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'भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तार के खिलाफ उठानी चाहिए आवाज'

चीन के साथ हालिया सीमा-गतिरोध ने भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ अपनी नीति पर पुनर्विचार करने और अन्य एशिया-प्रशांत राष्ट्रों के लिए बोलने के लिए प्रेरित किया है। इस वर्ष के चुनावों और कोविड...

'भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तार के खिलाफ उठानी चाहिए आवाज'
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीThu, 23 Jul 2020 08:48 AM
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चीन के साथ हालिया सीमा-गतिरोध ने भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ अपनी नीति पर पुनर्विचार करने और अन्य एशिया-प्रशांत राष्ट्रों के लिए बोलने के लिए प्रेरित किया है।

इस वर्ष के चुनावों और कोविड -19 के बाद अर्थव्यवस्था में गिरावट के साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका के क्षेत्र से पीछे हटने की संभावना है। फ्रीडम गजट के प्रधान संपादक और द डिप्लोमैट के लेखक मोहम्मद जीशान ने मंगलवार को साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में प्रकाशित हुए एक विश्लेषण में कहा है, "एशिया को चीन के खिलाफ एक सामूहिक मध्य-शक्ति की प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। यह वह जगह है जहां भारत एक भूमिका निभा सकता है।"

भारत ने लंबे समय से इस क्षेत्र में अन्य देशों की भूराजनीतिक चिंताओं को स्पष्ट किया है और सावधानी से बर्ताव किया है। जबकि नई दिल्ली ने वियतनाम जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय सैन्य सहयोग को आगे बढ़ाया है, वह आम तौर पर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर चुप रहा है। 

बता दें कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच लद्दाख में एलएसी पर करीब दो महीने से टकराव के हालात बने हुए हैं। छह जून को हालांकि दोनों सेनाओं में पीछे हटने पर सहमति बन गई थी लेकिन चीन उसका क्रियान्वयन नहीं कर रहा है। इसके चलते 15 जून को दोनों सेनाओं के बीच खूनी झड़प भी हो चुकी है। इसके बाद दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच बात हुई है तथा 22 जून को सैन्य कमांडरों ने भी मैराथन बैठक की है। हर बार सहमति बनती है, लेकिन उसका क्रियान्वयन नहीं दिखाई देता है। 

इससे पहले 2017 में भारतीय सैनिकों ने भूटान और चीन के बीच विवादित क्षेत्र डोकलाम में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को उस क्षेत्र में सड़क बनाने से रोका था। वह भारत के सामरिक हितों को प्रभावित कर सकता था। नई दिल्ली ने थिम्पू के दावे का ऐतिहासिक समर्थन किया था। 

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