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पुण्यतिथि विशेष: हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले..

मशहूर उर्दू शायर मिर्जा गालिब की आज पुण्यतिथि है। मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 में आगरा के एक सैन्य परिवार में हुआ था। छोटी सी उम्र में गालिब के पिता की मौत हो गई जिसके बाद उनके चाचा ने उन्हें...

पुण्यतिथि विशेष: हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले..
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान Thu, 15 Feb 2018 01:42 PM
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मशहूर उर्दू शायर मिर्जा गालिब की आज पुण्यतिथि है। मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 में आगरा के एक सैन्य परिवार में हुआ था। छोटी सी उम्र में गालिब के पिता की मौत हो गई जिसके बाद उनके चाचा ने उन्हें संभाला लेकिन उनका साथ भी ज्यादा दिन नहीं रहा। जिसके बाद उनकी देखभाल उनके नाना-नानी ने की। मिर्जा गालिब का विवाह 13 साल की उम्र में उमराव बेगम से हो गया था। जिसके बाद वह दिल्ली आ गए औऱ यही रहें। मिर्जा गालिब ने इश्क की इबादत हो या नफरत या दुश्मनों से प्यार सभी शायरी में दर्द छलकता है। 

मिर्जा गालिब को मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने अपना दरबारी कवि बनाया था। उन्हें दरबार-ए-मुल्क, नज्म-उद दौउ्ल्लाह के पदवी से नवाजा था। इसके साथ ही गालिब बादशाह के बड़े बेटे के शिक्षक भी थे। मिर्जा गालिब पर कई किताबें है जिसमें दीवान-ए-गालिब, मैखाना-ए-आरजू, काते बुरहान शामिल है। 

15 फरवरी 1869 को गालिब ने आखिरी सांस ली। 

गालिब की मशहूर शेर..

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले...बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले...

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है...आख़िर इस दर्द की दवा क्या है...

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है...

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे..कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का..उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

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