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रैनसमवेयर-डी डॉस बने हैकरों के बड़े हथियार, कंपनियों को लगा रहे चूना

हैकिंग के जरिए साइबर अपराध करने वालों के लिए डी डॉस और रैनसमवेयर अटैक एक बड़ा हथियार बनते जा रहे हैं। साइबर अपराधी इन तकनीक का उपयोग सुरक्षा एजेंसियों की सूचनाएं हासिल करने और बड़ी कंपनियों को आर्थिक...

रैनसमवेयर-डी डॉस बने हैकरों के बड़े हथियार, कंपनियों को लगा रहे चूना
नई दिल्ली | रमेश त्रिपाठीWed, 05 Dec 2018 07:17 AM
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हैकिंग के जरिए साइबर अपराध करने वालों के लिए डी डॉस और रैनसमवेयर अटैक एक बड़ा हथियार बनते जा रहे हैं। साइबर अपराधी इन तकनीक का उपयोग सुरक्षा एजेंसियों की सूचनाएं हासिल करने और बड़ी कंपनियों को आर्थिक चोट पहुंचाने के लिए कर रहे हैं। डी डॉस अटैक वेबसाइट्स को हैक करने के लिए किया जाता है और रैनसमवेयर अटैक के जरिए सिस्टम को लॉक कर उगाही के लिए मजबूर किया जाता है। पिछले दिनों साइबर सेल के हत्थे चढ़े दो हैकर्स से पूछताछ में यह खुलासा किया।

जांच एजेंसियों की मानें तो ऐसे साइबर अटैक का मुख्य मकसद भारत विरोधी अभियान चलाना है। दरअसल, साइबर अपराधी विभिन्न वेबसाइट्स को हैक कर पढ़े-लिखे नौजवानों का ब्रेनवॉश कर उन्हें भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं। कई सरकारी एवं गैर सरकारी साइट्स से मिलती-जुलती वेबसाइट्स बनाकर और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए इस तरह की गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। कुछ समय पहले ‘थर्ड आई हैकर्स ग्रुप’ ब्लैक लीट्स, पाकिस्तान साइबर आर्मी, पाकिस्तान साइबर थड्र्स, टीम लीट्स नाम के ग्रुप ने सैकड़ों भारतीय वेबसाइट्स को हैक उन पर भारत विरोधी नारे लिख दिए थे। 

 

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ऐसे होती है हैकिंग

साइबर सेल के हत्थे चढ़े दोनों हैकर्स ने खुलासा किया कि वे अप्रैल-मई 2017 के बीच कश्मीर में सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध को वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) के जरिए तोड़कर इंटरनेट इस्तेमाल करते थे।

क्या है डी डॉस हमला 
साइबर विशेषज्ञों की मानें तो ‘डी डॉस’(डिनायल ऑफ सर्विस) अटैक का मतलब है कि किसी भी वेबसाइट पर उसकी क्षमता से ज्यादा ट्रैफिक बढ़ाते हुए  उसके सर्वर को डाउन करना और फिर सॉफ्टवेयर के जरिए उस साइट पर अपना नियंत्रण करना। 

इस तरह नुकसान पहुंचाता है रैनसमवेयर
रैनसमवेयर एक मालवेयर टूल है, जिसका उपयोग संचार सिस्टम को बाधित करने और कंप्यूटर, लैपटॉप एवं अन्य तकनीकी माध्यमों को संक्रमित करना है। इसके जरिए मई, 2017 में वैश्विक स्तर पर साइबर हमला हुआ था। रैनसम अंग्रेजी शब्द है, जिसका अर्थ फिरौती है। इसलिए इस साइबर हमले को फिरौती के लिए हमला करने वाला मालवेयर भी कहते हैं। दरअसल, इस मालवेयर के जरिए किए गए हमले के बाद संक्रमित कंप्यूटरों ने काम करना बंद कर दिया था। इन कंप्यूटरों को खोलने के लिए बिटकॉइन के रूप में 300 से 600 डॉलर तक की फिरौती की मांग की गई थी। 

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वेब एप्लीकेशन हमले में भारत 7वें नंबर पर

साइबर विशेषज्ञों के अनुसार, वेब एप्लीकेशन अटैक (डब्ल्यूएए) में भारत 7वें नंबर पर है। इसमें भारत का फाइनेंस सेक्टर मुख्य तौर पर साइबर अपराधियों के निशाने पर रहा है। यह जानकारी वर्ष 2017 की ग्लोबल साइबर सिक्योरिटी फर्म मैकएफी और सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआइएस) ने इकोनॉमिक इंपैक्ट ऑफ साइबर क्राइम- नो स्लोइंग डाउन नामक अपनी रिपोर्ट में दी है। विशेषज्ञों की मानें तो फिशिंग, वेबसाइट घुसपैठ, वायरस और रैनसमवेयर के जरिए साइबर अपराधी भारत में तेजी से बढ़ते बैंकिंग, फाइनेंस और इंश्योरेंस सेक्टर को निशाना बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

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