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गुरु नानक देव की अयोध्या यात्रा सुबूत है कि विवादित स्थल ही राम जन्मस्थान, SC के फैसले में जिक्र

अयोध्या विवाद में फैसले तक पहुंचने के लिए संविधान पीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट को अहम आधार बनाया। पीठ ने कहा कि एएसआई के साक्ष्यों को महज राय बताना इस संस्था के साथ अन्याय...

गुरु नानक देव की अयोध्या यात्रा सुबूत है कि विवादित स्थल ही राम जन्मस्थान, SC के फैसले में जिक्र
विशेष संवाददाता,नई दिल्लीSun, 10 Nov 2019 07:43 AM
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अयोध्या विवाद में फैसले तक पहुंचने के लिए संविधान पीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट को अहम आधार बनाया। पीठ ने कहा कि एएसआई के साक्ष्यों को महज राय बताना इस संस्था के साथ अन्याय होगा। कोर्ट ने यह भी माना कि यह विवाद अचल संपत्ति के ऊपर है। अदालत स्वामित्व का निर्धारण धर्म या आस्था के आधार पर नहीं, बल्कि मौजूदा सबूतों पर करती है। इस मामले में भी हमने आस्था नहीं, कानून के मुताबिक ही फैसला लिया है।

उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को अयोध्या मामले में हर पक्ष की दलीलों को केंद्रित करते हुए फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई में मिले साक्ष्यों से साबित होता है कि मस्जिद के नीचे कोई ढांचा था,जो इस्लामिक नहीं था।

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पीठ ने कहा, अधिसंभाव्यता की प्रबलता के आधार पर अंदर पाई गई संरचना की प्रकृति इसके हिंदू धार्मिक मूल का होने का संकेत देती है जो 12 वीं सदी की है। एएसआई की खुदाई से यह भी पता चला कि विवादित मस्जिद पहले से मौजूद किसी संरचना पर बनी है। मस्जिद का निर्माण कुछ इस तरह से हुआ कि पहले से मौजूद ढांचे की दीवारों का इस्तेमाल कर स्वंतत्र नींव बनाने से बचा गया।

एएसआई की अंतिम रिपोर्ट बताती है कि खुदाई के क्षेत्र से मिले साक्ष्य दर्शाते हैं कि वहां अलग-अलग स्तरों पर अलग-अलग सभ्यताएं रही हैं जो ईसा पूर्व दो सदी पहले उत्तरी काले चमकीले मृदभांड तक जाती हैं। खुदाई ने पहले से मौजूद 12वीं सदी की संरचना की मौजूदगी की पुष्टि की है। संरचना विशाल है और उसके 17 लाइनों में बने 85 खंभों से इसकी पुष्टि भी होती है। पुरातात्विक साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद शीर्ष अदालत ने कहा कि नीचे बनी हुई वह संरचना जिसने मस्जिद के लिए नींव मुहैया करायी, स्पष्ट है कि वह हिन्दू धार्मिक मूल का ढांचा था।

जन्मस्थान कानूनी व्यक्ति नहीं: पीठ ने हिंदू पक्षकारों की भी कई दलीलों को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि आज कानून को यह स्वीकार करना है कि अचल संपत्ति कानूनी व्यक्ति है। धार्मिकता से दिल और दिमाग विचलित होते हैं। कोर्ट यह स्थिति अख्तियार नहीं कर सकता, जिससे किसी एक धर्म की आस्था और विश्वास को प्राथमिकता मिले। इसी आधार पर कोर्ट ने हिंदू पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया कि पूरे जन्मस्थान को ही कानूनी व्यक्ति माना जाए।

असाधारण शक्ति का इस्तेमाल किया: शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिली असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार को मस्जिद के लिए जमीन देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अयोध्या के निश्चित भागों के अधिग्रहण कानून, 1993 की धारा 6 और 7 के तहत कार्ययोजना बनाई जाए, जिसमें धारा 6 के तहत एक ट्रस्ट का गठन किया जाए। इस ट्रस्ट में मंदिर का प्रबंधन और उससे जुड़े मसलों का हल होगा। अदालत ने यह भी कहा कि वह तय करे कि निर्मोही अखाड़े को प्रतिनिधित्व कैसे दिया जाए।

सिलसिलेवार तरीके से सुनाया फैसला : सुबह 10:30 बजे अदालत की कार्यवाही शुरू होते ही सबसे पहले केस नंबर 1501 शिया बनाम सुन्नी वक्फ बोर्ड में पीठ ने एकमत से फैसला दिया। अदालत ने शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया। इसके बाद केस नंबर 1502  पर फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमें देखना है कि एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने। मस्जिद 1528 की बनी बताई जाती है, लेकिन कब बनी इससे फर्क नहीं पड़ता। मस्जिद में मूर्ति रखी गई। यह जमीन नजूल की है, लेकिन राज्य सरकार उच्च न्यायालय में कह चुकी है कि वह जमीन पर दावा नहीं करना चाहती।  संविधान पीठ ने कहा, कोर्ट हदीस की व्याख्या नहीं कर सकता। नमाज पढ़ने की जगह को मस्जिद मानने के हक को हम मना नहीं कर सकते। 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट धर्मस्थानों को बचाने की बात कहता है। यह ऐक्ट भारत की धर्मनिरपेक्षता की मिसाल है।

निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज : मुख्य न्यायाधीश ने कहा, सूट नंबर 1(विशारद) ने अपने साथ दूसरे हिंदुओं के भी हक का हवाला दिया। सूट 3 (निर्मोही) सेवा का हक मांग रहा है, कब्जा नहीं, लेकिन निर्मोही अखाड़े का दावा छह साल की समय सीमा के बाद दाखिल हुआ। इसलिए खारिज है। अदालत ने कहा,निर्मोही अखाड़ा अपना दावा साबित नहीं कर पाया है। निर्मोही सेवादार नहीं है। जस्टिस गोगोई ने कहा, सूट 5 (रामलला) हद के अंदर माना जाएगा। रामलला न्याय से संबंधित व्यक्ति हैं, लेकिन राम जन्मस्थान को यह दर्जा नहीं दे सकते। इसके बाद कोर्ट ने कहा, पुरातात्विक सबूतों की अनदेखी नहीं की जा सकती। 

वक्फ बोर्ड ने अपना दावा बदला : संविधान पीठ ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बहस के दौरान अपने दावे को बदला। पहले कुछ कहा, बाद में मस्जिद के नीचे मिली संरचना को ईदगाह कहा। साफ है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी।

गुरु नानक देव की यात्रा पुख्ता प्रमाण : अदालत ने कहा कि भगवान राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिए सन 1510-11 में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने अयोध्या की यात्रा की थी, जो हिंदुओं की आस्था और विश्वास को और दृढ़ करता है कि यह स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है। संविधान पीठ ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि पांच न्यायाधीशों में से एक ने इसके समर्थन में एक अलग से सबूत रखा। इसमें कहा कि राम जन्मभूमि की सही जगह की पहचान करने के लिए कोई सामग्री नहीं है, लेकिन राम की जन्मभूमि के दर्शन के लिए गुरु नानक देवजी की अयोध्या यात्रा एक ऐसी घटना है, जिससे पता चलता है कि 1528 ईसवी से पहले भी तीर्थयात्री वहां जा रहे थे।

सुन्नी बोर्ड का दावा खारिज : संविधान पीठ ने ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि 6 दिसंबर 1992 को स्टेटस का ऑर्डर होने के बावजूद ढांचा गिराया गया, लेकिन सुन्नी बोर्ड एडवर्स पजेशन की दलील साबित करने में नाकाम रहा है। लेकिन 16 दिसंबर 1949 तक नमाज हुई। हालांकि, टाइटल सूट-चार और पांच में हमें संतुलन बनाना होगा। हाईकोर्ट ने तीन हिस्से किए यह तार्किक नहीं था।

मध्यस्थता समझौता सशर्त, बाध्यकारी नहीं : न्यायालय ने कहा कि विवाद को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए जिस मध्यस्थता समझौते पर कुछ पक्षकार राजी हुए थे, उसे बाध्यकारी नहीं माना जा सकता।  

1045 पेजों पर लिखा गया था सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला
929  पेजों पर सभी जजों ने एकमत से दिया फैसला
116  पेजों पर एक जज की राय अलग थी, पर नाम का जिक्र नहीं

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