भारत और चीन एलएसी पर नौंवे दौर की मिलिट्री स्तर की वार्ता की तैयारी कर रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य है पूर्वी लद्दाख सेक्टर में मई 2020 के पहले जैसी स्थिति बनाना। सूत्रों के मुताबिक, वार्ता से पहले भारत चीन से कुछ मुद्दों पर सफाई चाहता है। इसमें डिस-इंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन जैसे मुद्दे प्रमुख हैं।
दिल्ली और बीजिंग के कुछ अधिकारियों के मुताबिक इस 597 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर डिस-इंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन के मुद्दे पर बातचीत का अवसर दिसंबर में खत्म हो जाएगा। भारी बर्फबारी, पोलर तापमान, और अत्याधिक ठंड़ की वजह से सेना के दलों और अन्य संसाधनों का अवागमन इस क्षेत्र में रुक जाएगा। फिलहाल दोनों ही पक्षों ने मिसाइल, तोपों, और हथियारों की गाड़ियों के तीन डिविजन तैनात किए हैं।
इस मामले के एक जानकार ने बताया, "इस मुद्दे की पूरी रणनीति तैयार है लेकिन भारत कुछ मामलों में स्पष्टीकरण चाहता है। इसमें भारत ने भारतीय सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से जवाब मांगे हैं। इस स्पष्टीकरण से बहुत सी चीजें सुलझ सकती हैं लेकिन बीजिंग के उत्तर का इंतजार है। यदि यह स्पस्टीकरण दोनों देशों के मन मुताबिक होता है तो धीरे-धीरे डिस-इंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन के बारे में लिखित समझौता हो सकता है।"
गौरतलब है कि अत्यंत खराब मौसम और बर्फबारी के चलते सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के लिए 31 दिसंबर तक जोजी ला पास को खोले रखना एक बड़ी चुनौती है। बर्फबारी, बर्फ के तूफान, और बीस डिग्री से भी नीचे गिर चुके तापमान ने स्थितियों को और भी मुश्किल बना दिया है। एलएसी पर भारतीय हिस्से की जमीन पर पहाड़ और ग्लेशियर हैं वहीं चीन की तरफ यह जमीन सपाट पठार है। मई 2020 में पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर हुए तनाव के बाद, गलवान, गोगरा-हॉट स्प्रिंग के अलावा कई जगहों पर दोनों सेनाओं की मुठभेड़ हो चुकी है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि डिस-इंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन के लिए भारत सावधानी से कदम बढ़ा रहा है।चीन ने 30 साल पुराने समझौंतों का उल्लंघन किया है इसे भारत कई बार कह चुका है। इस कारण भारत के लिए चीन पर विश्वास करना भी मुश्किल है।