केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को विश्वास है कि जल्दी सरकार और किसान यूनियनों के बीच फिर से वार्ता होगी और समाधान निकलेगा। तोमर का मानना है कि किसानों के बीच कृत्रिम भय फैलाया जा रहा है जिसे दूर करने का सरकार पूरा प्रयास कर रही है। किसान आंदोलन के बीच ‘हिन्दुस्तान’ के विशेष संवाददाता रामनारायण श्रीवास्तव के साथ चर्चा करते हुए तोमर ने सरकार और किसानों से आंदोलन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अपनी बेबाक राय रखी। प्रस्तुत है तोमर के साथ चर्चा के प्रमुख अंश :
सवाल: कृषि कानूनों को लाने के पीछे सरकार की क्या मंशा थी ?
जवाब: जो ऐक्ट है उसका भाव अभी भी किसानों के हित के अनुरूप है। कुछ मुद्दे थे जिन पर किसानों को शंका थी। उसके निवारण का प्रयास किया है। सरकार का उद्देश्य किसानों को उपज का ज्यादा से ज्यादा मूल्य मिले इसके लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ाने का था। अभी मंडी में लाइसेंसी व्यापारी ही खरीदता था। अब सभी लोग खरीद कर सकते हैं। प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तो किसानों का कोई ज्यादा लाभ भी मिलेगा।
सवाल : किसानों के मन के डर को कैसे दूर करेंगे?
जबाब : किसानों के मन में कुछ शंका है तो उसका निवारण करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन यह कृत्रिम डर है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कई राज्यों में हो रही है लेकिन अभी तक किसी की जमीन नहीं गई है। जो कानून बनाए गए हैं वह किसानों को पर्याप्त सुरक्षा देते हैं।
सवाल : लेकिन पूरे देश के किसान आंदोलन पर है?
जबाब : पूरा देश नहीं। पंजाब-हरियाणा में मंडी व्यवस्था बहुत मजबूत और विकेंद्रित है। इससे उनको लगता है कि मंडी क्षेत्र प्रभावित होंगे, लेकिन बाकी देश भर में का किसान इन कानूनों का स्वागत कर रहा है। कई संगठन तो दिल्ली भी आना चाहते थे समर्थन में, लेकिन हमने उनको रोका है कि बातचीत के जरिए रास्ता निकल आएगा। 8 दिसंबर को भारत बंद में किसान कहां सड़क पर था? पंजाब भी पूरी तरह बंद नहीं था। कांग्रेस के छुटपुट कार्यकर्ता बंद का समर्थन करने निकले थे। दरअसल कांग्रेस दोमुंही राजनीति कर रही है। उसने इन कानूनों के बारे में अपने घोषणा पत्र में कहा था। संप्रग सरकार के समय भी प्रयास किए थे, लेकिन दबाव के कारण आगे नहीं बढ़ पाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी के दबाव में नहीं आते हैं जो किसान के हित में होगा वही फैसला करते हैं। इसीलिए मोदी ने इसे कर दिया।
सवाल : किसान ही विरोध कर रहे हैं तो कानून क्यों?
जबाब : सरकार की जिम्मेदारी इस देश के करोड़ों किसानों के लिए है। आपत्तिकर्ता इतने बड़े नहीं हैं। सरकार पूरे देश को ध्यान में रखकर कानून बनाती है किसी के कहने या न कहने से कानून बनता है या बिगड़ता नहीं है। लोकतंत्र में जनता संसद को कानून बनाने का अधिकार देती है और और सरकार का दायित्व है कि वह जनता के हित के लिए कानून बनाए।
सवाल : वार्ता सफल क्यों नहीं हो पा रही है?
जबाब : हम अपनी बात रखने में पूरी तरह सफल रहे, लेकिन यूनियन के लोग निर्णय तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, क्योंकि यूनियन में मतैक्य नहीं है। बीते दो दिन से जो खबरें आई हैं बहुत चौंकाने वाली है। वामपंथी विचारधारा वाले के तत्व इसे प्रभावित कर रहे हैं। देशद्रोहियों को रिहा करने की कोशिश की जा रही है। यह निंदनीय है और यही तत्व आंदोलन को निर्णय तक पहुंचने में बाधा डाल रहे हैं। यह किसान नहीं है मोदी का विरोध करने वाले हैं। जो हर मुद्दे पर विरोध करते हैं।
सवाल : समाधान कैसे निकलेगा?
जबाब : किसानों के साथ जल्दी ही दोबारा वार्ता शुरू होगी। सरकार तैयार हैं वे लोग भी बात कर रहे हैं। हम जल्दी ही समाधान तक पहुंचेंगे। जो वास्तविक किसान प्रतिनिधि आगे बढ़ कर फैसला लेंगे और यह गतिरोध समाप्त होगा। पहले किसान ही आए थे और किसान ही हैं मान कर बात कर रहे हैं। अभी वार्ता अंतिम दौर में नहीं पहुंची है। मुझे लगता है किसान यूनियन के लोग समझेंगे और जल्दी ही आंदोलन छोड़कर वार्ता के रास्ते पर आएंगे।
सवाल : सरकार का रुख क्या रहेगा?
जबाब : अच्छा करने जाते हैं तो थोड़ी पीड़ा का दौर होता है। इतिहास वही बना पाते हैं जो इतिहास से आगे निकल जाते हैं। जो लकीर पर लकीर बनाते रहते हैं इतिहास नहीं बना पाते हैं। कोई परिवर्तन नहीं कर पाते हैं। यह माद्दा मोदी जी में हैं और वे कर रहे हैं। करना तो संप्रग सरकार भी चाहती थी लेकिन नहीं कर पाई।