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फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की वो रोचक बातें जो हमेशा याद रहेंगी

अपने जीवन काल में हंसी मजाक और  भारतीय जवानों के सबसे प्रिय माने जानें वाले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की आज 104वीं जयंती है। बता दें कि सैम मानेकशॉ का पूरा नाम होरमुजजी फ्रामदी जमशेदजी...

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की वो रोचक बातें जो हमेशा याद रहेंगी
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 03 Apr 2018 04:44 PM
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अपने जीवन काल में हंसी मजाक और  भारतीय जवानों के सबसे प्रिय माने जानें वाले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की आज 104वीं जयंती है। बता दें कि सैम मानेकशॉ का पूरा नाम होरमुजजी फ्रामदी जमशेदजी मानेकशॉ था। लेकिन बचपन से ही निडर और बहादुरी की वजह से इनके चाहने वाले इन्हें सैम बहादुर के नाम से पुकारते थे। 

सैम मानेकशॉ एक ऐसे जवान थे जिनकी बहादुरी और साहस की वजह से वो भारतीय सेना के पहले ऐसे जनरल बने जिनको प्रमोट कर  फील्ड मार्शल की रैंक दे दी गई थी। सैम का जन्म तीन अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुई थी। 

मानेक शॉ ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 'मैडम' कहने  से किया था इंकार...

यह बात भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रिरा गांधी के समय  की है। जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भारत और पाकिस्तान के बीच जंग को लेकर  मानेकशॉ से सवाल-जवाब कर रही थीं। उसी समय प्रधानमंत्री के हर सवाल का जवाब देते हुए मानेक शॉ ने मैडम की जगह "प्रधानमंत्री" कह कर पुकारा था। और कहीं भी संबोधन में उन्होंने "मैडम" शब्द का प्रयोग नहीं किया था। जब बाद में मानेकशॉ से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि "मैडम" शब्द  एक खास वर्ग के लिए प्रयोग किया जाता है। इस लिए वह संबोधन में हमेशा "प्रधानमंत्री" ही कहते थे। 

इंदिरा गांधी को कहा था स्वीटी

इसी दौरान एक और रोचक घटना हुई थी। जब इंदिरा गांधी ने जनरल से कहा कि क्या आप जंग के लिए तैयार हो तो मानेकशॉ ने कहा कि आई एम ऑलवेज रे़डी स्वीटी। 

आइए जानें सैम मानेकशॉ की रोचक बातें ...

वैसे तो मानेकशॉ की जीवनी बहुत ही प्रेरणादायक रही है। इनका पूरा जीवन ही अनगिनत उपलब्धियों से भरा पड़ा है।  कहा जाता है कि मानेकशॉ के बहादुरी के किस्से सेकेंड वर्ल्ड वॉर से शुरू हो गई थी। जब 1942 में चल रहे दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा के मोर्चे पर एक जापानी सैनिक ने अपनी मशीनगन की सात गोलियां उनकी आंतों, जिगर और गुर्दों में उतार दीं। जख्मी होने के बाद भी मानेकशॉ ने हार नहीं मानी और जंगे मैदान में डटे रहे। 

मानेक शॉ की सबसे बड़ी कामयाबी 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग में जीत मानी जाती है। उस समय 90 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। गोरखा सिपाहियों की बहादुरी के कायल मानेकशॉ कहते हमेशा यह कहते थे कि जिसे मौत से डर नहीं लगता है वह या जो झूठा होता है यो वह गोऱखा होता है।

मानेक द्वारा कही गई ये बातें बहुत ही चर्चित रही। मानेक ने अपने जीवन काल में कुल पांच लड़ाईयां लड़ी थी। और 27 जून 2008 में  सब को हमेशा के लिए अलविदा कह दिए। 

 

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