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Exclusive: जेपी नड्डा बोले- अब लोगों को इलाज के लिए खेत नहीं बेचना पड़ेगा

देश के दस करोड़ परिवारों की नजर इस वक्त पांच लाख की स्वास्थ्य बीमा योजना पर लगी है, जिसकी घोषणा बजट में की गई थी। स्वास्थ्य मंत्रालय इस योजना को अंतिम रूप देने में जुटा है, ताकि आम चुनाव से पहले...

Exclusive: जेपी नड्डा बोले- अब लोगों को इलाज के लिए खेत नहीं बेचना पड़ेगा
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 23 May 2018 09:50 AM
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देश के दस करोड़ परिवारों की नजर इस वक्त पांच लाख की स्वास्थ्य बीमा योजना पर लगी है, जिसकी घोषणा बजट में की गई थी। स्वास्थ्य मंत्रालय इस योजना को अंतिम रूप देने में जुटा है, ताकि आम चुनाव से पहले इसे लॉन्च किया जा सके। इस योजना व स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े अन्य मुद्दों पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा से हिन्दुस्तान के ब्यूरो प्रमुख मदन जैड़ा और विशेष संवाददाता स्कंध विवेक धर ने विस्तृत बातचीत की।

गरीबों के लिए पांच लाख रुपये की बीमा योजना कब शुरू होगी, अब तक क्या तैयारियां हैं?

इसकी तैयारियां तेजी से चल रही हैं। अब तक 1,342 चिकित्सकीय प्रक्रियाओं (प्रोसीजर्स) को हमने राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन में शामिल कर लिया है। इसमें अलग-अलग तरह के ऑपरेशन, उपचार, जांच, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी आदि शामिल हैं। यह संख्या अभी और बढे़गी। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय इस पर काम कर रहा है। एक हफ्ते में हम इसे राज्यों के साथ साझा करेंगे। अगर राज्य इसमें कुछ और इलाज जोड़ना चाहते हैं, तो हम उनको भी शामिल करेंगे। दूसरा, हम अस्पतालों के इम्पैनलमेंट पर काम कर रहे हैं। इम्पैनलमेंट की शर्तें क्या होंगी, इसके मानक क्या होंगे और इसके ग्रेड क्या होंगे, ये तय किया जा रहा है। अस्पताल के ग्रेड के आधार पर ही हम उसे बीमा भुगतान करेंगे। .

.'योजना में सरकारी अस्पतालों की भूमिका क्या होगी?

देश के सभी सरकारी अस्पताल, चाहे वे केंद्र सरकार के हों, राज्य सरकारों के या फिर स्थानीय निकायों के, सबको इसमें इम्पैनलमेंट माना जाएगा। एनएचपीएम का लाभार्थी अगर वहां इलाज कराता है, तो उस इलाज के लिए जो भी निर्धारित दर होगी, उसका भुगतान सरकारी अस्पताल को किया जाएगा। इससे सरकारी अस्पतालों को भी आमदनी होगी। वे इस आमदमी का इस्तेमाल अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में कर सकेंगे। हम इसके लिए डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक स्टाफ को प्रोत्साहन राशि भी देंगे।

'पर योजना के स्वरूप को लेकर स्थिति साफ नहीं है, यह बीमा कंपनियों के जरिए होगा या फिर राज्य अपने ट्रस्टों के जरिए चलाएंगे?

हमने सभी राज्यों के लिए अनुरोध-पत्र (आरएफपी) भेज दिया है। इसमें सभी राज्यों के लिए अलग-अलग शर्तें हैं। ऐसा इसीलिए किया गया है, क्योंकि राज्यों में परिस्थितियां एक-दूसरे से अलग हैं। कोई राज्य पहले से अपनी स्वास्थ्य बीमा योजना चला रहा है, तो कहीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना लागू है, जबकि कुछ राज्यों में कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है। जहां पहले से लागू है, वे क्या एनएचपीएम को अलग से लागू करेंगे या अपनी योजना में ही इसे जोड़ देंगे या इससे टॉपअप में इस्तेमाल करेंगे, राज्यों की इच्छा के हिसाब से हम समझौता पत्र तैयार कर लेंगे। आने वाले दिनों में हम इस मुद्दे पर देश भर में छह क्षेत्रीय सम्मेलन करेंगे, जहां इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। मैं खुद इन सभी सम्मेलनों में हिस्सा लूंगा।

'यानी हर राज्य में योजना का स्वरूप अलग-अलग हो सकता है?

हां, हो सकता है। हमने राज्यों पर भी काफी कुछ छोड़ा है।

'इतनी बड़ी संख्या में लोगों को बीमा देना है, आपको नहीं लगता है कि आम चुनाव के मद्देनजर समय कम है?

नहीं, हमारा काम पूरी रफ्तार से चल रहा है। 30 अप्रैल तक पंचायतों द्वारा 90 फीसदी सामाजिक-आर्थिक डाटा वैलिडेट हो चुका है। इन्हीं आंकड़ों के आधार पर लाभार्थियों का चयन होना है। अब हम उसको अपडेट कर रहे हैं। बचे हुए नामों को भी अपडेट किया जा रहा है। इसको आधार से भी मिलाया जाएगा। जिनके पास आधार नहीं होगा, उन्हें भी इस योजना का लाभ मिले, इसके लिए व्यवस्था बनाई जा रही है। जून से पहले यह काम पूरा कर लिया जाएगा। 20 जून तक हमारे जिला स्तर के अधिकारियों और राज्य स्तर के अधिकारियों की ट्रेनिंग पूरी कर ली जाएगी। जून के अंत तक हमारे एमओयू सबसे साथ हो जाएंगे। जून से जुलाई महीने के बीच हम टेंडर आमंत्रित करेंगे और उसे अवॉर्ड भी कर देंगे। .

'हम मान लें कि 2 अक्तूबर को यह योजना शुरू हो जाएगी?

नहीं, इसके लिए फिलहाल हमने कोई तारीख निश्चित नहीं की है। हमने इसके लिए आईटी सिस्टम को डिजाइन करने का काम देश की शीर्ष आईटी कंपनियों को दिया है। यह डिजाइन जून अंत तक तैयार हो जाएगी। जुलाई महीने में हम इसको टेस्ट पर डाल देंगे। टेस्ट के रिजल्ट पर ही हम तय करेंगे कि इसको कब से रोलआउट किया जाए? तारीख प्रधानमंत्री तय करेंगे। .

'क्या भविष्य में अन्य लोगों को भी इसके दायरे में लाया जा सकता है?

फिलहाल हमारा मकसद 10 करोड़ परिवारों को इसके दायरे में लाने का है। अभी हम इसी पर काम कर रहे हैं।

'ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों व डॉक्टरों की भारी कमी है, ऐसे में लोग कैसे इसका लाभ उठा पाएंगे?

इलाज के लिए ग्रामीण लोग पहले भी बाहर जाते थे। अब भी बाहर जाएंगे। बड़ी बात यह है कि अब वे अपना इलाज इस पॉलिसी के जरिये कराने में सक्षम होंगे। उन्हें इलाज के लिए कर्ज नहीं लेना पडे़गा, अपनी जमीन नहीं बेचनी पडे़गी। यही नहीं, जब अस्पतालों को गरीबों के इलाज से भी पैसे मिलेंगे, तो वे भविष्य में छोटे शहरों, कस्बों का भी रुख करेंगे। योजना का दीर्घावधि में व्यापक प्रभाव यह होगा कि भविष्य में पिछड़े इलाकों में भी अच्छे अस्पताल खुलेंगे, क्योंकि यह योजना लोगों के इलाज का सामर्थ्य बढ़ाएगी। इससे लोगों को दूर जाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।

'निजी अस्पतालों द्वारा कभी इलाज में लापरवाही, तो कभी ज्यादा पैसा वसूलने की शिकायत आती रहती है। इस पर लगाम लगाने के लिए सरकार क्या कर रही है?

देखिए, नियमन का काम राज्य सरकारों को करना है। हमारा राज्यों से यही कहना है कि कोई भी मेडिकल संस्थान बिना नियमन के नहीं होना चाहिए। इसके लिए राज्य चाहें, तो केंद्र द्वारा तैयार मॉडल (कानून) अपना सकते हैं या फिर वे अपना नया कानून बना सकते हैं। लेकिन कोई न कोई कानून होना जरूर चाहिए। इनके अलावा, हम एक और व्यवस्था पर काम कर रहे हैं, जिससे आने वाले समय में आम आदमी के लिए निजी अस्पतालों में भी इलाज कराना काफी किफायती हो जाएगा। चूंकि यह प्रस्ताव अभी शुरुआती स्तर पर है, इसलिए इसकी अधिक जानकारी नहीं दे सकता।

'आयुष्मान भारत के दूसरे चरण की बात करें, तो आप डेढ़ लाख उपकेंद्रों को हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर में बदलने जा रहे हैं। इतने डॉक्टर आएंगे कहां से?

हम एमबीबीएस व पीजी, दोनों की सीटें लगातार बढ़ा रहे हैं। इससे डॉक्टरों की संख्या में खासा इजाफा होगा। हालांकि, हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर पर डॉक्टर न भी हों, तब भी इलाज नहीं रुकने वाला, क्योंकि वहां मौजूद आयुष डॉक्टर और पैरामेडिक स्टॉफ टेलीपैथी के जरिए दवा दे सकेंगे।

'प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी डॉक्टरों की कमी बनी हुई है?

समस्या को दूर किया जा रहा है। लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के मामले में हमने यह सुविधा देनी शुरू कर दी है कि जिस इलाज की सुविधा वहां पर नहीं मिलती, उसे लोग बाहर करा लें और सरकार उसका भुगतान करेगी। 

'जो एम्स बनकर तैयार हो गए हैं, वे भी पूरी तरह से कार्यशील नहीं हैं। इसके लिए सरकार क्या कर रही है? 

एक बात याद रखिए। हम कोई जिला अस्पताल या राज्य अस्पताल नहीं बना रहे हैं। एम्स जैसे संस्थान बनाने में समय लगता है। दिल्ली के एम्स का मामला ले लीजिए। यह 1950 में शुरू हुआ था, लेकिन जिस स्वरूप में वह आज है, इसमें वह 1980 में आया। यानी दिल्ली एम्स को ‘एम्स' बनने में 30 साल का वक्त लगा। हमने तो 2014 से काम शुरू किया है। इन संस्थानों को खड़ा होने में समय लगता है। हालांकि, जहां तक बात फैकल्टी की ह, तो हम लगातार इंटरव्यू कर रहे हैं। इसके अलावा, नए एम्स में भी दिल्ली एम्स जैसा कल्चर विकसित हो, इसके लिए हम एक मेंटर कमेटी भी बना रहे हैं। नए एम्स के डॉक्टरों को दिल्ली के एम्स में लाया जा रहा है, जबकि दिल्ली एम्स के डॉक्टर नए एम्स में टे्रनिंग देने के लिए भेजे जा रहे हैं। .

'आखिर एम्स जैसे शीर्ष संस्थानों के लिए योग्य डॉक्टर क्यों नहीं मिल रहे?

दो बातें स्पष्ट हैं। एक तो हम एम्स में नियुक्ति के मानकों को कायम रखेंगे। फिर नियुक्तियों को बेहतर बनाने के लिए हमने कई नए कदम उठाए हैं। एक एचआर कमेटी बनाई गई है, जो योग्य उम्मीदवार मिलने पर तुरंत नियुक्ति पत्र जारी करती है, जबकि पहले इस नियुक्ति के लिए जनरल बॉडी की बैठक जरूरी होती थी। यह मंजूरी अब बाद में ली जाएगी। दूसरी बात, अब सरकार योग्य डॉक्टर पाए जाने पर उन्हें वेटिंग में नियुक्त करेगी। अभी तक यह होता था कि एक को नियुक्त किया, बाकी निजी क्षेत्र में चले जाते थे। अब हम उन्हें कहेंगे कि हमारे पास दूसरे एम्स में जगह खाली है, वहां चले जाइए।.

'नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) बिल के संसद से पारित होने के आसार नहीं दिख रहे, क्या करेंगे?

एनएमसी बिल को पारित कराने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। इस बिल से डॉक्टरों की जो शिकायतें थीं, हमने उनको भी दूर कर दिया है। मानसून सत्र में इस बिल को पारित कराने की पूरी कोशिश की जाएगी।

'एम्स व अन्य सरकारी कॉलेजों से बेहद कम शुल्क में पढ़ाई करने के बाद डॉक्टर विदेश चले जाते हैं। इसे रोकने के लिए सरकार कोई कदम उठाएगी?

इसे रोकने का सबसे बढ़िया उपाय यह है कि देश में इन डॉक्टरों को शोध के मौके मुहैया कराए जाएं, जो हम कर रहे हैं। पहले डॉक्टर इसलिए विदेश जाते थे कि हमारे यहां शोध की व्यवस्था नहीं थी। आज डॉक्टर जो भी शोध करना चाहते हैं, उसकी व्यवस्था एम्स में है। इसकी वजह से विदेश जाने वाले डॉक्टरों की संख्या में कमी आई है। जैसे-जैसे हम इस व्यवस्था को आगे बढ़ाएंगे, वैसे-वैसे विदेश जाने वाले डॉक्टरों की संख्या में और कमी आएगी।.

'क्या नीट की तर्ज पर फॉर्मेसी और नर्सिंग के लिए भी कोई केंद्रीकृत परीक्षा कराने पर सरकार विचार कर रही है?

फिलहाल हमारा ऐसा कोई विचार नहीं है। बाद में जरूरत महसूस होने पर इसके बारे में विचार किया जा सकता है।

जब अस्पतालों को गरीबों के इलाज से भी पैसे मिलेंगे, तो वे भविष्य में छोटे शहरों, कस्बों का रुख करेंगे। योजना का दीर्घावधि प्रभाव यह होगा कि भविष्य में पिछड़े इलाकों में भी अच्छे अस्पताल खुलेंगे, क्योंकि यह योजना लोगों के इलाज का सामर्थ्य बढ़ाएगी।

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