EXCLUSIVE: धरती पर कम पड़े, तो चांद से आएंगे संसाधन- के. शिवन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इन दिनों एक तरफ चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण की तैयारियों में जुटा है, तो दूसरी तरफ उसने अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की महत्वाकांक्षी परियोजना की तैयारियां भी तेज कर...
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इन दिनों एक तरफ चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण की तैयारियों में जुटा है, तो दूसरी तरफ उसने अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की महत्वाकांक्षी परियोजना की तैयारियां भी तेज कर दी हैं। अप्रैल के अंत में चंद्रयान का प्रक्षेपण होना तय है तथा अगले साल दिसंबर में गगनयान की पहली परीक्षण उड़ान होगी, जिसमें एक रोबोट को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इस तैयारियों और भावी योजनाओं को लेकर इसरो के चेयरमैन के. शिवन से हिन्दुस्तान के ब्यूरो चीफ मदन जैड़ा और विशेष संवाददाता स्कंद विवेक धर ने विस्तृत बातचीत की-
प्रश्न- चंद्रयान-2 और गगनयान परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य क्या है?
जवाब- चंद्रयान-2 का हमारा मुख्य मकसद चंद्रमा पर उतरना और वैज्ञानिक महत्व के परीक्षण करना है। इससे पहले चंद्रयान-1 से जब हम चंद्रमा पर गए थे, तब हमने सिर्फ तस्वीरें खींची थीं और उनका विश्लेषण किया था। वहीं, गगनयान का उद्देश्य मानव को अंतरिक्ष में भेजना और उसे सुरक्षित वापस लाना है। यह प्रक्रिया सुनने में साधारण लग रही है, लेकिन इसके जरिए हम कई नई तकनीकें विकसित करेंगे। यह देश के नौजवानों को विज्ञान की ओर आकर्षित करने में भी खासी कारगर होगी।
प्रश्न: चंद्रयान-2 की लांचिंग में लगातार विलंब होता जा रहा है, ऐसा क्यों?
जवाब: हां, इसमें विलंब हुआ है। इसे दरअसल पिछले साल अप्रैल में ही प्रक्षेपित किया जाना था। लेकिन जब हमारी सारी तैयारियां पूरी हो गईं, तो राष्ट्रीय विशेषज्ञ समीक्षा समिति ने चंद्र सतह पर उतारे जाने वाले रोवर में कुछ सुधार करने के सुझाव दिए। वे सुझाव महत्वपूर्ण थे और मिशन के लिए उपयोगी भी थे। इसलिए इन बदलावों को अंजाम दिया गया। उपग्रह में भी कुछ जरूरी सुधार किए गए हैं। लेकिन अब इसके प्रक्षेपण की तिथि तय हो गई है। इसी साल 25-30 अप्रैल के बीच में इसका प्रक्षेपण किया जाएगा।
प्रश्न: चंद्रयान-2 में कितने भारतीय और कितने विदेशी शोध उपकरण हैं और यह चंद्रयान-1 से किस तरह अलग है?
जवाब: चंद्रयान-2 में कोई भी विदेशी शोध उपकरण (पेलोड) नहीं है। सभी पेलोड भारतीय हैं। इनकी संख्या 13 है। ये पेलोड चंद्रयान-1 पर भेजे गए पेलोड के अपडेटेड संस्करण हैं। चंद्रयान-1 के विपरीत ये पेलोड चंद्रमा की सतह पर उतरकर परीक्षण करने के लिहाज से तैयार किए गए हैं। इसलिए ये हमें अपेक्षित सटीक जानकारियां देंगे।
प्रश्न: चंद्रयान-2 से आपको किस तरह की नई जानकारियां मिलने की उम्मीद है?
जवाब: चंद्रयान-2 के माध्यम से हमें चंद्रमा की उपसतह और चंद्रमा की संरचना से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी। यह अभी तक हमारे पास नहीं है। फिर चंद्रयान-2 से हम रोवर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उस स्थान पर उतारेंगे, जहां अभी तक कोई भी चंद्रमिशन नहीं पहुंचा है। इसलिए निश्चित रूप से हमें चांद के बारे में कुछ नई जानकारियां मिलेंगी।
प्रश्न: क्या आप चंद्रमा से किसी तरह का सैंपल, जैसे मिट्टी या चट्टान लेकर आने की बात कह रहे हैं?
जवाब: नहीं, हम चंद्रमा पर से कुछ भी सैंपल लेकर नहीं आएंगे। जो भी अध्ययन होगा, वहीं पर होगा और उससे प्राप्त आंकड़े हमें मिलेंगे। उन आंकड़ों और सूचनाओं के आधार पर ही नई खोज होगी।
प्रश्न: गगनयान मिशन के लिए आपकी क्या-क्या तैयारियां अब तक हुई हैं?
जवाब: गगनयान की तैयारियों के लिए हमने एक अलग यूनिट की स्थापना की है। वैज्ञानिकों की एक टीम तैयार की गई है, जो इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर कार्य कर रही है। इसी प्रकार, गगनयान में भेजे जाने वाले तीन अंतरिक्ष यात्रियों के चयन की प्रक्रिया भी शुरू की गई है। उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए आवश्यक तैयारियां भी की जा रही हैं। असल में, गगनयान की तीन उड़ानें होंगी। पहली उड़ान दिसंबर 2020 में होगी, जिसमें इंसान नहीं, बल्कि रोबोट भेजे जाएंगे। दूसरी उड़ान जुलाई 2021 में होगी। इसमें भी अंतरिक्ष यात्री नहीं होंगे। लेकिन तीसरी उड़ान, जो दिसंबर 2022 में अपना सफर तय करेगी, उसमें तीन अंतरिक्ष यात्री भेजे जाएंगे।
प्रश्न: क्या गगनयान अभियान के ये अंतरिक्ष यात्री वायुसेना के पायलट होंगे?
जवाब: देखिए, अंतरिक्ष यात्रियों को उड़ान का लंबा अनुभव होना चाहिए। इसलिए हम वायुसेना की मदद ले रहे हैं। वायुसेना के पायलटों को उड़ान का अच्छा-खासा अनुभव होता है। इसलिए यह बहुत संभव है कि वे वायुसेना के पायलट ही हों। हम जल्द ही इसे अंतिम रूप देंगे।
प्रश्न: क्या हम कभी चंद्रमा या अंतरिक्ष के किसी अन्य ग्रह से खनिज संपदा पृथ्वी पर ला सकेंगे?
जवाब: पूरी दुनिया के वैज्ञानिक समाज में इस समय इस बात पर काफी जोर दिया जा रहा है कि हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए पृथ्वी के बाहर से खनिज संपदा धरती पर लाई जाए। आप अपने देश को भी देखें, तो हमारी खनिज संपदा लगातार घटती जा रही है, जबकि संसाधनों की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में, भविष्य की हमारी जरूरतों को पूरा करने में अंतरिक्ष में संसाधनों की खोज हमारे लिए काफी मददगार साबित होगी। भविष्य में वहीं से हमें संसाधन प्राप्त होंगे।
प्रश्न: क्या भारत में स्पेस टूरिज्म अगले 10 साल में वास्तविकता में बदल सकता है?
जवाब: बिल्कुल। यह संभव है। जैसे ही हम गगनयान परियोजना के जरिए मानव को अंतरिक्ष में भेजने की तकनीकी तैयार कर लेंगे और हमारा मिशन कामयाब होगा। इससे स्पेस टूरिज्म का सपना भी एक वास्तविकता में तब्दील हो जाएगा।
प्रश्न: ऐसे में, गगनयान के बाद हमारा अगला लक्ष्य क्या होगा? क्या हम और गहरे अंतरिक्ष (डीप स्पेस) में जाने की कोशिश करेंगे?
जवाब: गगनयान परियोजना पूरी होने के बाद हम अगले लक्ष्य के तौर पर अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन बनाकर वहां पर मानव बसाहट भेजने के बारे में सोच रहे हैं। स्पेस स्टेशन में बैठकर एक टीम अपनी खोज करेगी। इसके बाद हमारा अगला कदम क्या होगर, इसके बारे में वक्त और परिस्थिति के हिसाब से तय करेंगे।
प्रश्न: तो क्या कोई भी अंतरिक्ष में जाकर यह कार्य कर सकता है?
जवाब: अंतरिक्ष के एक्प्लोरेशन की एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। इसके तहत पृथ्वी की सतह से 100 किलोमीटर के ऊपर स्पेस में किसी का भी कोई मालिकाना हक नहीं है। यह मानवता के उपयोग के लिए खुला हुआ है। कोई भी देश वहां आकर अपने शोध और परीक्षण कर सकता है।
प्रश्न: क्या चंद्रयान-3 को लेकर भी कोई योजना है या चंद्रमा पर मानव को भेजने को लेकर कोई नई योजना के बारे में विचार चल रहा है?
जवाब: फिलहाल तो हमारा ऐसा कोई विचार नहीं है। इस समय तो हमारा लक्ष्य चंद्रयान-2 और गगनयान की कामयाब लांचिंग है। इन परियोजनाओं के पूरा होने के बाद ही किसी नई परियोजना के बारे में विचार किया जाएगा। जाहिर सी बात है कि चंद्रयान-2 की सफलता ही चंद्रयान-3 की भूमिका तैयार करेगी।
प्रश्न: आपने निजी क्षेत्र को रॉकेट लांचिंग में शामिल करने की बात कही है। निजी क्षेत्र इसमें अपनी भूमिका कैसे निभाएगा?
जवाब: आज भी हमारे प्रक्षेपण यान पीएसएलवी को उद्योग जगत ही बनाता है। इस समय उद्योग हमारे लिए एक वेंडर के तौर पर काम करते हैं, जबकि हम उनसे खरीदने से लेकर लांचिंग तक के काम कराते हैं। दरअसल, इस काम में बहुत ज्यादा मानव संसाधन लगता है। जैसे-जैसे लांचिंग की संख्या बढ़ती जा रही है, हमारा मानव संसाधन कम पड़ता जा रहा है। हमारे लोगों के पास रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट के काम के लिए समय कम ही बचता है, जो कि हमारा मुख्य काम है। इसलिए अब हम इंडस्ट्री से एक वेंडर की जगह चरणबद्ध तरीके से काम करवाना चाह रहे हैं। इससे लांचिंग के लिए हमें काफी कम लोगों की जरूरत पड़ेगी।
प्रश्न: क्या दुनिया के अन्य देशों में भी रॉकेट लांचिंग में निजी क्षेत्र को शामिल किया जाता है?
जवाब: दुनिया के उन सभी देशों में ऐसा होता है, जो रॉकेट लांचिंग करते हैं।
प्रश्न: अभी भारत के कितने उपग्रह अंतरिक्ष में हैं और आने वाले समय में कितने और उपग्रहों की आवश्यकता पड़ सकती है?
जवाब: इस समय हमारे 47 उपग्रह अंतरिक्ष में तैनात हैं और हमें इस समय ही 54 और उपग्रहों की आवश्यकता है। इससे आप समझ सकते हैं कि उपग्रहों की मांग कितनी ज्यादा है। इसलिए इसरो नए उपग्रहों के प्रक्षेपण पर तेजी से कार्य कर रहा है।
प्रश्न: स्वदेशी जीपीएस नाविक आखिर कब से पूरी तरह से कार्य करना शुरू करेगा?
जवाब: यह तो पूरी तरह से कार्य कर रहा है। सरकारी महकमों, सुरक्षा बलों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल हो रहा है। जल्द ही यह मोबाइल में भी कार्य करने लगेगा।
प्रश्न: अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर भी क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कोई असर पड़ रहा है?
जवाब: हां, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई अंतरिक्ष कार्यक्रमों काफी मददगार साबित हो रही है। फिलहाल यह दो कामों में हमारी मदद कर रही है। एक, अंतरिक्ष में ह्यूमनॉयड रोबोट और मानव मिशन भेजने में और दूसरा अंतरिक्ष से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करने में। उदाहरण के लिए, अंतरिक्ष से हम लाखों की संख्या में तस्वीरें हासिल कर लेते हैं। ऐसे में, इन तस्वीरों का विश्लेषण करने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हमें काफी मदद मिलती है। इसके जरिये कम समय में इन तस्वीरों का कहीं ज्यादा सटीक विश्लेषण करना संभव हो सका है।
प्रश्न: इसरो की तकनीक से आम लोगों का जीवन किस प्रकार बेहतर हुआ है?
जवाब: रूटीन अंतरिक्ष कार्यक्रमों के अलावा इसरो की कई तकनीक है, जिनसे आम लोगों को सीधे फायदा पहुंचता है। जैसे टेलीविजन प्रसारण का लाभ सभी को मिलता है। आज इसरो के उपग्रहों से देश-दुनिया में 883 चैनलों का प्रसारण हो रहा है। छह करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं को डीटीएच सेवाएं मिल रही हैं। 1,404 उपग्रह भू केंद्रों के जरिए संचार सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। 130 से ज्यादा टेली मेडिसिन सेवाएं संचालित हो रही हैं। करीब 44 टेली एजुकेशन नेटवर्क चल रहे हैं।
इसरो के जियो स्पाइटल एप्लीकेशन के जरिए वनों, फसलों आदि की मैपिंग होती है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत भी जियो टैगिंग का कार्य इसरो की मदद से किया जा रहा है। आपदा प्रबंधन से जुडे़ विभिन्न कार्य में इसरो के उपग्रह एवं एप्लीकेशन मदद प्रदान कर रहे हैं। हम मछुआरों को समुद्र की हरेक हलचल के मद्देनजर जो चेतावनी जारी करते हैं, इसके लिए इसरो की तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस प्रकार, इसरो की पहल से आम लोगों के जीवन को काफी फायदा पहुंचा है।
प्रश्न: आदित्य मिशन क्या है?
जवाब: आदित्य मिशन के तहत सूरज से जुड़े काफी सारे अध्ययन किए जाएंगे। इस परियोजना के तहत हम यह पता करेंगे कि सूर्य की किरणें आखिर कैसे पैदा होती हैं और फिर ये कैसे फैलती हैं। इसी साल आदित्य एल-1 उपग्रह के प्रक्षेपण की योजना है।
प्रश्न: स्पेस कार्यक्रम में हम चीन के बराबर कब तक पहुंच जाएंगे?
जवाब: मैं भारत और चीन की तुलना नहीं करना चाहूंगा। चीन चीन है और भारत भारत है। गगनयान में भेजे जाने वाले तीन अंतरिक्ष यात्रियों के चयन की प्रक्रिया शुरू की गई है। अंतरिक्ष यात्रियों को उड़ान का लंबा अनुभव होना चाहिए। हम वायुसेना की मदद ले रहे हैं। वायुसेना के पायलटों को उड़ान का अच्छा अनुभव होता है।