इंटरव्यू: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बोले- अच्छे वक्ता ही नहीं बहुत कुछ थे वाजपेयी
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पांच दशकों से अधिक समय तक सियासी गलियारे में देखा है, और कांग्रेस व भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के रूप में दोनों (प्रणब...
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पांच दशकों से अधिक समय तक सियासी गलियारे में देखा है, और कांग्रेस व भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के रूप में दोनों (प्रणब मुखर्जी और अटल बिहारी वाजपेयी) सदन में एक-दूसरे से जमकर बहस भी करते रहे। इस दरम्यान दोनों में ऐसी गहरी दोस्ती विकसित हुई, जो एक-दूसरे के सम्मान और आदर पर टिकी थी। प्रणब मुखर्जी ने सौभद्र चटर्जी और प्रशांत झा से एक इंसान, राजनेता, प्रधानमंत्री और दोस्त के रूप में वाजपेयी से जुड़ी अपनी यादें साझा की हैं। बातचीत के संपादित अंश:
-अटल बिहारी वाजपेयी और आपकी दोस्ती पांच दशकों से भी अधिक पुरानी थी। यह दोस्ती किस तरह आगे बढ़ी?
मेरी जब उनसे पहली बार मुलाकात हुई, तो मैं संसद में उनको सुनता रहता था, पर हम निजी तौर पर एक-दूसरे को नहीं जानते थे। हालांकि वह मौका मुझे सही-सही याद नहीं आ रहा, जब मेरी उनसे पहली बार मुलाकात हुई थी।
- दोस्त के अलावा, वाजपेयी और आप पड़ोसी भी थे। एक बार तो आपके कुत्ते ने उनको काट खाया था?
(हंसते हुए) ओह, यह एक लंबी कहानी है। हम ‘मॉर्निंग वाक’ पर साथ जाते थे। मगर एक सुबह, मैं उनके साथ नहीं जा सका। उस दिन संसद में विपक्षी दलों के साथ बैठक में मेरी उनसे मुलाकात हुई। उनके हाथ में पट्टी बंधी थी। इसीलिए मैंने उनसे पूछा, ‘क्या हुआ?’ उनका जवाब था, ‘आपके कुत्तों ने यह किया है।’ असल में, उनके पास एक छोटा कुत्ता था। मेरी पत्नी (दिवंगत शुभ्रा मुखर्जी) ने मुझे बताया कि मेरे कुत्ते ने संभवत: उनके कुत्ते पर हमला कर दिया था और जैसे ही वाजपेयीजी अपने कुत्ते को बचाने गए, वह जख्मी हो गए।
- वह भोजन के बड़े शौकीन थे।
हां, और मेरी पत्नी अक्सर उनके लिए खाना बनाया करती थी। हमारा घर एक-दूसरे से सटा था और उन्होंने एक तरफ की दीवार पर गेट बना दिया था, ताकि वे लोग आसानी से हमारे घर आ सकें। वह मछली बड़े चाव से खाते थे। नमिता (उनकी दत्तक बेटी) हमारे घर में बराबर खेलने आया करती। मेरी पत्नी और श्रीमती कौल (नमिता की मां) अच्छी दोस्त बन गई थीं। जब नमिता का विवाह तय हुआ, तो मेरी पत्नी ने तैयारियों में काफी मदद की, क्योंकि दूल्हा बंगाली था।
- एक सांसद के रूप में वाजपेयी में किस तरह के गुण थे?
वह एक उम्दा सांसद थे और लोगों को अपने साथ लेकर चलना जानते थे। मुझे लगता है कि अब तक जिन सांसदों से मैं मिला हूं, उनमें उन्हे मैं शीर्ष के सांसदों में रखना पसंद करूंगा। मुझे याद है कि एक बार मैंने संसद में दिल्ली सेल्स टैक्स बिल पेश किया। उस समय वाजपेयीजी नई दिल्ली से सांसद नहीं थे। मगर तथ्यों और आंकड़ों को बेहतरीन तरीके से पेश करने के धनी वाजपेयीजी ने तर्क दिया कि केंद्रशासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली को नुकसान उठाना पड़ रहा है; जहां पड़ोसी राज्यों को सेल्स टैक्स लगाने की छूट है, वहीं दिल्ली को यह आजादी नहीं है। आखिरकार, सरकार इस पर सहमत हुई।
- वाजपेयी हमेशा नेहरू का जिक्र किया करते। उन्हें नेहरू के प्रशंसक के रूप में भी देखा गया।
उन्होंने कुछ जगहों पर नेहरू का जिक्र किया है, पर भारत में संसदीय लोकतंत्र को शुरू करने और उसे स्थिर बनाने में नेहरू के योगदान का वह हमेशा सम्मान किया करते।
- इंदिरा गांधी के साथ उनका कैसा रिश्ता था?
वह श्रीमती गांधी के बड़े आलोचकों में एक थे, मगर हमें यह भी याद रखना चाहिए कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद उन्होंने श्रीमती गांधी को दुर्गा कहा था, वह भी संसद के सेंट्रल हॉल में हुए एक कार्यक्रम में। जाहिर है, कोई भी इंसान इस तरह किसी की प्रशंसा नहीं कर सकता, जब तक कि वह उसके कामों का कायल न हो?
- वाजपेयी 1977 में भारत के विदेश मंत्री बने। साउथ ब्लॉक के उस दौर को आप कैसे देखते हैं?
मैं उनका निष्पक्ष मूल्यांकन शायद नहीं कर सकता, क्योंकि हम (कांग्रेसी) उनके ‘वास्तविक गुटनिरपेक्ष सिद्धांत’ से सहमत नहीं रहे हैं। हमारा कहना था कि गुट निरपेक्ष, गुट निरपेक्ष ही है, इसमें किसी विशेषण की जरूरत नहीं। मगर उनका कहना था कि हमारी गुट निरपेक्ष नीति अमेरिका और सोवियत संघ को लेकर एक समान नहीं है। हां, विभिन्न देशों के दौरे के दौरान उन्होंने खासा सुर्खियां बटोरी। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी बोलने वाले वह पहले व्यक्ति भी बने।
- प्रधानमंत्री के रूप में आप उन्हें किस तरह देखते हैं?
वह एक अच्छे प्रधानमंत्री और नेता थे। इतिहास उनके साथ न्याय करेगा, पर मैं समझता हूं कि वह काफी उदार इंसान थे। उन्होंने ही विपक्षी दलों के सदस्यों को भी संयुक्त राष्ट्र महासभा में भेजने का एक सिस्टम बनाया। हालांकि इस परंपरा की नींव जवाहरलाल नेहरू ने डाली थी।
- बतौर प्रधानमंत्री उनकी विदेश नीति कैसी थी?
पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने और कश्मीर मसले का हल निकालने के लिए उन्होंने गंभीर कोशिश की थी। यह अलग बात है कि परवेज मुशर्रफ के साथ आगरा शिखर बैठक नाकाम रही, पर लाहौर बस यात्रा उनका एक गंभीर प्रयास था। उनके खाते में कुछ अन्य उपलब्धियां भी हैं। मसलन, साल 2004 की सार्क बैठक में जो समझौता हुआ था, उसके शब्द हैं- ‘भारत विरोधी ताकतों को पाकिस्तान अपनी जमीन के किसी भी हिस्से के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देगा।’ पाकिस्तान का यह वादा आज भी उसे आईना दिखाने में हमारा बड़ा हथियार है।
- 2004 के चुनाव में वाजपेयी सरकार क्यों हार गई?
2004 का चुनाव समय-पूर्व कराने का उनका अनुमान गलत निकला। उन्हें यह ट्रेंड देखना चाहिए था कि कांग्रेस बढ़ रही थी। 2003 की सर्दियों में चार राज्यों यानी मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए थे। इनमें से तीन राज्यों में उनकी जीत हुई। इसी कारण उनके कुछ सहयोगियों की समय-पूर्व आम चुनाव कराने की राय बनी। हालांकि उन्होंने एक और असाधारण काम किया। उन्होंने 2003 में संसद की शीतकालीन सत्र को अनिश्चितकालीन समय तक स्थगित नहीं किया था। इसीलिए 2004 की शुरुआत में राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित नहीं कर सके थे।
- पेटेंट बिल पर एक बार उन्होंने आपसे मदद मांगी थी।
हां, नहीं तो भारत विश्व व्यापार संगठन से बाहर हो जाता। दरअसल, हम यह बिल पास नहीं कर सके थे, क्योंकि भाजपा के मुरली मनोहर जोशी और माकपा के अशोक मित्रा ने इसका पुरजोर विरोध किया था। हालांकि हमारी सरकार चुनाव हार गई, तो मैंने नए कृषि मंत्री चतुरानन मिश्र से गुजारिश की कि बिल को आगे बढ़ाइए, नहीं तो बड़ी समस्याएं पैदा हो जाएंगीं। मिश्र कुछ करते कि इस बीच वह सरकार भी गिर गई और वाजपेयी सरकार सत्ता में आई। वाजपेयी ने मनमोहन सिंह से मदद मांगी, क्योंकि उस वक्त मैं दिल्ली में नहीं था। मनमोहन सिंह और मैंने आपस में बात की। मैंने कहा कि मूल बिल में केवल दो चीजें बदली जानी चाहिए- एक तिथि और दूसरी, बिल पेश करने वाले का नाम। बाद में मैंने सोनिया गांधी से बात की और उन्हें बताया कि बेशक संसद में हमारी जगह बदल गई है, पर हमारी नीतियां नहीं बदलनी चाहिए और हमे इस बिल का समर्थन करना चाहिए। वह सहमत हो गईं।
- क्या वाजपेयी एक धर्मनिरपेक्ष नेता थे?
हां, इसमें दोराय नहीं है।
- आपने एक बार हमें बताया था कि चार बीमार नेताओं के बारे में आप बराबर सोचते हैं- वाजपेयी, प्रियरंजन दासमुंशी, जॉर्ज फर्नांडिस और जसवंत सिंह।
2005 तक वाजपेयी स्वस्थ थे। फिर उनकी सेहत धीरे-धीरे गिरने लगी। मुझे याद है कि जब मैं भारत रत्न देने उनके घर गया था। वह एक अपवाद था। ऐसा इसलिए, क्योंकि राष्ट्रपति भवन से बाहर किसी भी नागरिक पुरस्कार समारोह के लिए राष्ट्रपति नहीं जाता। यही वजह है कि मरणोपरांत पुरस्कार पाने वालों के रिश्तेदारों को अवॉर्ड लेने राष्ट्रपति भवन आना पड़ता है।