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दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए ये 12 सीट हैं काफी अहम, तीनों दलों ने झोंकी ताकत

सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचाने वाली दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों पर तीनों राजनीतिक दलों की नजर है। बीते चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि जो दल इन सीट को अपने पक्ष में करने में सफल रहा, वही...

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए ये 12 सीट हैं काफी अहम, तीनों दलों ने झोंकी ताकत
वरिष्ठ संवाददात, हिन्दुस्तान,नई दिल्लीMon, 27 Jan 2020 07:22 AM
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सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचाने वाली दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों पर तीनों राजनीतिक दलों की नजर है। बीते चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि जो दल इन सीट को अपने पक्ष में करने में सफल रहा, वही सत्ता पर काबिज हुआ। इनमें अंबेडकर नगर, त्रिलोकपुरी, करोल बाग, पटेल नगर, सीमापुरी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुर माजरा, मादीपुर, गोकलपुर, बवाना, देवली और कोंडली सीट शामिल है।

वर्ष 2008 तक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का इन पर कब्जा रहा। अब सभी सीटें आप के कब्जे में हैं। तीनों राजनीतिक दल इन सीट पर जीत हासिल करने में जुटे हैं। दिल्ली की 70 विधानसभा सीट में से 12 आरक्षित हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इन सीट पर ज्यादातर झुग्गी झोपड़ियां और कच्ची कॉलोनियां पड़ती हैं। इन पर जिस राजनीतिक दल का असर अधिक दिखता है, उसका प्रभाव दूसरी सीटों पर भी दिखता है। अगर बीते चुनावों को देखा जाए तो इन 12 सीट में अधिकतर सीट एक ही राजनीतिक दल के पास होती हैं। यही वजह है कि वह पार्टी में सत्ता में रही है। बीजेपी इन 12 सीट पर सबसे कमजोर मानी जाती रही है।

वर्ष 1998 से लेकर 2008 तक कांग्रेस इन 12 में से 80 फीसदी सीटों पर काबिज रही। कांग्रेस इस दौरान हुए तीन चुनावों में तीन बार सत्ता में काबिज रही। 2013 के विधानसभा चुनाव में इनमें से अधिकांश सीट पर आम आदमी पार्टी का कब्जा रहा। 2015 में हुए चुनाव में यह सभी सीटें उसकी झोली में गईं। दोनों बार आम आदमी पार्टी सत्ता में रही। बीजेपी के लिए यह 12 सीट सबसे कमजोर रही हैं। पार्टी बीते दिनों कांग्रेस के राजकुमार चौहान को इसीलिए अपने साथ लेकर आई थी जिससे इन सीट पर अपनी स्थिति मजबूत कर सके। मगर, वह फिर कांग्रेस में वापस चले गए।

बुनियादी सुविधाएं बड़ा मुद्दा
आरक्षित सीट वाली विधानसभाओं में पड़ने वाले इलाकों में बुनियादी सुविधाएं सबसे बड़ा मुद्दा है। इनमें कच्ची कॉलोनियां और जेजे कॉलोनी आती हैं। यहां के लोग अब भी सीवर, पानी जैसी सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। यही कारण है कि बीजेपी इन सीटों पर कच्ची कॉलोनी पास किए जाने का मुद्दा भुना रही है। वहीं, आम आदमी पार्टी का कहना है कि उसने इन इलाकों में पहले ही बहुत काम किया है।

किसी ने युवा तो किसी ने अनुभवी को उतारा
दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों पर तीनों दलों ने 40 साल से कम उम्र के आठ उम्मीदवार उतारे हैं। आप ने चार, कांग्रेस ने दो और बीजेपी ने एक उम्मीदवार 40 साल से कम का उतारा है। सबसे कम उम्र के उम्मीदवार 30 वर्षीय कुलदीप कुमार कोंडली विधानसभा से मैदान में हैं। जबकि, साठ साल से अधिक उम्र के उम्मीदवार उतारने वालों में सबसे आगे कांग्रेस हैं। उसने कुल छह ऐसे अनुभवी उम्मीदवारों को उतारा है। यह दिल्ली में दो से तीन बार विधायक भी रह चुके हैं। वहीं तीनों दलों में 40 से 60 साल की उम्र वाले 22 उम्मीदवार मैदान में हैं। इसमें आप से सात, बीजेपी से 11 और कांग्रेस से चार उम्मीदवार शामिल हैं। कांग्रेस के सीमापुरी से विधायक 66 वर्षीय वीर सिंह धीगांन इन सीटों में सबसे अधिक उम्र के उम्मीदवार हैं।

बीजेपी इन सीट को जीतने के लिए काफी लंबे समय से काम कर रही है। प्रदेश के कई बड़े नेता चुनाव घोषणा के पहले से ही ऐसी सीट की कॉलोनियों में रात्रि प्रवास कर रहे हैं। इसके अलावा छोटी-छोटी सभाओं पर भी जोर दिया जा रहा है। इस बार पार्टी ने एक सीट लोक जनशक्ति पार्टी को भी दी है। आप इन सीटों को मुफ्त योजनाओं के जरिए साधने में लगी है। क्योंकि, यहां कि अधिकतम आबादी को मुफ्त बिजली, पानी और महिला बस यात्रा का सीधा फायदा मिल रहा है। वहीं कांग्रेस अपने पुराने दिग्गज नेताओं के जरिए इन सीट को फिर जीतने की ताल ठोक रही है। इसलिए कृष्णा तीरथ, अमरीश गौतम, वीर सिंह धींगान, अरविंद सिंह जैसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है।

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