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सहयोग, सम्मान और समानता ही आठवां फेरा

आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान' की मुहिम आठवां फेरा शादी के बाद पति-पत्नी की समानता के लिए चलाई गई मुहिम है। इस आयोजन में महिलाओं ने परिवार और समाज में स्त्री के प्रति सोच और किन कारणों से...

सहयोग, सम्मान और समानता ही आठवां फेरा
Alakha Ram Singh हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीThu, 17 Oct 2019 01:39 AM
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आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान' की मुहिम आठवां फेरा शादी के बाद पति-पत्नी की समानता के लिए चलाई गई मुहिम है। इस आयोजन में महिलाओं ने परिवार और समाज में स्त्री के प्रति सोच और किन कारणों से पुरुष और स्त्री में असमानता है, पर खुलकर विचार रखे।

डीयू के रामानुजन कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. एसपी अग्रवाल ने कहा कि हम जिम्मेदारियों को बांटे, रिश्तों को समझें अपने सहयोगी का सम्मान करने के साथ-साथ समझौता करें तो रिश्ते मजबूत होंगे।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. साधना शर्मा ने कहा कि मैं रूढ़िवादी परिवार में रही, लेकिन मेरे अंदर आत्मविश्वास था कि मैं बराबर हूं। इस आत्मसम्मान ने मुझे आगे बढ़ाया। रिश्तों में परिपक्वता जरूरी है।

शिक्षक और चार्टर्ड अकाउंटेंट अशोक शर्मा ने कहा कि पत्नी के साथ किचन में हाथ बंटाना या घर के काम में हाथ बंटाना ही बराबरी नहीं है, बल्कि मेरा मानना है कि दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना और अपनी क्षमता के अनुसार काम में सहयोग करना भी बराबरी है। मेरा मानना है हाउस वाइफ शब्द न होकर हाउस मेकर प्रयोग किया जाना चाहिए।

आइजीडीटीयूडब्ल्यू में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की प्राध्यापिका दीप्ति छाबड़ा ने कहा कि शादी के बाद भी संबंधों में दोस्ती आवश्यक है। आठवां फेरा मेरे लिए रिश्तों का सरल होना ही है। शिक्षक आलोक रंजन पांडेय ने कहा कि सात फेरे के बारे में शास्त्रों में कहा गया है, लेकिन मेरा मानना है कि आठवां फेरा स्त्री के अभिवादन का होना चाहिए। पति द्वारा पत्नी को इज्जत और सम्मान देने का होना चाहिए। यह शुरुआत हमें घर से करनी होगी। तभी बाकी लोग करेंगे। शिक्षिका मनीषा ने कहा कि जब हम अपनी मर्जी से विवाह करते हैं, तब सबसे पहले आठवां फेरा ही लेते हैं। बराबरी घर से स्कूल से शुरू करनी होगी। स्टूल उठाने के लिए लड़कों से ही क्यों कहें, लड़की से क्यों नहीं? यह भेदभाव बदलना होगा।

शिक्षक रूपेश शुक्ला ने कहा कि मेरे पिता और मां बराबरी पर नहीं थे, लेकिन आज स्थिति कुछ अलग है। उदाहरण के लिए उन्होंने अपने निजी अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि पहले संपत्ति, परिवार नियोजन सहित तमाम मुद्दों पर पत्नी की राय नहीं ली जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। शिक्षिका सुधा पांडेय ने कहा कि मेरे लिए आठवां फेरा बहुत पहले से है। मेरे पति मेरे लिए करवाचौथ का व्रत रखते हैं। परिवार में समझौता पत्नी ही नहीं पति भी करता है।

लेखक रवींद्र के दास ने कहा कि समानता की बात करते हुए हम आदर्शवादी हो जाते हैं, लेकिन व्यावहारिक होने की आवश्कता है। सबकी अपनी योग्यता है। यह केवल पति-पत्नी के संबंध में ही नहीं, बल्कि बच्चों के लिए आवश्यक है।

 

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सरिता दास ने कहा कि मैंने गैरबराबरी अपने मायके में देखी है। विवाह के बाद जब मेरे पति ने मुझसे बराबरी की बात कही, तो मेरे अंदर एक आत्मविश्वास जगा।

प्रो. अजय के सिंघोली ने कहा कि इस देश में दो-तीन तरह का समाज है। हम शहरी परिवेश की बात कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीण परिवेश में स्थिति काफी अलग है। यह बदलाव शिक्षा से ही हो सकता है। रिश्तों में एक दूसरे की सराहना भी आवश्यक है।

व्यापारी रवि गुप्ता ने कहा कि पति-पत्नी के बीच समानता के साथ संवाद जरूरी है। कई बार होता है कि हम समानता की बात करते हैं, लेकिन उसे अपनाते नहीं है। इसे व्यवहार में लाना आवश्यक है।

एआरएसडी कॉलेज की शिक्षिका डॉ. अंजलि ने कहा कि रिश्तों में एक दूसरे के लिए स्थान आवश्यक है। मैंने शादी के बाद अपनी पढ़ाई पूरी की और आज शिक्षिका हूं। हर जगह नारीवादी होने का झंडा उठाना जरूरी नहीं है।
 

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