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यूपी में एक्सप्रेस वे बन रहे हैं राजनीति के अखाड़े

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में करावल खेरी गांव के पास पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया. सत्ताधारी बीजेपी का विकास का दावा है तो विपक्षी नेता अखिलेश यादव इसका...

यूपी में एक्सप्रेस वे बन रहे हैं राजनीति के अखाड़े
डॉयचे वेले,दिल्लीTue, 16 Nov 2021 08:30 PM
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उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में करावल खेरी गांव के पास पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया. सत्ताधारी बीजेपी का विकास का दावा है तो विपक्षी नेता अखिलेश यादव इसका श्रेय खुद ले रहे हैं.एक्सप्रेस वे पर पीएम मोदी सीधे वायुसेना के एअरक्राफ्ट सी-130 जे सुपर हर्क्युलिस विमान में सवार होकर आए और यूपी के पिछड़े समझे जाने वाले पूर्वांचल इलाके में विकास की नई इबारत लिखने का संकेत दिया. लेकिन प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम से पहले ही एक्सप्रेस वे का उद्घाटन राजनीतिक चर्चाओं में बना रहा. पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तंज करते हुए ट्वीट किया, "फीता आया लखनऊ से और नयी दिल्ली से कैंची आई, सपा के काम का श्रेय लेने को मची है 'खिचम-खिंचाई'" समाजवादी पार्टी का दावा है कि पूर्वांचल एक्सप्रेस उनकी सरकार का आईडिया है और इसका उद्घाटन भी सपा सरकार में ही किया गया और इसके लिए बजट भी उसी समय पास कर दिया गया था. लेकिन एक्सप्रेस वे बनाने वाली एजेंसी यूपीडा UPEIDA के चेयरमैन और राज्य के अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी ने मीडिया को बताया कि पूर्वांचल एक्सप्रेस वे की आधारशिला जुलाई 2018 में रखी गई थी और यह 36 महीनों में कोविड लहर में बिना अतिरिक्त समय और बिना किसी अतिरिक्त खर्च के बनकर तैयार हुआ है. करीब 341 किमी लंबे इस एक्सप्रेस वे के जरिए लखनऊ से गाजीपुर के बीच पूर्वांचल और अवध क्षेत्र के कई जिले जुड़ रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि यह देश का सबसे लंबा एक्सप्रेस वे है. इससे पहले लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे को देश का सबसे लंबा एक्सप्रेस वे बताया जा रहा था जो कि पिछली सपा सरकार में बना था और तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी सरकार की उपलब्धियों में इस एक्सप्रेस वे को खासतौर पर गिनाते हैं.

दिलचस्प बात यह है कि करीब पांच साल पहले आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे का जब उद्घाटन किया गया था तब वह भी इस स्थिति में नहीं था कि उस पर आवागमन सुगम हो और पूर्वांचल एक्सप्रेस वे पर भी स्थिति ऐसी है कि अभी सुगम आवागमन की राह में कई दिक्कतें हैं. पूर्वांचल एक्सप्रेस वे बनकर भले ही तैयार हो गया है लेकिन इतने लंबे एक्सप्रेस वे पर अभी चलने की हिम्मत शायद ही कोई कर सके, क्योंकि तमाम जरूरी सुविधाओं का अभाव है और सरकार ने चुनाव की जल्दबाजी में उद्घाटन कर दिया. अधूरी परियोजनाओं का उद्घाटन क्यों 341 किलोमीटर लंबे सफर में न कोई पेट्रोल पंप है, न टॉयलेट हैं और न ही गाड़ी खराब होने की स्थिति में उसकी मरम्मत की कोई व्यवस्था है. यही नहीं, सड़क के किनारे किसी तरह के ढाबे या रेस्तरां इत्यादि की भी कोई सुविधा नहीं है. यहां तक कि कई जगहों पर सड़क के किनारे फेंसिंग का काम भी अधूरा है. हालांकि यूपीडा का कहना है कि एक्सप्रेस वे पर 8 जगहों पर फ्यूल पंप और 4 जगहों पर सीएनजी स्टेशन बनाए जाने हैं. सुल्तानपुर में जिस जगह एक्सप्रेस वे का उद्घाटन किया गया, उसके पास ही रहने वाले देवीदीन मौर्य कहते हैं, "अभी तो यह सड़क उन्हीं के चलने लायक है जो जहाज से उड़कर यहां आएं और चमकती सड़क को देखकर जहाज से वापस चले जाएं" आखिर चुनाव से ठीक पहले अधूरी परियोजनाओं के उद्घाटन क्यों किए जा रहे हैं? वह भी तब, जबकि बीजेपी के बड़े नेता लगातार ये दावा कर रहे हैं कि उनकी पार्टी राज्य में फिर सरकार बनाएगी और बड़े बहुमत से बनाएगी. वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "सरकार को पता है कि विकास कार्यों को दिखाना पड़ेगा, तभी जनता के बीच जाएंगे. इससे पहले की सरकारों ने एक्सप्रेस वे बनवाए थे और बीजेपी सरकार ने आते ही तीन एक्सप्रेस वे बनवाने की बात की.

यह भी चुनौती थी कि उन्हें समय से पूरा किया जाए. सरकार को लगता है कि मुख्य रूप से तो सड़क बन ही गई है, बाकी चीजें धीरे-धीरे बन ही जाएंगी" हालांकि चुनाव में लाभ और हानि के रूप में देखें तो एक्सप्रेस वे बनवाने और सरकार में दोबारा आने का संबंध बिल्कुल उलटा रहा है. साल 2007 में यूपी का पहला एक्सप्रेस वे नोएडा से आगरा तक, मायावती के नेतृत्व वाली बीएसपी सरकार ने बनवाया था लेकिन उसी साल हुए चुनाव में बीएसपी हार गई और सरकार में उसकी वापसी नहीं हुई. साल 2016 में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार ने आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे बनवाया लेकिन अगले ही साल हुए चुनाव में सपा सरकार भी चली गई. हालांकि बीजेपी के नेताओं का इस बारे में मानना है कि यह कोई गणितीय नियम नहीं है, इसका उलटा भी हो सकता है. पूर्वांचल का चुनावी महत्व दरअसल, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे यूपी के उन जिलों को जोड़ता है जो विकास की दृष्टि से काफी पिछड़ा है. पूर्वांचल में करीब 28 जिले आते हैं और राज्य की राजनीति की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं. राजनीतिक हलकों में यह बात भी कही जाती है कि यूपी की सत्ता का रास्ता पूर्वांचल से ही होकर जाता है. यूं तो बीजेपी इस इलाके में पहले बहुत मजबूत नहीं रही है लेकिन साल 2017 के विधानसभा चुनाव और उससे पहले साल 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे जबर्दस्त सफलता मिली.

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इस इलाके में करीब 115 सीटें मिली थीं जबकि समाजवादी पार्टी को महज 17 सीटें हासिल हुई थीं. बीएसपी को सिर्फ 14 सीटें ही मिली थीं जबकि दो सीटें कांग्रेस के हिस्से में आई थीं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, किसान आंदोलन के कारण पश्चिमी यूपी और तराई वाले इलाकों में संभावित नुकसान को देखते हुए पूर्वांचल में बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. पूर्वांचल वह इलाका है जहां पिछड़ी और दलित जातियों की अच्छी खासी आबादी है और राजनीतिक तौर पर इनकी भागीदारी काफी निर्णयात्मक होती है. सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "समाजवादी पार्टी का ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से जिस तरह से गठबंधन हुआ है और अन्य पिछड़ी जातियों के नेताओं के साथ गठबंधन की बातचीत चल रही है, उसे देखते हुए बीजेपी काफी सतर्क है. असल में बीजेपी को इस इलाके में जो राजनीतिक लाभ हुआ है, उसके पीछे इन पिछड़ी जातियों के मिले समर्थन की अहम भूमिका है. पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस इलाके के विकास की बात कर रहे हैं" पिछले एक महीने में यूपी सरकार की कई परियोजनाओं का लोकार्पण हुआ है जिनमें कुशीनगर हवाई अड्डा और कुछ मेडिकल कॉलेज भी शामिल हैं. आने वाले दिनों में गोरखपुर में एम्स और वाराणसी में काशी विश्वनाथ कोरिडॉर परियोजना का लोकार्पण भी होना है..

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