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1971 युद्ध में ORS से बचाईं जिंदगियां, जानिए कौन हैं डॉ. दिलीप महालनाबिस, जिन्हें मिला पद्म विभूषण

डॉ. दिलीप को ओआरएस को लेकर किए गए काम की वजह से याद किया जाता है। यह एक पानी, ग्लूकोस और नमक का एक घोल है। काफी कम कीमत होने की वजह से करोड़ों की संख्या में लोग इसका इस्तेमाल करते हैं।

1971 युद्ध में ORS से बचाईं जिंदगियां, जानिए कौन हैं डॉ. दिलीप महालनाबिस, जिन्हें मिला पद्म विभूषण
Madan Tiwariलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीWed, 25 Jan 2023 11:36 PM

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गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी। इस बार ORS को लेकर काम करने वाले डॉ. दिलीप महालनाबिस को मरणोपरांत पद्य विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया है। 'भारत रत्न' के बाद यह दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। ओआरएस को दुनिया को भारत की ओर से गिफ्ट बताते हुए सरकार ने बताया है कि दुनियाभर में इस घोल की वजह से पांच करोड़ लोगों की जान बची है। सिंपल, कम कीमत और असरदार होने की वजह से दुनियाभर में डायरिया, कालरा और डी-हाइड्रेशन की वजह से होने वालीं मौतों में 93 फीसदी की कमी दर्ज की गई। 

डॉ. दिलीप महालनाबिस का पिछले साल 16 अक्टूबर को कोलकाता के एक अस्पताल में निधन हो गया था। वह फेफड़ों के संक्रमण और उम्र से संबंधित अन्य बीमारियों से पीड़ित थे। ओआरएस की काफी कम कीमत होने की वजह से करोड़ों की संख्या में लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान डॉ. महालनाबिस  शरणार्थी शिविरों में काम कर रहे थे, जब उन्होंने ओआरएस के क्षेत्र में काफी काम किया था और लोगों की जिंदगियां बचाई थीं। इसे द लांसेट ने 20वीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा खोज बताया था। साल 1975 से 1979 तक, डॉ. महालनाबिस ने अफगानिस्तान, मिस्र और यमन में डब्ल्यूएचओ के लिए कालरा को कंट्रोल करने के लिए काम किया था।1980 के दशक के दौरान, उन्होंने जीवाणु रोगों के प्रबंधन पर अनुसंधान पर WHO सलाहकार के रूप में कार्य किया।

पोलिन पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं डॉ. दिलीप
साल 2002 में डॉ. नथानिएल एफ पियर्स के साथ डॉ. दिलीप महलानाबिस को कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा पोलिन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसे बाल चिकित्सा में नोबेल के बराबर का सम्मान माना जाता है। 12 नवंबर, 1934 को पश्चिम बंगाल में जन्मे, डॉ. महालनाबिस ने कोलकाता और लंदन में अध्ययन किया और 1960 के दशक में कोलकाता में जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च एंड ट्रेनिंग में शामिल हुए, जहां उन्होंने ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी में रिसर्च की। वहीं, जब 1971 का युद्ध छिड़ा तो तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के लाखों लोगों ने भारत में शरण ली। इन शरणार्थी शिविरों में स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता की समस्याएं थीं, और लोगों में हैजा और दस्त फैल गए।

युद्ध में ओआरएस के घोल ने बचाईं लोगों की जानें
डॉ. महालनाबिस और उनकी टीम बनगांव में ऐसे ही एक शिविर में काम कर रही थी। डॉ. महालनाबिस जानते थे कि चीनी और नमक का एक घोल लाखों जिंदगियों को बचा सकता है। इसके बाद उन्होंने और उनकी टीम ने पानी में नमक और ग्लूकोज का घोल तैयार किया और उन्हें बड़े ड्रमों में जमा करना शुरू किया, जहां से मरीज या उनके रिश्तेदार अपनी मदद कर सकते थे।डॉ. महालनाबिस ने बाद में 1971 में उस अवधि के बारे में WHO के साउथ-ईस्ट एशिया जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में लिखा, "हैजा के इलाज के लिए उपलब्ध संसाधनों को जुटाया गया था लेकिन बुनियादी बाधाएं अब भी मौजूद थीं। बड़ी मात्रा में तरल पदार्थ की आवश्यकता थी। हमने इस स्थिति में एकमात्र सहारे के रूप में ओरल तरल पदार्थों के उपयोग का सुझाव दिया।

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