केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए लाखों-सैकड़ों किसान सड़को पर उतर आए हैं और जोरदार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। विरोध कर रहे किसान पूरी तैयारियों के साथ आए हैं। इन किसान में पुरुष ही नहीं महिलाएं भी शामिल हैं। महिला किसान इस प्रदर्शन का एक अलग चेहरा बनकर उभर रही हैं। ट्रैक्टरों में सोने से लेकर सड़क किनारे नहाने तक महिला किसान सारी परेशानियां झेलने के बावजूद डटकर खड़ी हैं और विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। पटियाला की एक 70 साल की महिला किसान गुरदेव कौर को अपने परिवार के सदस्यों से हर दो घंटे में एक कॉल आती है, जिसमें उनकी सेहत के लिए चिंता जताई जाती है।
मौजूदा विरोध प्रदर्शनों में सबसे पुरानी महिला प्रतिभागियों में से एक गुरदेव कौर पिछले तीन दिनों से पंजाब और हरियाणा के हजारों अन्य लोगों के साथ दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं, जिन्होंने केंद्र सरकार के बनाए नए खेत कानूनों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए राजधानी तक मार्च निकाला है। गुरदेव कौर इकलौती ऐसी महिला किसान नहीं है।
सैकड़ों महिला किसानों ने अपने पुरुष समकक्षों के साथ दिल्ली में मार्च किया, ताकि नए कृषि कानूनों के खिलाफ उनके विरोध में आवाज उठाई जा सके।आंदोलनकारियों का कहना है कि नए कानूनों से कृषि उपज की खरीद और व्यापार करने के तरीके में बदलाव होगा। सेप्टुजेनेरियन कौर का कहना है कि जब उन्हें बताया गया कि वे सभी कानूनों का विरोध करने के लिए दिल्ली तक मार्च करेंगे, तो उन्होंने इस बारे में दो बार भी नहीं सोचा।
कौर कहती हैं, “पंजाब में हम पिछले दो महीनों से हर दिन अपनी कार्ययोजना को लेकर बैठक में भाग ले रहे हैं। हम अपनी आखिरी सांस तक आंदोलन का समर्थन करने के लिए तैयार हैं।" कौर के पति का कुछ साल पहले निधन हो गया था। घर में परिवार की देखभाल करने वाले दो विवाहित बेटे हैं। वो कहती हैं, “मेरे यहां रहते हुए, मेरी बहुएं यहाँ रहते हुए घर की देखभाल करेंगी। मेरे ठीक होने के बारे में पूछने के लिए वे मुझे बार-बार फोन करते हैं। वे चिंतित हैं क्योंकि मैं बूढ़ी हो गई हूं। लेकिन मैं अकेली नहीं हूं। समर्थन करने के लिए यहां सैकड़ों महिलाएं हैं और हम एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। हमारे पास दवाएं हैं और जरूरत की दूसरी चीजें भी हैं।" उन्होंने बताया कि कैनेडा में रह रहे अपने पोते से भी वो रोज बात करती हैं।
साठ वर्षीय अमरजीत कौर ने कहा कि पिछले तीन दिनों से वे ट्रैक्टर ट्रॉलियों में सो रहे हैं। वो कहती हैं, “हम गद्दे साथ लाए हैं और हम ट्रैक्टर ट्रॉलियों में सोते हैं। हमने नहाने और दूसरे कामों के लिए जगहें निर्धारित की हैं। हम इस सभी को इस की आदत नहीं हैं, लेकिन यह सब जिस कारण के लिए हो रहा है उसमें हम सभी एक साथ हैं। यहां की ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार की एकमात्र प्रतिनिधि हैं।"
सलवार कमीज पहने और अपने सिर को शॉल या दुपट्टे से ढंके हुए ये महिलाएं दिन के समय सिंघू बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन में भाग लेती हैं और जैसे-जैसे अंधेरा होने लगता है, अपने ट्रैक्टर को पीछे छोड़ते हुए दिन का भोजन तैयार करती हैं। उनमें से एक, 50 वर्षीय चरणजीत कौर ने कहा कि उनका ट्रैक्टर मुख्य विरोध स्थल से कम से कम चार किलोमीटर दूर है। वो कहती है, “दोपहर में, हम बैठते हैं जहाँ हमारे किसान नेता भाषण देते हैं और मौजूदा कृषि कानूनों के खिलाफ नारे लगाते हैं। शाम तक, हम अपनी ट्रैक्टर ट्रॉलियों में वापस आ जाते हैं, जो अभी के लिए हमारा घर है।"
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पिछने तीन दिनों से इनमें से ज्यादातर महिलाएं नौजवान किसानों की मदद से मुख्य रूप में भारी मात्रा में भोजन तैयार करने और प्रदर्शनकारियों के साथ लंगर बांटने के लिए व्यस्त हैं। शुक्रवार से किसान सिंघु बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं बॉर्डर से उन्हें दिल्ली में नहीं घुसने दिया जा रहा था जिस बीच उनकी और पुलिस की कई झड़पे भई हुईं। किसानों ने शहर में प्रवेश करने के लिए बैरिकेड्स को पार करने की कोशिश की। दिल्ली पुलिस ने बाद में किसानों को अपना आंदोलन जारी रखने के लिए बरारी में संत निरंकारी मैदान में भेज दिया।