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सांस में ज़हर घोलती हवा होगी 10 सालों में और भी खतरनाक, मिलकर उठाने होंगे कदम

पिछले कुछ दशकों में हम जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों के बारे में बात कर रहे थे और अब आने वाला दशक हमारे सामने वायु प्रदूषण के रूप में एक बड़ी चुनौती लेकर आ रहा है। हमारे स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण...

सांस में ज़हर घोलती हवा होगी 10 सालों में और भी खतरनाक, मिलकर उठाने होंगे कदम
Ashutoshमार्तंड शार्दुल रोज़ीता सिंह,नई दिल्लीMon, 30 Dec 2019 08:12 PM
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पिछले कुछ दशकों में हम जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों के बारे में बात कर रहे थे और अब आने वाला दशक हमारे सामने वायु प्रदूषण के रूप में एक बड़ी चुनौती लेकर आ रहा है। हमारे स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव के बढ़ते सबूत मौजूद हैं लेकिन समाज के कुछ  ज्ञान और साधन सम्पन लोग ही वायु प्रदूषण के इन प्रभावों से बचने के उपाय कर पाते हैं।

वायु प्रदूषण मुद्दे को अक्सर केवल बड़े महानगरों के लिए एक चिंता का विषय माना जाता रहा है लेकिन केंद्र सरकार के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) ने स्वीकार किया है कि अब छोटे नगर और शहर भी इस समस्या से जूझ रहे हैं।  सरकार ने 102 शहरों की पहचान की, जिनमें निर्धारित राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) का उल्लंघन पाया गया है। लैंसेट प्लैनेट हेल्थ 2019 में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के अनुसार, 2017 के दौरान, भारत में क्रमशः 6 लाख और 4 लाख 80 हज़ार लोगों की मौत का कारण परिवेश और इनडोर वायु प्रदूषण को माना गया। उसी वर्ष, भारत में अनुमानित 48.07 करोड़ डिसेबिलिटी-अडजस्टेड लाइफ इयर्स के मामलों में 8.1% वायु प्रदूषण ज़िम्मेदार रहा। 

वायु प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिसका तत्काल कोई समाधान नहीं है लेकिन इसे कम करने के लिए लगातार प्रयास करते रहना होगा। इससे निपटने के लिए सरकार ने कई पहल भी शुरू की है उदाहरण के लिए, उज्ज्वला योजना उन गरीब घरों को एलपीजी ईंधन मुहैय्या करवाती है जो खाना पकाने के लिए ठोस बायोमास का इस्तेमाल करते हैं जैसे-लकड़ी और गोबर के उपले। इससे निकलने वाले धुएं से प्रदूषण तो फैलता ही है साथ ही यह महिलाओं के स्वास्थ्य पर ख़राब असर करता है। इसी प्रकार, बिजली उत्पादन और परिवहन के लिए कम कार्बन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न स्तरों पर उत्साहजनक प्रयास किए जा रहे हैं।

इस प्रयास को मज़बूती देने के लिए व्यक्तियों और संस्थाओं  को अपने और अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य को स्वयं प्राथमिकता देनी होगी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में, नवंबर से फरवरी तक वायु प्रदूषण में वृद्धि अब आम बात है। सफर-इंडिया एयर क्वालिटी सर्विस के अनुसार, नवंबर 2019 की शुरुआत में हवा की गुणवत्ता "गंभीर-प्लस" स्तर तक बढ़ गई। लेकिन हालात ये हैं कि प्रदूषित होती वायु के दौरान, केवल कुछ विशेषाधिकार  लोग ही अपने घरों और दफ्तरों के लिए इनडोर एयर प्यूरीफायर खरीद पाते हैं।

 हालांकि, ऐसे लोगों की संख्या काफ़ी कम हैं। स्वरोजगार और सूक्ष्म उद्यमियों सहित कई करोड़ों लोग हैं, जो वायु प्रदूषण के जोखिम के बीच में सड़क के किनारे और साप्ताहिक बाजारों में काम करना जारी रखते हैं। इसी तरह सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने वाले लोग, सड़क के किनारे और आश्रय घरों में रहने वालों की एक बड़ी संख्या खराब परिवेशी वायु गुणवत्ता के संपर्क में रहती है। जो लोग दोपहिया वाहनों  से कार्यालय जाते हैं और जिन्हें नौकरी के लिए उन्हें ज्यादातर दिन सड़क पर रहना पड़ता है, जैसे कि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के डिलीवरी एजेंट, वर्ष के अधिकतर हिस्से में अपेक्षाकृत वायु प्रदूषण से ज़्यादा प्रभावित होते हैं। यह समाज में एक तरह की असमानता है कि एक तरफ़ कुछ साधन संपन लोग अपने आप को इससे बचा पाते हैं और कुछ लोगों के पास इससे बचने के उपाय नहीं है। वायु प्रदूषण के सन्दर्भ में इस असमानता को पहले इस तरह से नहीं सोचा गया। लेकिन अब यह मुद्दा चर्चा का विषय बन रहा है।

जब समाधान की बात आती है तो एक अच्छी गुणवत्ता वाले फेस मास्क की कीमत उपरोक्त समूह नहीं चुका सकता। कई अन्य लोग जागरूकता की कमी होने की वजह से मास्क नहीं खरीदते या फिर देरी कर देते हैं। औद्योगिक प्रक्रियाओं में जहां जहरीली हवा के संपर्क में आने की संभावना अधिक होती है, मानक गुणवत्ता वाला श्वसन यंत्र या फेस मास्क पहनना अनिवार्य है। शहरी क्षेत्रों में उभरते नए व्यापार मॉडल में जहां नौकरी की प्रकृति के कारण जहरीली हवा का जोखिम अधिक है, उनके लिए नियमित अंतराल पर सशुल्क स्वास्थ्य जांच सेवा जैसे प्रावधानों को अनिवार्य कर देना चाहिए।

कम आय वाले परिवार के लिए एक अच्छी गुणवत्ता वाला फेस मास्क खरीदना (जो कि न्यूनतम 100 रुपये में उपलब्ध है) थोड़ा मुश्किल है क्योंकि यह उनके बजट से बाहर है। नतीजतन, इस साल खराब हवा की गुणवत्ता के दौरान, कई लोगों को सर्जिकल मास्क पहने देखा गया, जो कि 20रु में उपलब्ध है, लेकिन ये मास्क बिल्कुल भी सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं। इसलिए, एक प्रभावी फेस मास्क की लागत को निर्धारित करने की आवश्यकता है ताकि समाज के एक बड़े हिस्से की इस तक पहुँच बन सके। शिक्षित आबादी के बीच भी, एक अच्छे मास्क की विशेषताओं और इसके उपयोग के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। 

अगर उद्यमी इन आवश्यकतों पर ध्यान दे तो उनके लिए तीन क्षेत्रों में बहुत संभावनाएं हैं जैसे - 1. सस्ती कीमत पर अच्छी गुणवत्ता के मास्क का डिजाइन और बिक्री 2. निवारक स्वास्थ्य उपायों को बढ़ावा देने के लिए उस पर बात करना 3. प्रबंधन, हैंडलिंग और उपयोग किए गए फेस मास्क की भारी मात्रा में रीसाइक्लिंग। भारत को इसके लिए किफ़ायती और गेम चेंजिंग इनोवेशंस की ज़रूरत है। इसे ध्यान में रखते हुए, कई संगठनों, जैसे कि यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो ट्रस्ट, कोलेबरेटिव क्लीन एयर पॉलिसी सेंटर और टेरी द्वारा इनोवेशन कॉन्टेस्ट्स की शुरुआत की गयी थी। और इसी कड़ी में यूएनडीपी का ‘सलूशन फॉर एयर पॉलुशन’ इनोवेशन चैलेंज शामिल है।

खराब वायु गुणवत्ता कई शहरों में सार्वजनिक स्वास्थ्य का मुद्दा है इसमें हम सबकी जवाबदेही शामिल है  इसलिए कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए यह ज़रूरी  है कि वे निवारक उपायों को अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR) की पहल के रूप में प्राथमिकता दे और साथ ही नागरिक समाज और सरकार के घरों और समुदायों के स्वास्थ्य प्रयासों में सहयोग दे। नीति के मोर्चे पर, जबकि नीति निर्माता पहले ही अल्पकालिक और दीर्घकालिक वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों के लिए कदम उठा रहे हैं, उनके लिए समय पर निवारक उपायों का समर्थन करना और उन्हें लागू करना महत्वपूर्ण है। वायु प्रदूषण की समस्या से हम सभी जूझ रहे हैं इसलिए इससे निपटने के लिए भी हम सभी को मिलकर कदम उठाने होंगे।

मार्तंड शार्दुल - टेरी में फेलो हैं और यूएनएसडीएसएन-यूथ  (UNSDSN-Youth ) दक्षिण-एशिया के नेटवर्क समन्वयक हैं। रोज़ीता सिंह  यूएनडीपि में सॉल्यूशन मैपिंग, एक्सीलरेटर लैब इंडिया की प्रमुख हैं।