इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदे का खुलासा करने से CIC का इनकार, दिया RTI नियमों का हवाला
केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा है इलेक्टोरल बॉंन्ड से चंदा लेने वाले राजनीतिक दल और और दान करने वालों का खुलासा करने में कोई सार्वजनिक हित नहीं है। सूचना आयुक्त सुरेश चंद्रा ने फैसले में कहा कि इस मामले...
केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा है इलेक्टोरल बॉंन्ड से चंदा लेने वाले राजनीतिक दल और और दान करने वालों का खुलासा करने में कोई सार्वजनिक हित नहीं है। सूचना आयुक्त सुरेश चंद्रा ने फैसले में कहा कि इस मामले में ऐसा कोई जनहित नहीं है जिसमे दानकर्ता और दान लेने वालों के निजता के अधिकार का उल्लंघन करने की जरूरत हो। ये टिप्पणियां करते हुए आयोग ने आरटीआई अर्जीकर्ता विहार धुर्वे की अपील खारिज कर दी, जिसने स्टेट बैंक के सीपीआईओ के आदेश को चुनौती दी थी। बैंक ने ये सूचनाएं देने से मना कर दिया था।
आयोग ने कहा कि बुक ऑफ़ अकाउंट से बॉंन्ड दानकर्ता और दान लेने वालों के नाम सार्वजनिक करना आरटीआई ऐक्ट- 2005 की धारा 8 (1) (ई) और (जे) के विरुद्ध है। केंद्र सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को जनवरी 2020 में इलेक्टोरल बॉंन्ड को जारी करने और कैश करने के लिए अधिकृत किया था। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि बैंक अपने खातों से इलेक्टोरल बॉंन्ड लेने और देने वालों की जानकारी दे।
सूचना अधिकारी ने जवाब में कहा कि यह थर्ड पार्टी की सूचनाएं हैं। यह उनके ग्राहक से संबंधित है, जो उनके विश्वास में बैंक के पास रखी हुई है। इसलिए ये सूचनाएं आरटीआई एक्ट- 2005 की धारा 8(1) (ई) और (जे) के तहत नहीं दी जा सकतीं। साथ ही इलेक्टोरल बॉंन्ड स्कीम, 2018 के प्रावधान 7(4) के तहत खरीदार की सूचनाएं गोपनीय हैं और अधिकृत बैंक उन्हें किसी को भी किसी कानून के तहत सार्वजनिक नहीं कर सकते। याची का कहना था कि स्टेट बैंक को जनहित को ऊपर रखना चाहिए न कि राजनीतिक दलों के हित को।
इलेक्टोरल बॉंन्ड 2017 में वित्त कानून के तहत रिजर्व बैंक ऐक्ट- 1934, जनप्रतिनिधित्व कानून- 1951, आयकर ऐक्ट-1950 और कंपनी ऐक्ट-1955 में सुधार कर लाए गए थे। ये बॉंन्ड बियरर प्रोमिसरी नोट की तरह से होते हैं जिन्हें कोई भी भारतीय नागरिक या कॉरपोरेट बॉडी खरीद सकती है और राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दे सकती है। पार्टी इसे 15 दिन में कैश करवा सकती है और दानदाता के केवाईसी सिर्फ बैंक के पास ही रहते हैं जिस पर कोई नाम नहीं होता।
इलेक्टोरल बॉंन्ड योजना की वैधता को 2018 में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी और कहा गया कि यह चंदे की अपारदर्शी योजना है जिससे कॉरपोरेट जगत को राजनीतिक मसलों में हस्तक्षेप का अधिकार मिल जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। केंद्र ने बॉंन्ड योजना का बचाव किया और कहा था कि राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदे की यह बेहद पारदर्शी व्यवस्था है। इसके बाद शीर्ष अदालत ने 2019 मई में चुनावों से पूर्व इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।