पुराने घरों को भी एनर्जी रेट्रोफिटिंग से बना सकते हैं ऊर्जा दक्ष
रेट्रोफिटिंग के जरिये पुराने घरों और भवनों को भी ऊर्जा दक्ष बनाया जा सकता है। ऐसा भी नहीं कि यह बहुत ज्यादा महंगा हो। 100 वर्ग मीटर के फ्लैट को 2.45 लाख रुपये खर्च कर ऊर्जा दक्ष बनाया जा सकता है।...

रेट्रोफिटिंग के जरिये पुराने घरों और भवनों को भी ऊर्जा दक्ष बनाया जा सकता है। ऐसा भी नहीं कि यह बहुत ज्यादा महंगा हो। 100 वर्ग मीटर के फ्लैट को 2.45 लाख रुपये खर्च कर ऊर्जा दक्ष बनाया जा सकता है। ऊर्जा दक्ष घरों में बिजली की खपत कम हो जाती है और रेट्रोफिटिंग पर व्यय की गई राशि बिजली बिल में कमी के रूप में 4.7 साल में वसूल हो जाती है।
सेंटर फार मीडिया स्टडीज (सीएमएस) एवं बिल्डिंग एनर्जी एफिसिएंसी प्रोजक्ट (बीईईपी) के अध्ययन के अनुसार उत्सर्जन में कमी लाने के लिए भवनों में बिजली की खपत को घटाने पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि इस क्षेत्र में बचत की सबसे ज्यादा संभवनाएं हैं। अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के आकलन के अनुसार 3035 तक भवनों में ऊर्जा दक्षता के जरिये 41 फीसदी बिजली की बचत संभव है। जबकि उद्योगों में 24 और परिवहन क्षेत्र में 21 फीसदी की ही बचत हो पाएगी। इसलिए नये भवनों को ऊर्जा दक्ष बनाने के साथ-साथ 24.95 करोड़ पुराने भवनों में एनर्जी रेट्रोफिटिंग करना आवश्यक है।
गोदरेज भवन में रेट्रोफिटिंग-केस स्टडी
विकसित देशों में रेट्रोफिटिंग के जरिये पुराने भवनों को ऊर्जा दक्ष बनाया जाता है। लेकिन हमारे देश में इस दिशा में खास कुछ नहीं हुआ है। हालांकि कई उदाहरण उपलब्ध हैं। मुंबई के गोदरेज भवन की रेट्रोफिटिंग एक मिसाल है। उस पर कई शोध हुए हैं। एनआरडीसी के अध्ययन के मुताबिक 1972 में बने इस छह मंजिला भवन में 2009-10 में रेट्रोफिटिंग की गई। भवन का छहों तलों का कुल क्षेत्रफल 2192 वर्ग मीटर है। इसकी दीवारों, छत, खिड़कियों, ऊर्जा उपकरणों आदि में आवश्यक बदलाव किए गए। कुल 53.84 लाख रुपये की राशि खर्च हुई।
रेट्रोफिटिंग से पूर्व इस भवन का बिजली का बिल सालाना 51.15 लाख रुपये था जो रेट्रोफिटिंग के बाद पहले साल 37.72 और दूसरे साल 36.50 लाख रह गया। इसमें क्रमश 11.4 तथा 12.3 फीसदी की कमी आई। यानी दो सालों में करीब 25 लाख रुपये बिजली के बिल में बचे। यह आकलन किया गया कि 4.7 वर्ष में बिजली बिल घटौती से खर्च की गई पूरी राशि वसूल हो जाएगी। इस अध्ययन को आधार माना जाए तो प्रति वर्ग मीटर रेट्रोफिटिंग का खर्च 2454 रुपये के करीब आता है और खर्च की गई राशि की भरपाई साढ़े चार साल में हो जाती है। यहां गौरतलब है कि पिछले दस सालों में जहां भवन की कई सामग्री महंगी हुई है, वहीं ऊर्जा दक्षता में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की उपलब्धता बढ़ने से वह सस्ती हुई है। बिजली की कीमतें बढ़ी हैं। मोटे तौर पर कुल मिलाकर यह लागत आज भी करीब-करीब इतनी ही बैठती है।
ऊर्जा दक्ष भवनों के लिए त्रिस्तरीय रणनीति
आईईए के अनुसार भवनों में ऊर्जा दक्षता लाने के लिए तीन स्तरों पर नीतिगत फैसले लिए जाने की जरूरत है। हर नये भवनों के लिए ऊर्जा दक्षता के मानक अनिवार्य किए जाएं। दूसरे, पुराने भवनों में रेट्रोफिटिंग को प्रोत्साहित किया जाए तथा सभी प्रकार के भवनों में ऊर्जा उपयोग का बेहतर प्रबंधन और सतत निगरानी सुनिश्चित की जाए।
नए वास्तु को समझें
मशहूर आर्किटेक्ट अशोक बी. लाल कहते हैं कि भवनों खासकर आवासीय भवनों में ऊर्जा दक्षता लाने के लिए लोगों को जागरुक करना होगा कि अब वास्तु नहीं ‘न्यू वास्तु’ पर ध्यान दें और निवेश करें तभी उनका बिजली का बिल भी कम होगा और घर के भीतर सेहत भी अच्छी रहेगी। वे कहते हैं कि पुराने घरों को उनकी स्थिति के अनुसार ऊर्जा दक्ष बनाया जा सकता है। इसमें कई तरह से उपाय करने होंगे। मसलन, छतों में ऐसे मैटेरियल और टायल्स का इस्तेमाल करना होगा जो रोशनी को परावर्तित करती हैं। उन मैटीरियल से बचना होगा जो सोखती हैं। इसी प्रकार के मैटीरियल आजकल दीवारों के लिए भी उपलब्ध हैं। जहां तक संभव हो सके दीवारों पर ऐसे मैटीरियल को लगाया जा सकता है।
यह संभव नहीं हो तो जिन दीवारों पर सूरज की रोशनी सीधे पड़ रही हो वहां परावर्तक शेड या चिक लगाए जा सकते हैं। ये शेड काफी हद तक तीव्र किरणों को रोकते हैं। हाल में टेरी ने भी एक खास किस्म का शेड विकसित किया है। इसी प्रकार खिड़कियों के शीशे पर ऐसी चकाचौध किरणों को रोकने के लिए शेड लगाये जा सकते हैं या शीशों पर खास कोटिंग की जा सकती है। पुराने घरों में क्रास वेंटीलेशन के लिए नई खिड़की बनाई जा सकती है। या ज्यादा खिड़किया भी कई बार गर्मी की वजह बनती हैं, उन्हें बंद भी किया जा सकता है। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करना होगा कि घरों में एसी चलाने के दौरान बाहर की हवा अंदर और अंदर की बाहर नहीं जाने पाए।
ग्रीनटैक नालेज सोल्यूशन के निदेशक डॉ. समीर मैथेल कहते हैं कि रेट्रोफिटिंग उपायों से पुराने घरों के भीतर के तापमान में चार डिग्री तक की कमी लाई जा सकती है। इसका सीधा असर बिजली की खपत पर पड़ता है। वे बताते हैं कि खिड़कियों में डबल ग्लास का इस्तेमाल भी आजकल काफी प्रचलन में है। इससे दो शीशों के फ्रेम के बीच में जगह बनने से वैक्यूम बनता है और गर्मी का प्रभाव भवन के भीतर कम होने लगता है।