Delhi Faces Flooding Crisis Amidst 48-Year-Old Drainage System New Master Plan Introduced जरा सी बारिश में क्यों पानी से भर जाती है दिल्ली, India News in Hindi - Hindustan
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जरा सी बारिश में क्यों पानी से भर जाती है दिल्ली

दिल्ली की जलभराव की समस्या बढ़ती आबादी और 48 साल पुराने ड्रेनेज सिस्टम के कारण गंभीर हो गई है। नई ड्रेनेज मास्टर प्लान में आधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया है। योजना के तहत बारिश और सीवेज के पानी को...

डॉयचे वेले दिल्लीWed, 17 Sep 2025 07:47 PM
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जरा सी बारिश में क्यों पानी से भर जाती है दिल्ली

48 साल पुराना ड्रेनेज सिस्टम, बढ़ती आबादी और बंटी हुई जिम्मेदारियों ने राजधानी को जलभराव का केंद्र बना दिया है.दिल्ली सरकार ने एक नया ड्रेनेज मास्टर प्लान बनाया है.क्या नया ढांचा बचा पायेगा दिल्ली को इस समस्या से?दिल्ली में कई दिन से बारिश नहीं हुई है लेकिन लेकिन दिल्ली की कॉलोनियां अभी भी जगह-जगह पानी भरने से परेशान हैं.सड़कों के किनारे जमा पानी और गंदे पानी से फैलने वाली बीमारियां लोगों की मुश्किल बढ़ा रहे हैं.दिल्ली के सरकारी स्कूल की छठी कक्षा में पढ़ने वाले अनुज कुमार रोज इस गंदे पानी के बीच से स्कूल जाते हैं.उनके स्कूल के बिलकुल बगल में गंदा पानी जमा है.वह कहते हैं, "क्लास में बहुत बदबू आती है" जिसके बावजूद शिक्षक और बच्चे बदबू के बीच रहने के लिए मजबूर हैं.अनुज के पिता, विनीत कुमार इन दिनों रोज उन्हें स्कूल छोड़ने और स्कूल के वापस लेने जाते हैं क्योंकि स्कूल जाने के रास्ते में पूरा पानी भरा हुआ है और उन्हें घूम कर लम्बे रास्ते से स्कूल जाना पड़ता है.विनीत ने डीडब्ल्यू से कहा, "बच्चे के आने-जाने में डर लगता है.गंदे पानी से बीमारियां भी फैलती है"दिल्ली कभी तप रही है कभी डूब रही है, ऐसा क्यों हो रहा है?दिल्ली के आउटर रिंग के आस-पास की सभी सड़कों पर जमा पानी पंप से बाहर निकला जा रहा है.हालांकि जो पानी पार्क में जमा है, उसे निकालने के लिए कोई कोशिश नहीं की जा रही है.अकसर ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि दिल्ली के लिए जिम्मेदारियां बंटी हुई हैं.पीडब्ल्यूडी 60 मीटर से चौड़ी सड़कों की देखरेख करता है, एमसीडी 60 मीटर से कम चौड़ी सड़कों की जिम्मेदारी संभालता है और एनडीएमसी लुटियंस दिल्ली और कुछ केंद्रीय इलाकों का प्रबंधन करता है.पुराना ढांचे पर बढ़ती आबादी का बोझदिल्ली की मौजूदा ड्रेनेज योजना 1976 की है, यानी करीब 48 साल पुरानी.यह योजना अधिकतम 50 मिमी बारिश प्रति 24 घंटे झेलने के लिए बनाई गई थी. उस समय दिल्ली की आबादी लगभग 60 लाख थी, जबकि आज यह करीब तीन करोड़ तक पहुंच चुकी है.पुरानी योजना का बोझ अब तक आधी सीवरेज और ड्रेनेज लाइनों पर डाला जा रहा है, लेकिन इस "मिक्स सिस्टम" से बैकफ्लो और जलभराव की समस्या और गंभीर हो गई है.पिछले साल दिए एक इंटरव्यू में आईआईटी के प्रोफेसर, ऐ.के.गोसाईं ने बताया था कि जैसे-जैसे विकास होता है, वैसे-वैसे नई इमारतें बनने से जमीन का क्षेत्रफल घटता चला जाता है.जिससे जमीन की पानी सोखने की क्षमता भी घट जाती है.यही वजह थी की पानी के निकास के लिए नालियां बनाई गईं.हालांकि जब इसका रख-रखाव सही से नहीं हो पता है, तब मुसीबत शुरू होती है.इसी तरह की एक समस्या है डिसिलेट यानी लम्बी ड्रेन पाइपों में से मल निकालने की प्रक्रिया.प्रोफेसर गोसाईं के मुताबिक अगर लम्बी नाली में कहीं दो फीट का भी ब्लॉकेज रह जाए तोभी वह मुसीबत बन सकता है.ऐसे में पूरी नाली साफ करने का भी कोई मतलब नहीं बचता है.वह बताते हैं की सीवर लाइन में कुछ भी नहीं जाना चाहिए.सीवर लाइन में बारिश का पानी भी चला जाता है, जिसके लिए वह डिजाइन ही नहीं किया गया है.प्राकृतिक ढांचा भी कमजोरदिल्ली की भौगोलिक संरचना भी समस्या बढ़ाती है.दिल्ली में 201 नालियां हैं, जो प्राकृतिक हैं. इनके जरिये बारिश का पानी बह जाना चाहिए.लेकिन सारी नालियों में सीवेज भी गिरता है, जिससे उन में मल जमा हो जाता है.बारिश के समय में यही पानी ब्लॉक होकर उल्टा बहकर सड़कों पर जमा हो जाता है.अरावली का दिल्ली रिज प्राकृतिक जल विभाजक की तरह काम करता है.यमुना नदी दिल्ली के लगभग 52 से 55 किलोमीटर हिस्से में बहती है.यानी यमुना की कुल लंबाई का सिर्फ दो फीसदी हिस्सा ही दिल्ली में है.हालांकि वह दिल्ली की 70 फीसदी आबादी को पानी देती है.दूसरी तरफ यमुना नदी में जाने वाले प्रदूषण का 80 फीसदी दिल्ली से आता है.पर्यावरण में हो रहे बदलाव भी कई तरह से मुश्किलें बढ़ा रहे हैं.ड्रेनेज का नया मास्टर प्लानलगातार बढ़ते संकट को देखते हुए दिल्ली सरकार ने अब एक नया स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज मास्टर प्लान पास किया है.यह योजना आधुनिक तकनीक जैसे आर्कजीआईएस, सीवरजीईएमएस और एसडब्लूएमएम पर आधारित है.आर्कजीआईएस विभिन्न प्रकार के डेटा को भूगोल के साथ जोड़कर उसे नक्शों में बदल सकता है, जिससे जटिल पैटर्न आसानी से समझे जा सकते हैं.साथ ही, यह वेब मैप और विभिन्न ऐप के माध्यम से जानकारी को इकठ्ठा कर उसे सार्वजनिक रूप से साझा करने की सुविधा भी देता है.सीवरजीईएमएस एक हाइड्रोलिक मॉडलिंग सॉफ्टवेयर है.जिसका इस्तेमाल इंजीनियर सीवर सिस्टम की योजना बनाने, डिजाइन करने और उन्हें सुचारु रूप से चलाने के लिए करते हैं. यह सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को यह समझने में मदद करता है कि सीवर सिस्टम कैसे काम कर रहा है, सीवर ओवरफ्लो की समस्या को कैसे संभालना है और लो-इंपैक्ट डेवलपमेंट तरीकों को उसे कैसे लागू करना है.कृत्रिम बारिश कराना चाहती है दिल्ली की सरकारएसडब्ल्यूएमएस एक डिजिटल टूल है, जो काम के दौरान आने वाले संभावित खतरों की पहचान कर, उन खतरों को नियंत्रित करने के उपाय बताने और सुरक्षित तरीके से काम करने की एक लिखित योजना तैयार करने में मदद करता है.इन तकनीकों की मदद से दिल्ली की नालियों, झीलों, पार्कों और वेटलैंड्स का एकीकृत नक्शा तैयार किया गया है.नई योजना के तहत राजधानी को तीन बड़े बेसिनों, नजफगढ़, ट्रांस-यमुना और बारापुल्ला में बांटा गया है, जो सभी यमुना में जाकर मिलते हैं.सीवेज और बारिश का पानी अलग होगापहले जहां नालियों को अलग-अलग इकाइयों के रूप में देखा जाता था, वहीं यह पूरे नेटवर्क को एकीकृत प्रणाली मानते हुए "बेसिन-आधारित रणनीति" पर काम करने की योजना बना रहे हैं.इस नई योजना के अनुसार बारिश और सीवेज के पानी को अलग-अलग नेटवर्क में बांटा जायेगा, झीलों और वेटलैंड्स का पुनर्जीवन, वर्षा जल संचयन, आईओटी आधारित ड्रेन मॉनिटरिंग और सभी एजेंसियों के बीच समन्वय समिति बनाने की योजना बनाई जा रही है.विशेषज्ञों के मुताबिक, इससे ना केवल जलभराव की समस्या कम होगी, बल्कि भूजल रिचार्ज और शहर की सुंदरता भी बढ़ेगी.इस ड्रेनेज मास्टर प्लान को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सरकार एक अंतर-विभागीय समिति बनाने की योजना बना रही है, जिसमें सभी संबंधित विभागों के अधिकारी शामिल होंगे.भारत की राजधानी में लगभग 3,740.31 किलोमीटर लंबा ड्रेनेज नेटवर्क है, जिसकी देखरेख आठ अलग-अलग एजेंसियां और विभाग करते हैं.2011 में तत्कालीन दिल्ली सरकार ने आईआईटी-दिल्ली के साथ ड्रेनेज मास्टर प्लान तैयार करने का करार किया था.आईआईटी ने 2018 में अपनी रिपोर्ट सौंपी.इसे 2021 में लागू भी किया गया.लेकिन जल्द ही यह योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई, क्योंकि इसे "सामान्य प्रकृति का" और ठोस कार्ययोजना से रहित कहा गया.

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