लॉकडाउन 4.0 में तालमेल की कमी, प्रवासी मजदूरों पर केंद्र-राज्य नहीं बना पाए ठोस नीति
कोरोना संकट के चौथे चरण के लॉकडाउन में केंद्र और राज्यों के बीच पहले जैसा समन्वय नही नजर आ रहा है। राज्यों की लॉकडाउन से बाहर निकलने की योजना में भी समन्वय की कमी अखर रही है। केंद्र के निर्देशों की...

कोरोना संकट के चौथे चरण के लॉकडाउन में केंद्र और राज्यों के बीच पहले जैसा समन्वय नही नजर आ रहा है। राज्यों की लॉकडाउन से बाहर निकलने की योजना में भी समन्वय की कमी अखर रही है। केंद्र के निर्देशों की कई राज्य अपने तरीके से व्याख्या करके छूट प्रदान कर रहे हैं, जिसकी वजह से भ्रम बढ़ा है और शिकायतें भी मिल रही हैं।
दिल्ली में एससीईआरटी द्वारा सभी कर्मियों को सामान्य तरीके से ड्यूटी पर आने को कहा गया, जबकि केंद्र सरकार की ओर से 50 फीसदी कर्मियों को बुलाने को कहा गया है। इसी तरह पश्चिम बंगाल ने नाइट कर्फ्यू को मानने से इंकार किया। प्रवासी मजदूरों को लेकर दिशा निर्देश ज्यादातर राज्यों में कागजों पर रह गए। सूत्रों ने कहा केंद्र के निर्देश के बाद भी श्रमिकों के लिए ट्रेन और बसें चलाने में अंतरराज्यीय समन्वय की कमी साफ दिख रही है।
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लॉकडाउन के चौथे चरण में राज्यों को ज्यादा अधिकार देने के बाद आपदा एक्ट को लेकर केन्द्र के नियंत्रण में भी कमी नजर आ रही है। केंद्र की ओर से कानून के उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान भी राज्यों में एक जैसा लागू नहीं हो रहा है। सूत्रों ने कहा कि लॉकडाउन के निर्देशों को लेकर शुरू से ही भ्रम बना रहा। इसकी वजह से ही केंद्र को सौ से ज्यादा स्पष्टीकरण विभिन्न मामलों में जारी करने पड़े, लेकिन जो प्रतिबद्धता नजर आ रही थी वह कई जगहों पर टूटी है। खासतौर पर मजदूरों के नाम पर केंद्र और कई राज्य आमने सामने नजर आए हैं।
वहीं राज्यों के बीच भी जमकर रस्साकशी हुई। प्रवासी मजदूरों के लिए कोई एक नीति नही बनने से संकट लगातार बना हुआ है। सूत्रों का कहना है कि केंद्र की ओर से राज्यों से संवाद लगातार जारी है। गृह मंत्रालय की ओर से नियुक्त किए गए अफसर राज्यों से समन्वय के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक निर्णयों की वजह से बैठकों में बनी सहमति सड़क पर पूरी तरह से अमल में नही आ पा रही है। लॉकडाउन के प्रावधान को कड़ाई से लागू करने की नसीहत पर राज्यों का आर्थिक संकट भारी पड़ रहा है। राज्य आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। इसकी वजह से स्थानीय परिस्थितियों के मुताबिक नीति तय करने का दबाव उनपर बढ़ रहा है।
