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अच्छी खबर: भारत में कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन बनाने की कवायद हुई तेज, ICMR ने भारत बायोटेक से मिलाया हाथ

पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर से जूझ रही है, मगर अब तक उम्मीद की किरण कहीं से नहीं दिखी है। इस बीच भारत में भी वैक्सीन बनाने को लेकर कवायदें तेज हैं।  भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद...

अच्छी खबर: भारत में कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन बनाने की कवायद हुई तेज, ICMR ने भारत बायोटेक से मिलाया हाथ
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीSun, 10 May 2020 08:39 AM
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पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर से जूझ रही है, मगर अब तक उम्मीद की किरण कहीं से नहीं दिखी है। इस बीच भारत में भी वैक्सीन बनाने को लेकर कवायदें तेज हैं।  भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) कोविड-19 का पूर्ण स्वदेशी टीका विकसित करने के लिए भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) के साथ मिलकर काम कर रही है। एक बयान में बताया गया कि टीके का विकास आईसीएमआर के पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) में अलग किए गए वायरस के 'उप-प्रकार' का इस्तेमाल कर किया जएगा।

इसने कहा कि 'उप-प्रकार को एनआईवी से सफलतापूर्वक बीबीआईएल भेज दिया गया है। स्वास्थ्य अनुसंधान इकाई ने बयान में कहा, 'दो साझेदारों के बीच टीके के विकास पर काम शुरू हो चुका है। आईसीएमआर-एनआईवी टीके के विकास के लिए बीबीआईएल को सतत मदद उपलब्ध कराएगा।'

आईसीएमआर ने अपने ट्वीट में कहा, 'दोनों सहयोगियों के बीच वैक्सीन विकसित करने को लेकर काम शुरू हो गया है। इस प्रक्रिया में आईसीएमआर-एनआईवी की ओर से बीबीआईएल को लगातार सपोर्ट दिया जाता रहेगा। वैक्सीन डिवेलपमेंट, ऐनिमल स्टडी और क्लिनिकल ट्रायल को तेज करने के लिए आईसीएमआर और बीबीआईएल तेजी से अप्रूवल लेते रहेंगे।'

वहीं, भारत बायोटेक की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि इस प्रोजेक्ट के तहत लैब में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी तैयार की जाएंगी, जो कोरोना संक्रमित मरीजों के उपचार में बेहद कारगर साबित होंगी। इसके तहत स्वस्थ हो चुके कोरोना संक्रमित मरीजों से एंटीबॉडी ली जाएंगी। आमतौर पर एक सप्ताह के बाद स्वस्थ हो चुके व्यक्तित के रक्त में ये एंटीबॉडी बनती हैं।

बयान के मुताबिक, उत्तम गुणवत्ता की एंटीबॉडी लेकर प्रयोगशाला में उनके उनके जीन के क्लोन तैयार किए जाएंगे। इस प्रकार ये एंटीबॉडी इस बीमारी से लड़ने के लिए एक बेहतर दवा के रूप में कार्य करेंगी। मूलत: यह उपचार प्लाज्मा थैरेपी से दो कदम आगे की प्रक्रिया है। एक बार सफल होने पर लैब में बड़े पैमाने पर एंटीबॉडी तैयार की जा सकती हैं। जबकि प्लाज्मा थैरेपी में प्लाज्मा की ज्यादा मात्रा में उपलब्धता ही मुश्किल है।

यदि कोई कोरोना से संक्रमित होता है, तो ये एंटीबॉडी इस संक्रमण को रोकने में कारगर साबित होती हैं। दुनिया में इस दिशा में कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इससे पूर्व करीब 60 वायरसों के खिलाफ इस प्रक्रिया को इस्तेमाल किया जा चुका है। बता दें कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के एक अन्य प्रोजेक्ट के तहत भारत बायोटैक कोरोफ्लू नाम से कोरोना का टीका बना रहा है।
 

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