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बिहार विधानसभा चुनाव फतह करने के लिए कांग्रेस लेगी 'झारखंड मॉडल' का सहारा!

झारखंड विधानसभा चुनाव में मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस पार्टी अब बिहार में भी इसका सिलसिला बरकार रखने की तैयारी में जुट गई है। कांग्रेस की इस कोशिश में जुटी है कि बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी...

Himanshu Jha एचटी, औरंगजेब नक्शबन्दी, नई दिल्लीThu, 2 Jan 2020 08:39 AM
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झारखंड विधानसभा चुनाव में मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस पार्टी अब बिहार में भी इसका सिलसिला बरकार रखने की तैयारी में जुट गई है। कांग्रेस की इस कोशिश में जुटी है कि बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ उसका गठबंधन जमीन पर भी मजबूत दिखे।

झारखंड में कांग्रेस पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के साथ गठंबन में दूसरे नंबर की पार्टी है। वहीं, बिहार में आरजेडी की नेतृत्व वाली महागठंबन में जूनियर पार्टनर है, जिसके मुख्यमंत्री उम्मीदवार लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव हैं।

कांग्रेस और आरजेडी के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP), पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के भी महागठबंधन में साथ आने की पूरी संभावना है। बीते साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भी इन दलों के बीच टाई-अप देखने को मिला था। इसके अलावा विकासशील इंशान पार्टी (VIP) और कॉम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्किस्ट-लेनिन) भी एक तरीके से इसका हिस्सा रही।

हालांकि, सीट शेयरिंग पर अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है। संभावना है कि अप्रैल-मई तक इस मुद्दे पर बातचीत होगी। कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल का कहना है कि अप्रैल में गंठबंधन के सहयोगियों के साथ सीट शेयरिंग पर बातचीत होगी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हमने सभी 243 सीटों पर काम शुरू कर दिया है। बता दें कि अक्टूबर-नवंबर तक बिहार विधानसभा चुनाव होने की संभावना है।

झारखंड में कांग्रेस ने जिला स्तर के सभी नेताओं को साफ-साफ निर्देश दिया था कि गठबंधन के सहयोगी दलों के नेताओं के साथ मिलकर चुनाव प्रचार करें। 2019 के लोकसभा चुनाव में इसकी कमी देखने को मिली थी।  गोहिल ने कहा कि बिहार में भी हम इसी फॉर्मूले पर काम करेंगे। जमीन स्तर पर हमारी तैयारी बेशक गठबंधन के हमारे सहयोगियों के लिए मददगार साबित होगा। 

2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी महागठबंधन की नाव पर सवारकर बिहार विधानसभा चुनाव के सफर को पूरा किया था। ज्ञात हो कि इस चुनाव में जेडीयू भी महागठबंधन की हिस्सा थी। कांग्रेस ने इस चुनाव में 41 में से 27 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यह बीते 25 वर्षों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। कांग्रेस को उम्मीद है कि अपने उस प्रदर्शन को वह दोहराएगी।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा के मुताबिक, 'बिहार में जारी भ्रष्टाचारा के कारण नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल है। महागठबंधन की जीत में यह मददगार साबित होगा।' झा ने यह भी कहा, 'बिहार में जेडीयू और बीजेपी के बीच उलझन की स्थिति है। दोनों सहयोगी पार्टियों के बीच ही नीचा दिखाने की कोशिश लगातार जारी है।'

सीट शेयरिंग को लेकर दोनों दलों के शीर्ष नेताओं के बीच सीट शेयरिंग को लेकर स्थिति स्पष्ट हो चुकी है। इस वजह से एनडीए गठबंधन एकजुट दिख रही है। हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी इस बात पर स्थिति स्पष्ट कर दी थी कि आगामी विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ही सीएम पद के उम्मीदवार होंगे।   इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि जेडीयू केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो सकती है।

इस विधानसभा चुनाव में महागठबंधन लालू यादव की कमी महसूस कर सकती है। लालू यादव 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठंबधन के स्टार प्रचारक थे। 

महागठबंधन में शामिल घटक दल अगर जातीय आधार पर एक-दूसरे को वोट ट्रांसफर करवाने में सफल होते हैं तो महागठबंधन की स्थिति मजबूत हो सकती है। आरजेडी का जहां यादवों और मुस्लिम मतादाताओं पर मजबूत पकड़ है वहीं, आरएलएसपी के पास ओबीसी में शामिल कोयरी जाति का वोट है। ठीक इसी तरह HAM को मुशहरों की पार्टी माना जाता है। इसके अलावा मुकेश सहनी की वीआईपी का दावा है कि उसके पास मल्लाहों का समर्थन हासिल है। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में इन जातियों ने  संगठित होकर महागठबंधन के लिए वोट नहीं किया था। यही कारण रहा कि एनडीए बिहार में क्लीन स्विप करने में सफल रही। 40 में से 39 सीटों पर जीत दर्ज की।

कांग्रेस जो समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व का दावा करती है, वह 1990 के दशक से बिहार की राजनीति में हाशिये पर चली गई है। मंडल की राजनीति के बाद कांग्रेस की स्थिति में गिरावट आई और बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे क्षत्रप बिहार की राजनीति में मजबूती से उभरकर सामने आए। बीते तीन दशकों में कांग्रेस पार्टी ने विभिन्न जातिगत समीकरणों पर काम की लेकिन, सभी प्रयास पुराने रुतबे को लौटाने में असफल साबित हुए।

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