चीन ने भारत और ताइवान के बीच व्यापार सौदे पर संभावित बातचीत की खबरों पर उस समय तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जब नई दिल्ली में इस बात पर मंत्रणा की जा रही है कि क्या सरकार को लद्दाख में सीमा गतिरोध की पृष्ठभूमि में ताइपे के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करनी चाहिए?
भारत के ताइवान के साथ रिश्ते:
भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन 1995 के बाद से, दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय बनाए रखे हैं जो दूतावास के रूप में कार्य करते हैं। हालांकि, दोनों कार्यालयों ने अपने नामों में 'ताइवान' शब्द का जिक्र नहीं किया है। ताइवान का नई दिल्ली में ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर है, और भारत का ताइपे में इंडिया ताइपे एसोसिएशन है।
भारत ने 'वन-चाइना पॉलिसी' का समर्थन किया है, जिसके तहत देशों के औपचारिक रूप से केवल चीन के साथ राजनयिक संबंध हैं, और इसका द्विपक्षीय दस्तावेजों में जिक्र है। 2018 के मिड में जब भारत और चीन के बीच संबंध डोकलाम में सैन्य गतिरोध के बाद सुधार की ओर थे, तब सरकार द्वारा संचालित एयर इंडिया ने अपनी वेबसाइट पर ताइवान का नाम बदलकर चीनी ताइपे कर लिया था। ऐसा अन्य एयरलाइंस ने भी बीजिंग के विरोध के बाद किया था। उस समय, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि यह फैसला 'यह पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और 1949 से ताइवान पर हमारी अपनी स्थिति के अनुरूप है।'
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हालांकि, भारत और ताइवान ने हाल ही में एक दूसरे की राजधानियों में उच्च राजनयिकों को बतौर डी फैक्टो एन्वॉयस पोस्ट किया है। यह दोनों के संबंधों में गति देने की इच्छा के संकेत देते हैं। भारत ने इसके लिए गौरंगलाल दास को चुना है, जबकि ताइवान ने बाउशुआन गेर को नियुक्त किया है। उस समय, ताइवान के एक न्यूज पोर्टल ने बताया था कि 'भारत के साथ संबंध, भविष्य में ताइवान की सबसे महत्वपूर्ण राजनयिक प्राथमिकताओं में से एक बनने की संभावना हैं।'
चीन की स्थिति:
चीन के सिविल वॉर के अंत में, पराजित नेशनलिस्ट्स ने 1949 में ताइवान को अपनी सरकार का हिस्सा बना दिया और 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' के नाम से पहले यह 'नेशनल चाइना' के नाम से जाना जाता था। कम्युनिस्ट सरकार, जिसने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की, ने ताइवान का पुन: एकीकरण करने के लिए बल प्रयोग की धमकी दी। हाल के महीनों में चीन की बढ़ती आक्रामक कार्रवाइयों की वजह से, ताइवान के खिलाफ संभावित सैन्य कार्रवाई के बारे में विशेषज्ञों के बीच आशंकाएं बढ़ गई हैं। वहीं, अमेरिका का ताइवान के साथ अभी भी मजबूत सैन्य संबंध हैं। वहीं, संसद में बोलते हुए, ताइवानी रक्षा मंत्री येन ते फा ने कहा था कि वायु सेना ने इस साल चीनी विमानों के खिलाफ 2,972 बार संघर्ष किया है।
अगला कदम क्या:
भारत और ताइवान के संबंधों को लेकर चल रही खबरों के बीच, केंद्र सरकार ने इस मामले पर एक चुप्पी बनाए रखी है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को सावधानी से आगे बढ़ने की जरूरत है। ताइवान के नेशनल चेंगची विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस में ताइवान की फेलो सना हाशमी कहती हैं कि ताइवान के साथ संभावित व्यापार समझौते पर बातचीत करना चीन की 'वन-चाइना पॉलिसी' का उल्लंघन नहीं होगा, क्योंकि न्यूजीलैंड और सिंगापुर जैसे देश ताइवान के साथ आर्थिक समझौते करके फायदा उठा रहे हैं। चाइनीज इकॉनमी से पीछा छुड़ाने के लिए भारत के लिए यह बिल्कुल उपयुक्त समय है। सना ने कहा, ''बदले राजनीतिक समीकरण के चलते, भारत और ताइवान के गंभीरता से व्यापार समझौते को लेकर बातचीत करने का सही समय है।'' वहीं, वे आगे कहती हैं कि भारत को चीन के साथ अपने संबंधों से ताइवान नीति को अलग करना चाहिए। ताइवान के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध भारत-चीन संबंधों के पैरेलल जा सकते हैं। भारत एक संप्रभु देश है और बीजिंग को यह बताने का कोई हक नहीं है कि नई दिल्ली या फिर कोई अन्य देश अपने आर्थिक संबंधों का प्रबंधन किस तरह से करे।