BR ambedkar death anniversary: अंग्रेजों के भारत छोड़ने से डर गए थे आंबेडकर, क्यों नहीं चाहते थे एकदम से मिले आजादी
आंबेडकर अंग्रेजों के भारत छोड़ने से डरे हुए थे। इस वजह से उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने से भी इनकार कर दिया था। वो नहीं चाहते थे कि देश को एकदम से पूरी आजादी मिले। ऐसा क्यों था...
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BR ambedkar death anniversary: आज देश के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की 67वीं पुण्यतिथी है। 14 अप्रैल 1891 को जन्मे आंबेडकर ने जिंदगी भर दलितों के उत्थान के लिए संघर्ष किया। आज हम अंबेडकर की पुण्यतिथि पर उनका और महात्मा गांधी से जुड़ा एक किस्सा सुनाने जा रहे हैं। वे गांधी जी के बीच संबंध मधुर नहीं रहे। आंबेडकर तो गांधी जी को महात्मा तक नहीं मानते थे। वेअंग्रेजों के भारत छोड़ने से डरे हुए थे। इस वजह से भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने से भी इनकार कर दिया था। वो नहीं चाहते थे कि देश को एकदम से पूरी आजादी मिले। ऐसा क्यों था और आंबेडकर इस बारे में क्या सोचते थे, जानते हैं...
6 दिसंबर 1956 को संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। महान शख्सियतों के बारे में हमेशा कॉमन यह होता है कि उनके दो तरह के फॉलोवर होते हैं। पहला जो उनकी अच्छाई गिनाते हैं तो दूसरा वर्ग उन पर अंगुली उठाता है। भीमराव आंबेडकर को भी आजीवन दो तरह के वर्गों का सामना करना पड़ा। लोग उन्हें दलित समाज का उद्धारक और संविधान निर्माता कहकर सम्मान भी करता था तो दूसरी ओर कुछ लोग आजादी की लड़ाई में हिस्सा न लेने और महात्मा गांधी की आलोचना के लिए उन पर निशाना भी साधता था।
महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध
8 अगस्त 1942 को जब बंबई के गोवालिया टैंक मैदान पर हजारों की भीड़ के बीच महात्मा गांधी ने पूरी आजादी मांगने का प्रण लिया और लोगों को करो या मरो का नारा दिया तो पूरी देश आजादी के स्वप्न को हकीकत करने जमीन पर उतर जाना चाहता था। लेकिन, दूसरी तरफ भीमराव आंबेडकर आंदोलन के पक्षधर नहीं थे। तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत में वो वायसराय काउंसिल के सदस्य थे, जो आज के कैबिनेट मंत्री के बराबर ताकत रखता है। उनके आलोचक मानते हैं कि वो अंग्रेजों की वकालत करना ज्यादा पसंद करते थे।
अंग्रेजों के भारत छोड़ने से क्यों डरे हुए थे अंबेडकर
डॉ. भीमराव आंबेडकर की जीवनी पर मशहूर फ्रेंच राजनीति विज्ञानी क्रिस्तोफ जाफ्रलो ने पुस्तक लिखी है। उनकी किताब के मुताबिक, आंबेडकर अंग्रेजों के भारत छोड़ने को लेकर डरे हुए थे। दरअसल, जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था, उसी वक्त दुनिया दूसरा विश्व युद्ध भी झेल रही थी। दुनिया ने उस दौरान जापान और जर्मनी की क्रूरता देखी थी। आंबेडकर मानते थे कि जापानी और नाजियों की फासीवाद सोच अंग्रेजों से कहीं ज्यादा खतरनाक है। इसलिए यह सब सोचकर आंबेडकर ने अंग्रेजों के साथ मिलकर काम करने का फैसला लिया था।
क्यों नहीं चाहते थे नहीं मिले एकदम से पूरी आजादी
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भीमराव आंबेडकर के पास देश में श्रम विभाग की कमान थी। वायसराय काउंसिल के सदस्य रहने के दौरान आंबेडकर ने निचले तबके के लोगों के लिए कई कानून बनाए। उन्होंने ब्रिटिश आर्मी में दलितों की भर्ती को बहाल करवाया। उनका मानना था कि दलितों के लिए उत्थान अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ज्यादा किया जा सकता है। वे आजादी के पक्षधर थे लेकिन, चाहते थे कि देश को धीरे-धीरे आजादी मिले ताकि जब पूरी आजादी मिल जाए तो दलित समाज के अन्य वर्गों की तरह सशक्त हों।