता है, तो उसे दोनों व्यंजनों के बारे में ऐतिहासिक सबूत जुटाने होंगे और विस्तृत शोध के जरिये पुख्ता प्रस्ताव तैयार करना होगा। अप्रैल 2004 से लेकर अब तक जिन भारतीय पकवानों को खाद्य उत्पादों की श्रेणी में जीआई तमगा मिला है, उनमें धारवाड़ का पेड़ा (कर्नाटक), तिरुपति का लड्डू (आंध्र प्रदेश), बीकानेरी भुजिया (राजस्थान), हैदराबादी हलीम (तेलंगाना), जयनगर का मोआ (पश्चिम बंगाल), रतलामी सेंव (मध्यप्रदेश), बंदर लड्डू (आंध्र प्रदेश), वर्धमान का सीताभोग (पश्चिम बंगाल), वर्धमान का ही मिहिदाना (पश्चिम बंगाल) और बांग्लार रसगुल्ला (पश्चिम बंगाल) शामिल हैं। 
    
जानकारों ने बताया कि जीआई पंजीयन का चिन्ह विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले ऐसे उत्पादों को प्रदान किया जाता है जो अनूठी खासियत रखते हैं। इस चिन्ह के जरिये ग्राहकों को संबंधित उत्पादों की गुणवत्ता का भरोसा भी मिलता है। जीआई चिन्ह के कारण अलग-अलग उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबारी पहचान हासिल होती है, जिससे इनके निर्यात को बढ़ावा मिलता है। उत्पादकों या निर्माताओं को इस खास चिन्ह से न केवल उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग में मदद मिलती है, बल्कि नक्कालों के खिलाफ उन्हें पुख्ता कानूनी संरक्षण भी प्राप्त होता है। 
 

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