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हिन्दुस्तान विशेष : बचपन पर हावी तनाव, शिशुओं के मस्तिष्क विकास में बन रहा बाधक 

अगर आपको यह लगता है कि मानसिक तनाव सिर्फ वयस्कों को ही होता तो आप गलत हैं। शिशुओं को भी टॉक्सिक तनाव महसूस होता है और यह उनके मस्तिष्क के विकास में बाधा पहुंचाता है। शिशुओं को यह टॉक्सिक तनाव...

हिन्दुस्तान विशेष : बचपन पर हावी तनाव, शिशुओं के मस्तिष्क विकास में बन रहा बाधक 
नई दिल्ली, स्कन्द विवेकThu, 13 Dec 2018 07:53 AM
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अगर आपको यह लगता है कि मानसिक तनाव सिर्फ वयस्कों को ही होता तो आप गलत हैं। शिशुओं को भी टॉक्सिक तनाव महसूस होता है और यह उनके मस्तिष्क के विकास में बाधा पहुंचाता है। शिशुओं को यह टॉक्सिक तनाव हिंसापूर्ण महौल में रहने, माता-पिता के बीच झगड़ा होने या प्रदूषण के चलते होता है। बच्चों के विकास पर काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के डिप्टी एक्सक्यूटिव डायरेक्टर ओमर आबदी ने ‘हिन्दुस्तान’ से विशेष बातचीत में कहा कि हमारी जिम्मेदारी है कि शिशुओं को पर्याप्त पोषण, दुलार एवं सुरक्षा देने के साथ ही हम उन्हें इस तनाव से भी दूर रखें। तभी हमारे बच्चे वयस्क होने पर पूर्ण व्यक्तित्व हासिल कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले तक हमारी चिंता शिशुओं के शारीरिक विकास तक ही सीमित रहती थी। हम शिशुओं के मस्तिष्क के विकास के बारे में सोचते ही नहीं थे। वैज्ञानिक अध्ययन में यह साबित हो गया है कि शिशु के पहले 1000 दिन उसके मस्तिष्क विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।

 इस समय तक शिशु के मस्तिष्क में रोजाना 10 लाख न्यूरॉन कनेक्शन बनते हैं। इस अवस्था तक शिशु को मिलने वाले पोषण का 70 फीसदी तक हिस्सा उसके मस्तिष्क के विकास में खर्च होता है। ऐसे में यह बेहद महत्वपूर्ण है कि शिशुओं को पूरा पोषण मिले और इसके लिए एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीड से बेहतर कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी साबित हो गया है कि सिर्फ पोषण से ही मस्तिष्क का समुचित विकास नहीं होता।

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शिशुओं के मस्तिष्क को स्टीमुलेशन की भी जरूरत पड़ती है। शिशुओं को मिलने वाले लाड़-प्यार, उनसे की जाने वाली बातचीत, खेल से उन्हें यह स्टीमुलेशन मिलता है और मस्तिष्क की कोशिकाएं मजबूत होती हैं। लेकिन, पर्याप्त पोषण एवं स्टीमुलेशन के बाद भी यदि शिशुओं को टॉक्सिक स्ट्रेस होता है तो यह उनके मस्तिष्क की विकास को बाधा पहुंचाता है। ऐसे शिशु जब वयस्क बनेंगे तो संभव है कि उनकी क्रिटिकल थिंकिंग क्षमता या क्रिएटिविटी उतनी न हो, जितनी एक सामान्य शिशु से वयस्क बने व्यक्ति की हो। अध्ययन ये भी बताते हैं कि ऐसे शिशुओं का व्यवहार हिंसक हो सकता है। 

शिशुओं की देखभाल करने वाले का भी ख्याल जरूरी 

आबदी ने कहा कि हमने अपने अनुभवों से सीखा है कि सिर्फ शिशुओं की चिंता करके शिशु को उचित देखभाल नहीं दे सकते। हमें शिशु का देखभाल करने वालों यानी माता-पिता की भी चिंता करने की जरूरत है। यहां सरकारों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि माता-पिता को अतिरिक्त सुविधा देने का काम सरकार नीति बनाके कर सकती है। आबदी ने कहा कि मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टनर्स फोरम में अपने संबोधन में भी पैरेंटल अवकाश की बात की है। 

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बाल विवाह और दहेज मुख्य चुनौती

आबदी ने कहा कि भारत में कम उम्र में होने वाले विवाह और दहेज प्रथा को वे शिशुओं के विकास में सबसे बड़ी बाधा के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि मैंने बिहार में देखा कि कम उम्र में शादी होने पर लड़की मां भी कम उम्र में ही बन जाती है। ऐसे में शिशु पैदा होते ही कुपोषित होता है। वहीं, दहेज प्रथा के चलते कई लोग लड़कियों को एक बोझ के रूप में देखते हैं और उन्हें पर्याप्त पोषण नहीं दिया जाता। इससे भी उनका विकास प्रभावित होता है। हालांकि, आबदी ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें इन मुद्दों पर बेहतर काम कर रही हैं।  

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