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हिन्दुस्तान पूर्वोदय 2019: इन नायाब नायकों का होगा सम्मान, जानें इनके बारे में

झारखंड में हालात को बेहतर बनाने के प्रयास जारी हैं। इन प्रयासों के नायक आम लोग हैं। कोई जल संरक्षण में लगा है तो कोई इस कोशिश में कि खेती को कैसे ज्यादा से ज्यादा लाभकारी बनाया जाए। महिलाओं को...

हिन्दुस्तान पूर्वोदय 2019: इन नायाब नायकों का होगा सम्मान, जानें इनके बारे में
लाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्ली। Wed, 18 Sep 2019 08:23 AM
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झारखंड में हालात को बेहतर बनाने के प्रयास जारी हैं। इन प्रयासों के नायक आम लोग हैं। कोई जल संरक्षण में लगा है तो कोई इस कोशिश में कि खेती को कैसे ज्यादा से ज्यादा लाभकारी बनाया जाए। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की मुहिम भी साथ-साथ चल रही है। राज्य सरकार की तमाम योजनाएं इस प्रयास को गति दे रही हैं। हिन्दुस्तान पूर्वोदय में एक बार फिर ऐसे नायाब नायकों को सम्मानित किया जाएगा। जानिये इस बार सम्मानित होने वाले नायकों के बारे में...

दिलीप के अभियान के प्रधानमंत्री भी हुए मुरीद
झारखंड को जलसंचय के क्षेत्र में पहचान दिलवाने वालों में हजारीबाग जिले के कटकमसांडी प्रखंड की लुपुंग पंचायत के मुखिया दिलीप रविदास का भी शामिल है। उनके जल संचय अभियान की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में की है।

मुखिया दिलीप रविदास बताते हैं कि जबसे प्रधानमंत्री ने उनके अभियान की चर्चा की है तब से गांव के लोगों का उत्साह सातवें आसमान पर है। वह बताते हैं कि कटकमसांडी के तत्कालीन बीडीओ अखिलेश कुमार की पहल से पूरे प्रखंड में जल संचय अभियान तेजी से चलाया जाने लगा है। सरकारी भवन, स्कूल पंचायत भवन स्वास्थ्य उपकेंद्र में वाटर हार्वेस्टिंग का अभियान भी तेजी से बढ़ाया जा रहा है।

अभी बेसिक स्कूल असधीर, कन्या मध्य विद्यालय, पंचायत भवन और स्वास्थ्य उपकेंद्र में वाटर हार्वेस्टिंग का कार्य चल रहा है। दिलीप रविदास ने अपने अभियान की कहानी बताते हुए कहा कि उन्होंने जल संरक्षण के लिए अपने गांव में शुरुआती दौर में 20 चापानलों के पास सोकपीट (सोखता) बनवाया। इसमें ईंट से जालीनुमा सोख्ता तैयार किया गया। बाद में भारतीय नवयुवक संघ के माध्यम से अपने गांव में जल संचय के लिए जागरुकता अभियान चलाया। मुखिया के अभियान को प्रशासन के लोगों ने देखा और प्रभावित हुए। बाद में तत्कालीन बीडीओ अखिलेश कुमार और डीसी रविशंकर शुक्ला के प्रयास से उन्हें पुराने ड्रम उपलब्ध करवाए गए। अब वह चापाकलों के पास ड्रम लगाकर सोखता बनवाने लगे। इसके पहले उन्होंने विधायक मनीष जायसवाल के निजी फंड से पिपहरा आहर, पकाही तालाब, गोरखिया तालाब और असधीर छठ तालाब के गहरीकरण करवाया। लघु सिंचाई विभाग की ओर से मंडा आहर, ऊपरैली आहर, रनवा गढ़ा तालाब के गहरीकरण में भागीदारी निभाई।

कौन हैं दिलीप रविदास
दिलीप रविदास कटकमसांडी के लुपुंग के मुखिया हैं। उनके पिता और भाई मुंबई में मजदूर हैं। खुद उन्होंने अर्थशास्त्र से स्नातक किया है।

कैसे आए सामाजिक क्षेत्र में
दिलीप रविदास पहले पूजा कमेटियों में सक्रिय हुए। फिर गांवकी समस्याओं के समाधान के लिए मुखर होने लगे। बाद में दिसंबर 2015 में मुखिया के चुनाव में खड़े हुए और जीत गए।

गढ़वा के ब्रजेश ने ईजाद की फूल की नई प्रजाति
गढ़वा के सदर प्रखंड के करूआ कला गांव के किसान ब्रजेश तिवारी ने फूलों की खेती से समृद्धि का रास्ता खोजा है। जब वे फूल की खेती में जुटे तो सब लोगों ने इससे दूर रहने की सलाह दी। पर वे खेती में लगे रहे। जब उनकी बगिया में फूलों की खुशबू फैली तो इसका असर आमदनी में भी दिखा। उन्होंने अपने खेत में बालसम फूल की एक नई प्रजाति विकसित की। इसके पौधे में पांच रंग के फूल खिलते हैं। फूल के रंग और साईज भी अलग-अलग होते हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने भी उनकी ओर से विकसित फूल की सराहना की है। वे इसे पेटेंट भी करा रहे हैं।

रामेश्वर ने पहाड़ का पानी रोककर चेक डैम बनाया
रांची जिले के ओरमाझी प्रखंड के आरा और केरम गांव के लोग जल संरक्षण के क्षेत्र में बड़ा काम कर रहे हैं। ग्रामीणों ने अपने श्रमदान से पहाड़ आने वाले पानी को रोक कर चेक डैम बना लिया है। यह संभव हुआ केरम के प्रधान रामेश्वर बेदिया के नेतृत्व के कारण। आरा और केरम गांवों के लोगों की मुख्य पेशा खेती है। खेती के लिए सिंचाई एक बड़ी समस्या थी। ग्रामीणों ने देखा कि बरसात का पानी पहाड़ से गिरकर बरबाद हो जाता है। अगर इसे रोका जाए तो सिंचाई की समस्या का समाधान हो सकता है। ग्रामीणों ने अपने प्रधान रामेश्वर बेदिया के नेतृत्व में श्रमदान किया और पहाड़ के ऊपर से गिरने वाले पानी को छोटे छोटे पत्थरों से बांध कर चेक डैम बनाया है। यही नहीं बारिश में घरों की छत से गिरने वाले पानी को रोकने के लिए सोखता गड्ढा खोद कर संरक्षण का काम किया है। इसका असर लोगों की समृद्धि पर भी पड़ा है। आरा और केरम गांवों के लोग अब बाहर काम करने नहीं जाते हैं। कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में इस गांव के बारे में बताया। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने वर्ष 2017 में दोनों गांवों को नशा मुक्त घोषित किया था। मुख्यमंत्री ने स्वयं गांव का दौरा किया था। रामेश्वर बेदिया के अनुसार उन्हें यह प्रेरणा मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी से मिली है।

किसान के रूप में मिसाल बनीं हेमा देवी
कोशिशें अगर ईमानदारी से हों तो सफलता कदम चूमती है। इसके लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती, बस हौसले बुलंद होने चाहिए। ऐसी ही कहानी है देवघर जिले के सारठ अंचल के बेलबरना गांव निवासी राजकिशोर पंडित की पत्नी हेमा देवी की। पांचवीं पास हेमा देवी जब शादी के बाद ससुराल आयीं तो परिवार की आर्थिक तंगी ने काफी परेशान किया।

हेमा ने विपरीत परिस्थितियों से उबरने की ठानी। उन्होंने सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर खेती का रुख किया। हेमा की मेहनत से उनकी साढ़े तीन एकड़ जमीन कृषि उत्पादन का केंद्र बन गयी। रबी हो या खरीफ, दिन-रात मेहनत कर हेमा देवी कृषि उपज से परिवार को आर्थिक तंगी से उबारने में सफल हुईं हैं।

इसी दौरान उनका संपर्क कृषि विज्ञान केन्द्र से हुआ। वहां से उन्होंने आधुनिक खेती के गुर सीखे। एक सफल किसान के रूप में लोहा मनवा चुकीं हेमा को नाबार्ड ने सम्मानित किया। इसके साथ गव्य विकास विभाग के पदाधिकारियों से उनका संपर्क हुआ। वहां से उन्हें अनुदान पर गाय मिली। वह महिला गो-पालक के रूप में भी देवघर जिला में आदर्श के रूप में उभरकर सामने आयीं। जरूरत पड़ने पर आज भी गव्य विकास विभाग के पदाधिकारी हेमा को प्रशिक्षक के रूप में बुलाते हैं। हेमा अपनी कामयाबी के साथ गांव के अन्य गरीब परिवारों को अपने व्यवसाय से जोड़ने में सफल रहीं। 10 महिलाओं का समूह बनाया। हेमा देवी ने अपने समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण देकर कृषि व गो-पालन के व्यवसाय से जोड़कर उन्हें भी स्वावलंबी बनाया। उनका मुख्य उद्देश्य समाज की सभी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है।

नफीसा ने महिलाओं को सशक्त बनाया
हौसला बुलंद हो तो किसी भी क्षेत्र में रोजगार सृजन किया जा सकता है। हालांकि महिलाओं के लिए रोजगार सृजन करना मुश्किल है मगर साहिबगंज जिले के उधवा प्रखंड के सुदूरवर्ती दक्षिण पलाशगाछी पंचायत में सीएससी संचालित करनी वाली नफीसा खातून ने हर चुनौती से मुकाबला किया।

ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं लोक-लाज के चलते अपनी समस्याओं को खुलकर बात करने से कतराती हैं लेकिन नफीसा खातून ने उनकी झिझक को तोड़ने के साथ स्वच्छता के प्रति जागरुकता पैदा की। स्कूल-कॉलेज की छात्राओं के अलावा महिलाओं को जागरूक किया। उन्होंने गांवों की महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं करने से होने वाली बीमारियों के बारे में बताया। नफीसा ने ुइसके लिए पहले खुद प्रशिक्षण लेकर सेनेटरी नैपकिन बनाना शुरू किया और इसके बाद इस काम से दूसरी महिलाओं को जोड़ा। 2017-18 में उन्होंने गांव की आठ-दस महिलाओं के सहयोग से 10 हजार सेनेटरी नैपकिन बनाकर आसपास के स्कूलों में नि:शुल्क वितरण किया। इस कार्य की सराहना करते हुए तत्कालीन केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 27 जनवरी 2018 को दिल्ली में नफीसा को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। फिलहाल नफीसा अपने क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के अलावा उन्हें स्वरोजगार से भी जोड़ रही हैं। सीएससी संचालिका नफीसा खातून ने डेढ़ साल में आसपास की महिलाओं को नैपकिन बनाने के काम में शामिल किया। उनके अनुसार महिलाएं कहीं भी सेनेटरी नैपकिन बनाने के बाद उसे बेचकर परिवार चला सकती हैं।

धनबाद की कौशल्या देवी को मिली पैडवुमन की पहचान
फिल्म पैडमैन के बाद देश में सेनेटरी पैड को लेकर महिलाएं मुखर हो रहीं हैं। धनबाद में पिछले दो साल से महिलाओं का एक ग्रुप पैड बनाने का काम कर रहा है। यह ग्रामीण इलाके की महिलाओं को सस्ते में सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध करा रहा हैं। इसकी अगुवाई कर रहीं कौशल्या देवी को इलाके में पैडवुमन के नाम से लोग जानने लगे हैं। निदान संस्था की ओर से महिलाओं को सेनेटरी पैड बनाने का प्रशिक्षण दिलाया गया।

पहले पटना जाकर कौशल्या देवी ने स्वयं पैड बनाने का प्रशिक्षण लिया और इसके बाद क्षेत्र की एक हजार महिलाओं को पैड बनाने का प्रशिक्षण दिया। अब ये एक हजार महिलाएं खुद मास्टर ट्रेनर बन गई हैं और दूसरी महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं। इस प्रशिक्षण के बल पर गरीब महिलाएं अब महीने में दो-तीन हजार रुपए के पैड बनाकर कमा रही हैं। एक दिन में 30 पैकेट पैड बन रहे हैं। गोविंदपुर की एक फैक्ट्री में इसके लिए रुई बनायी जाती है। यह ग्रुप उसी से खरीदकर पैड का निर्माण कर रहा है। सेनेटरी पैड बनाने वाली महिलाओं को इसे बेचने के लिए बाजार की कमी नहीं महसूस होती है। एक पैकेट नैपकिन बनाने की लागत 19 रुपए आती है, जबकि बाजार में इसे 25 रुपए में बेचा जाता है। कौशल्या देवी ने बताया कि हाल के दिनों में गांव की महिलाएं काफी जागरूक हुई हैं।

प्रकाश ने नए नजरिए से खेती की तस्वीर बदल दी
कोडरमा जिले के महेशपुर निवासी प्रकाश मेहता ने खेती के दम पर न सिर्फ अपने परिवार को सम्हाला, बल्कि पूरे क्षेत्र में किसानों को स्वावलंबी बनाया। वे धान, मक्का, आलू , टमाटर, मिर्ची के अलावा सब्जियों और फलों की खेती करते हैं। पहले वे संसाधन के अभाव में पूरी जमीन का उपयोग नहीं कर पा रहे थे। बाद में पूंजी इकट्ठा करके उन्होंने एक कुआं और एक डीप बोरिंग, सोलर प्लेट के माध्यम से खेती में जान डाली। इन्हें 2008 में उत्कृष्ट किसान का प्रथम पुरस्कार मिला। जैविक खाद को लेकर इनकी पहल देखते हुए झारखंड सरकार ने पुरस्कृत किया। 2009 में भारत भारत सरकार ने भी उन्हें पुरस्कृत किया।

सुमन ने महिलाओं को सम्मान से जीना सिखाया
गढ़वा-पलामू की महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए पिछले 34 वर्षो से सुमन अखौरी कार्य कर रही हैं। 34 वर्षो में उन्होंने गढ़वा और पलामू की 50 हजार से अधिक महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़कर उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण उपलब्ध कराया है। उनका दावा है कि इनमें से दस हजार महिलाएं स्वरोजगार से जुड़ी हैं। सुमन अखौरी महिलाओं के बीच दीदी के नाम से मशहूर हैं। सुमन अखौरी पहले जीएलए कॉलेज में दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर थीं। वे वहां पढ़ाती तो जरूर थीं लेकिन क्षेत्र की गरीब महिलाओं के विकास के लिए उनके अंदर कुछ करने की लालसा थी। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने जागृति महिला मंडल का गठन किया।


सुमन अखौरी बताती हैं कि पहले गांवों में जाने पर उन्हें महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी जागरूक करना पड़ता था। पुरुष जल्दी महिलाओं को स्वयं सहायता समूह में भेजने के लिए तैयार नहीं होते थे। उन्होंने गढ़वा-पलामू के गांव-गांव में घूमकर महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा।

समूह से जुड़ी महिलाओं को बैंक से ऋण उपलब्ध कराया और उन्हें स्वरोजगार की सुविधा उपलब्ध कराई। नाबार्ड और ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान से भी महिलाओं को मशरूम, पेंटिंग, मोमबती, अगरबत्ती, फिनाईल, सिलाई, कटाई, सेनेटरी पैड, चूड़ी, आभूषण, अचार, पापड़, मसाला के साथ अन्य ट्रेडों में प्रशिक्षण दिया। इससे हजारों महिलाएं खुद का रोजगार कर आर्थिक रूप से मजबूत हो गई हैं। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन ने स्कूलों में ड्रेस सप्लाई की आपूर्ति करने की जिम्मेवारी महिलाओं को दी है। इससे महिलाओं को एक बेहतर बाजार उपलब्ध हो गया है। स्वरोजगार से जुड़ने के बाद महिलाएं काफी खुश हैं।


मीनू मीता ने हजारों परिवार को खुले में शौच से मुक्ति दिलाई
महिलाओं का दर्द महिलाएं ही बेहतर तरीके से समझ सकती हैं। खास कर उन महिलाओं का दर्द जिनके घरों मे शौचालय की सुविधा नहीं है। सिमरिया की मीनू ने घर की देहरी लांघ कर ऐसी ही महिलाओं के दर्द को समझा और शौचालय बनाने की मुहिम से खुद को जोड़ लिया। मीनू मीता ने सिमरिया और लावालौंग के गांवों में अपनी टीम के बलबूते अब तक पांच हजार शौचालयों का निर्माण कराया है। मात्र यही नहीं, अभी भी कई जगह शौचालयों का निर्माण कार्य जारी है। भले ही इन शौचालयों के निर्माण के लिए सरकारी राशि का इस्तेमाल हो रहा हो, पर निर्माण कार्य की जिम्मेवारी समूह की महिलाएं ही उठा रही हैं।

शौचालय निर्माण के अपने अभियान के तहत मीनू मीता अब तक महिलाओं के छह सौ समूहों का गठन कर चुकी हैं। वे बताती हैं कि एक समूह में दस से बारह महिलाएं शामिल होती हैं। शुरुआत में मीनू ने इन महिला समूहों को लीज पर जमीन लेकर टमाटर कीखेती करना, सिलाई करना, फर्नीचर और अगरबत्ती बनाने जैसे काम सिखा कर अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया। इतना ही नहीं वह समाज के लिए इतना काम करते हुए भी अपने मायके में खेती बाड़ीका भी काम संभालती हैं। मीनू के सामाजिक अभियान में उनका हर कदम पर साथ देने वाली उनकी दोस्त मंजू मीता भी इस सफलता में एक अहम किरदार हैं।

आशा और शुभानी तिग्गा ने दिखाई स्वरोजगार से समृद्धि की राह
कौशल विकास योजना लाभ लेकर पश्चिमी सिंहभूम जिले के मनोहरपुर प्रखंड के तिरला गांव की आशा तिग्गा और शुभानी तिग्गा ने आत्मनिर्भरता की जो मिसाल पेश की है उसकी हर तरफ चर्चा हो रही है। अपनी मेहनत के बल पर आशा और शुभानी तिग्गा न केवल खुद कमाई कर रही हैं, बल्कि इलाके की अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ाने में जुटी हुई हैं।

आशा और शुभानी को चार वर्ष पहले गांव की ही एक महिला ने आजीविका मिशन के तहत महिला समूह से जोड़ा था। बाद में दोनों ने रातरानी नामक खुद का स्वयं सहायता समूह खड़ा किया। तीन वर्ष पहले उन्होंने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत मास्टर शेफ और कैटरिंग की ट्रेनिंग ली। फिर दोनों ने अपने ही स्वयं सहायता समूह से 20 हजार रुपये का लोन लेकर अन्नपूर्णा नामक कैटरिंग की शुरुआत की। देखते-देखते कैटरिंग का व्यवसाय चल निकाला और आय बढ़ती गई। आशा और शुभानी अब तक प्रखंड और प्रखंड के बाहर के कई इलाकों में भी कई आयोजनों में कैटरिंग का काम कर चुकी हैं। उनकी टीम अब तक लगभग डेढ़ लाख नकद मुनाफे के साथ पांच लाख रुपये से भी ज्यादा का बिजनेस कर चुकी है। आशा और शुभानी न सिर्फ खुद आगे बढ़ीं, बल्कि गांव की अन्य महिलाओं को भी कैटरिंग के काम में जोड़ा। फिलहाल, उनकी कैटरिंग टीम में कुल 11 महिला व एक पुरुष सदस्य शामिल हैं।

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