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डराते आंकड़ें : पुलिस हिरासत में हर साल सैकड़ों मौतें, उत्तर प्रदेश में हालात ज्यादा खराब

हर साल पुलिस व न्यायिक हिरासत में सैकड़ों की संख्या में मौतें हो रही हैं। इससे पुलिस सुधार व सिस्टम की खामियों को लेकर तरह-तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। संसद में भी ये सवाल कई बार उठ चुका है। लेकिन मौत...

डराते आंकड़ें : पुलिस हिरासत में हर साल सैकड़ों मौतें, उत्तर प्रदेश में हालात ज्यादा खराब
पंकज कुमार पाण्डेय,नई दिल्लीMon, 08 Jul 2019 03:40 AM
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हर साल पुलिस व न्यायिक हिरासत में सैकड़ों की संख्या में मौतें हो रही हैं। इससे पुलिस सुधार व सिस्टम की खामियों को लेकर तरह-तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। संसद में भी ये सवाल कई बार उठ चुका है। लेकिन मौत की अलग वजहों और सुधार के प्रयासों का हवाला देकर सरकार सवालों से बचती रही है। सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ो के मुताबिक पिछले तीन सालों में 4476 मौतें हिरासत के दौरान हुई है। इनमें से 427 पुलिस हिरासत के दौरान व 4049 मौतें न्यायिक हिरासत में हुई हैं। कांग्रेस के मधुसूदन मिस्त्री ने पिछले दिनों राज्यभा में यह मामला उठाया था।

वर्ष 2016-17 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत का आंकड़ा 145 था जबकि 1616 मौत न्यायिक हिरासत के दौरान हुई। इसी तरह वर्ष 2017-18 की अवधि में पुलिस कस्टडी में 146 और न्यायिक हिरासत में 1636 मौत हुई। वर्ष 2018-19 के दौरान पुलिस हिरासत में मरने वालों की तादाद 136 और न्यायिक हिरासत में हुई मौत का आंकड़ा 1797 तक पहुंच गया।

कई मौत के मामलों में सवाल के बावजूद कोई ठोस तथ्य नही मिल पाए जिससे संदेह किया जा सके, लेकिन कुछ मामलों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपना डंडा जरूर चलाया। पुलिस हिरासत में तीन साल के दौरान हुई कुल 427 मौत मे से एक गुजरात से जुड़े मामले में मानवाधिकार आयोग ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की। जबकि न्यायिक हिरासत के 19 मामलों में कार्रवाई की सिफारिश की गई। इनमें 6 उत्तर प्रदेश के और 5 मामले बिहार से जुड़े थे।

उत्तर प्रदेश में हालात ज्यादा खराब
उत्तर प्रदेश में तीन साल के दौरान करीब 1242 मौत न्यायिक हिरासत के दौरान हुई। जबकि पुलिस हिरासत में 33 लोगों की मौत हुई। बिहार में पुलिस हिरासत में 17 और न्यायिक हिरासत में 309 मौत हुई है । गुजरात मे न्यायिक हिरासत में तीन साल में 170 और पुलिस हिरासत में 37 मौत हुई। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी बड़ी संख्या में मौत हिरासत के दौरान हुई है।

अधिकारियों पर की जाती है कार्रवाई
संसद में समय समय पर उठे सवालों पर गृहमंत्रालय का कहना है कि संदिग्ध मामलों में संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है। इसके अलावा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य, विशेष प्रतिवेदक, और वरिष्ठ अधिकारी जेलों में मानवाधिकार की स्थिति का आकलन करने के लिए समय समय पर दौरा करते हैं और बेहतर मानवाधिकार स्थितियों के लिए सिफारिश भी करते हैं। मानवाधिकार के बेहतर संरक्षण के लिए लोकसेवकों को संवेदनशील बनाने का भी प्रयास किया जाता है। गौरतलब है कि मानवाधिकार संगठन कई बार पुलिस कस्टडी में होने वाले टॉर्चर व थर्ड डिग्री टॉर्चर को मौत की वजह मानते हैं। जेलों में बंद रहने के दौरान होने वाली मौत के लिए भी सवाल उठते रहे हैं।

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