ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News देशसावधान! दिल्ली की हवा में धीरे-धीरे जहर घोल रहा है ये 'कचरा'

सावधान! दिल्ली की हवा में धीरे-धीरे जहर घोल रहा है ये 'कचरा'

दिल्ली-एनसीआर में इन दिनों छाई जहरीली धुंध ने तमाम तरह के प्रदूषण को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है।

Aabhasलाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीThu, 09 Nov 2017 12:47 PM

पिछले कुछ सालों में जिस तादाद में भारत के महानगरों में कंप्यूटर, टीवी, लैप्टॉप, मोबाइल, एसी, फ्रिज जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ा है, उसी तेजी से ई-कचरे में भी इजाफा हुआ है

पिछले कुछ सालों में जिस तादाद में भारत के महानगरों में कंप्यूटर, टीवी, लैप्टॉप, मोबाइल, एसी, फ्रिज जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ा है, उसी तेजी से ई-कचरे में भी इजाफा हुआ है1 / 3

दिल्ली-एनसीआर में इन दिनों छाई जहरीली धुंध ने तमाम तरह के प्रदूषण को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है। इस खतरनाक धुंध के लिए गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली और पटाखों का प्रदूषण, जैसे कारण बताए जा रहे हैं। इन सबके अलावा एक तरह का प्रदूषण और है जो धीरे-धीरे भारत के महानगरों में जहर घोल रहा है। ये है 'ई-कचरे' से होने वाला प्रदूषण।

क्या है ई-कचरा
पिछले कुछ सालों में जिस तादाद में भारत के महानगरों में कंप्यूटर, टीवी, लैप्टॉप, मोबाइल, एसी, फ्रिज जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ा है, उसी तेजी से ई-कचरे में भी इजाफा हुआ है। आपको बता दें कि पुराने होने पर ये तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस फेंक दिए जाते हैं और यही ई-कचरे को जन्म देते हैं। आपको जानकर शायद हैरानी हो कि दुनियाभर में फेंके जाने वाले इन उपकरणों से हर साल 4 करोड़ 10 लाख टन ई-कचरा जमा हो जाता है।

आगे की स्लाइड में देखें कितनी मात्रा में दिल्ली में पैदा होता है ई-कचरा 

श की राजधानी दिल्ली समेत NCR 98,000 टन कचरा पैदा करके दूसरे स्थान पर है

श की राजधानी दिल्ली समेत NCR 98,000 टन कचरा पैदा करके दूसरे स्थान पर है2 / 3

ई-कचरा पैदा करने में दिल्ली-NCR दूसरे नंबर पर
एसोचैम (ASSOCHAM) और फ्रॉस्ट एंड सुलिवन की 2016 साझा रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 18.5 लाख टन ई-कचरा पैदा होता है। रिपोर्ट के मुताबिक देश की आर्थिक राजधानी मुंबई 1.20 लाख टन ई-कचरा पैदा करके नंबर एक पर है। वहीं देश की राजधानी दिल्ली समेत NCR 98,000 टन कचरा पैदा करके दूसरे स्थान पर है। 

इस रिपोर्ट में कहा गया कि हर साल भारत में ई-कचरे में 25 फीसदी की दर से इजाफा हो रहा है। इस लिहाज से साल 2018 तक ई-कचरे का आंकड़ा 30 लाख टन पर पहुंचने का अनुमान है।

इसलिए खतरनाक है ई-कचरा
डंप किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के कचरे से सीसा (लेड), पारा (मरक्यूरी), जिंक और कैडमियम जैसे खतरनाक रसायन निकलते हैं। इससे जन्म लेने वाले शिशु की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इसके साथ ही इन खतरनाक तत्वों से हृदय, लिवर, किडनी और हड्डियां खराब हो सकती हैं। इसके अलावा इन तत्वों के शरीर में घुसने से नसों और प्रजनन प्रणाली पर भी बुरा असर पड़ता है।

इसके अलावा लेड, पारा, जिंक और कैडमियम जैसे रसायन हवा में घुलकर प्राकृतिक संसाधन नष्ट करते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।

आगे स्लाइड में पढ़ें इस कचरे के लिए सुप्रीम कोर्ट लगा चुका है केंद्र को फटकार

इसी साल फरवरी के महीने में देश की सर्वोच्च अदालत ने विदेशों से आने वाले कचरे को भारत में फेंकने के लिए जगह प्रदान करने पर केंद्र सरकार को फटकारा था

इसी साल फरवरी के महीने में देश की सर्वोच्च अदालत ने विदेशों से आने वाले कचरे को भारत में फेंकने के लिए जगह प्रदान करने पर केंद्र सरकार को फटकारा था3 / 3

गैरकानूनी स्क्रैप डीलरों को होता है मूनाफा
2016 की एसोचैम की रिपोर्ट में कहा गया कि हर साल इतनी भारी मात्रा में पैदा होने वाले इस कचरे का सिर्फ 2.5 प्रतिशत हिस्सा ही रिसाइकल हो पाता है। जबकि 95 प्रतिशत से ज्यादा कचरा गैरकानूनी रूप से चलने वाली स्क्रैप की दुकानों में पहुंच जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक यह चिंता की बात है कि देश में ई-कचरे का प्रबंधन अवैज्ञानिक तरीके से स्क्रैप डीलरों द्वारा किया जाता है। इससे इन डीलरों को भारी मुनाफा तो होता है, लेकिन बिना उचित तरीका अपनाए रेडियोएक्टिव सामग्री का प्रबंधन करने से यह ई-कचरा पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक बन जाता है।

ई-कचरे पर सुप्रीम कोर्ट सरकार को लगा चुका है फटकार
इसी साल फरवरी के महीने में देश की सर्वोच्च अदालत ने विदेशों से आने वाले कचरे को भारत में फेंकने के लिए जगह प्रदान करने पर केंद्र सरकार को फटकारा था। कोर्ट ने कहा था कि इस प्रक्रिया से देश के नागरिकों की सेहत खराब हो रही है।

ततकालीन मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर की बेंच ने अपने फैसले में कहा था, 'केंद्र सरकार दूसरे देशों से कचरा लाकर उसे भारत में फेंकने के लिए जगह की अनुमति दे रही है। आप (सरकार) इससे पैसा कमाते हैं लेकिन इसका खामियाजा देश के नागरिकों को भुगतना पड़ता है।'

आपको बाता दें कि विदेश से आने वाला ये कचरा मुख्य रूप से ई-कचरा होता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला रिसर्च फाउंडेशन फॉर साइंस नाम के एनजीओ द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनाया था। कोर्ट ने इस मामले पर केंद्र द्वारा संज्ञान लेने के लिए एक एफिडेविट फाइल करने को भी कहा था।

खतरा: पाकिस्तान की पराली से दिल्ली बनी गैस चैंबर,जानिए कैसे

UK के 'ग्रेट स्मॉग' जैसा है दिल्ली का प्रदूषण,1952 में हुई 4000 मौतें