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हिन्दुस्तान पड़ताल: पाकिस्तान में जान का डर, यहां जीने के लिए जद्दोजहद

मजनू का टीला में रह रहे हिन्दू शरणार्थी पाकिस्तान से भागकर इसलिए आए थे कि उन्हें अल्पसंख्यक होने के कारण वहां जान का खतरा था, बेटियों का अपहरण कर लिया जाता था, धर्म बदलने को मजबूर किया था। भारत में...

हिन्दुस्तान पड़ताल: पाकिस्तान में जान का डर, यहां जीने के लिए जद्दोजहद
हिन्दुस्तान ,नई दिल्ली।Fri, 13 Dec 2019 05:57 AM
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मजनू का टीला में रह रहे हिन्दू शरणार्थी पाकिस्तान से भागकर इसलिए आए थे कि उन्हें अल्पसंख्यक होने के कारण वहां जान का खतरा था, बेटियों का अपहरण कर लिया जाता था, धर्म बदलने को मजबूर किया था। भारत में उन्हें इन सबका खतरा नहीं, लेकिन यहां जीने के लिए रोजाना जद्दोजहद करनी पड़ती है। बिजली के कनेक्शन नहीं हैं, पानी भी दो बार ही आता है। कागजात की कमी से बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं मिलता, सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं मिलता। नागरिकता बिल पास होने से वें खुश हैं। उम्मीद जगी है कि उन्हें भी आम भारतीय नागरिक की तरह जरूरी सुविधाएं मिलेंगी। पेश है अमित कसाना की रिपोर्ट...

नागरिकता बिल से नए उजाले की उम्मीद
मजनू का टीला स्थित पकिस्तानी हिन्दू शराणार्थियों की बस्ती में गुरुवार को उत्सव जैसा माहौल था। यहां मंदिर के बाहर लोग ढोल-नागाड़ों की थाप पर थिरक रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देशभक्ति के नारे लगा रहे थे। इन लोगों का कहना था कि नागरिकता संशोधन विधेयक के पास होने के बाद उनके जीवन में नई उम्मीद जगी है। 750 लोगों की इस बस्ती में प्रशासन ने सोलर पैनल लगवाए है, लेकिन उनकी क्षमता केवल चार घंटे है। ऐसे में यहां रहने वाले लोगों की दिनचर्या भी उसी के हिसाब से चलती है। उनकी कोशिश रहती है कि अंधेरा होने से पहले वो सभी जरूरी काम निपटा लें। कई बार बुजुर्ग अंधेरे में ठोकर खाकर गिर जाते हैं।

बस्ती में गंदगी का अंबार
बस्ती में गंदगी का अंबार है। सड़कें कच्ची हैं, जगह-जगह कीचड़ फैला रहता है। सीवर नहीं होने से गलियों में ही गंदा पानी बहता है। यहां मच्छर बहुत है, जिससे बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि आए दिन उन्हें और खासकर उनके बच्चों को पेट के संक्रमण से जुड़ी बीमारी होती रहती है। बस्ती यमुना से सटी हुई है, जिससे बाढ़ के समय पानी भी आ हाता है। रात में सांप और कीड़े-मकोड़े घूमते रहते हैं।

दो माह पहले पानी की पाइपलाइन
बस्ती में दो महीने पहले पानी की पाइपलाइन बिछाई गई है, जिसमें सुबह-शाम पानी आता है। इससे पहले टैंकर से यहां पानी आता था। यहां अलग-अलग जगह शौचालय बनाए गए हैं। लोग बांस और मिट्टी के कच्चे घरों में रहते हैं। बाढग्रस्त क्षेत्र होने के कारण लोगों ने अपने खर्च पर घरों के आसपास मलबा डलवाया है।

स्कूल में नहीं मिलता दाखिला
यहां रहने वाले बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं मिलता, कागजात की कमी बताकर उन्हें स्कूल से लौटा दिया जाता है। अगर किसी तरह दाखिला मिल भी जाए तो दूसरे बच्चे और शिक्षक भी भेदभाव करते हैं। बस्ती में आंगनबाड़ी है, जिसमें छोटे बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा और भोजन दिया जाता है। उनका कहना है कि नागरिकता न होने से उन्हें जरूरी दस्तावेज बनाने के लिए धक्के खाने पड़ते हैं।

मोबाइल के कवर बेचकर करते हैं गुजारा
बस्ती में रहने वाले काफी लोग मोबाइल कवर बेचकर गुजारा करते हैं। वहीं कुछ फैक्टरियों में मजदूरी करते हैं। बस्ती के बाहर जो लोग रेहड़ी लगाते हैं उनका आरोप था कि पुलिस और निगम अधिकारी उन्हें पैसों के लिए तंग करते हैं।

कब्रिस्तान की जमीं पर
हिन्दू शरणार्थियों की यह बस्ती कब्रिस्तान की जमीन पर बसाई गई है। लोगों ने बताया कि सालों से यहां मुर्दों को दफनाया तो नहीं जाता, लेकिन अब भी कभी-कभार खुदाई में जमीन से नर-कंकाल निकल आते हैं। यमुना से सटे होने के चलते आज भी लोग यहां मृतकों की अस्थियां डालने आते हैं। कई बार यमुना में अर्थी बहकर जाती दिखती हैं। बच्चों के यमुना में गिरने का डर बना रहता है।

समुदाय विशेष ने सताया
यहां रह रहे लोगों ने लोगों ने बताया कि वह पाकिस्तान में जमीदार प्रथा से परेशान थे। हिन्दू धर्म से होने के कारण वहां उनपर अत्याचार किया जाता था। अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर किया जाता था। इसके चलते ये लोग वर्ष 2000, 2001, 2013 और 2014 पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों से भागकर दिल्ली आए हैं। इस समय यहां 135 परिवार रह रहे हैं।

ईश्वर के घर आई नागरिकता
यहां नौ दिसंबर को ईश्वर और आरती के घर बेटी का जन्म हुआ। इसी दिन नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पास हुआ था। इससे खुश होकर दोनों ने अपनी बेटी का नाम नागरिकता रख दिया। ईश्वर का परिवार 2013 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत से दिल्ली आया था। ईश्वर मजदूरी करता है, उसका तीन साल का एक बेटा लोकेश भी है। आरती ने कहा कि यह बिल पास होने से अब उन्हें भारत की नागरिकता मिलेगी, उनके बच्चों का भविष्य बनेगा। इससे उनका जीवनस्तर भी बदलेगा।

छात्र मुकेश ने कहा- मैं इंजीनियर बनना चाहता हूं। मुझे गाने का भी शौक है। नए बिल के बाद अब मैं पासपोर्ट बनवाऊंगा और पढ़ाईकर अपने परिवार के हालात मजबूत करने की कोशिश करूंगा।

गृहिणी पूजा ने कहा- मुझे उम्मीद है कि इस बिल के आने के बाद मेरे बच्चों का भविष्य सुधरेगा। वह पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़े हो पाएंगे। उन्हें समाज इज्जत की नजरों से देखा जाएगा।

छात्र अमर राय ने कहा- झगड़ा होने के बाद स्कूल छोड़ दिया। नए बिल से हमें हमारा अधिकार मिलेगा। हम भी समाज में जगह पा सकेंगे।

मजदूर महादेव अडवाणी ने कहा- केंद्र सरकार ने हमारे हित में बिल बनाया है। इससे हमें ओर सुविधाएं मिलेंगी। हम लोग मजबूरी में अपने घर व जमीन छोड़कर भारत में आए थे।


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पकिस्तानी हिन्दू शराणार्थी

कहां से आए : करांची, मीरपुर खास, पाकिस्तान के हैदराबाद और राजस्थान से

दिल्ली में कहां रहते हैं  : मजनू का टीला, आजादपुर, रोहिणी सेक्टर 11 और 22, आदर्श नगर, मछली मार्किट, वजीराबाद सिग्नेचर ब्रिज, बुराड़ी

नंबर गेम
6 स्थानों पर दिल्ली में रहते हैं पकिस्तानी हिन्दू शराणार्थी
500 से अधिक लोग प्रत्येक बस्ती में

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