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JPC के चलते कांग्रेस ने 3 बार गंवाई सत्ता, समझें क्यों अडानी मामले की इसी से जांच कराने पर अड़ा विपक्ष

देश की संसद के पास काफी काम रहता है और समय का अभाव भी होता है। ऐसे में अलग-अलग विधेयकों, मुद्दों और रिपोर्ट्स की जांच के लिए JPC गठित की जाती है। जेपीसी को सबूत जुटाने का हक होता है।

JPC के चलते कांग्रेस ने 3 बार गंवाई सत्ता, समझें क्यों अडानी मामले की इसी से जांच कराने पर अड़ा विपक्ष
Niteesh Kumarलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीSat, 04 Feb 2023 09:27 PM
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कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल अडानी समूह से जुड़े मामले की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से जांच कराने की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर विपक्ष ने संसद में नारेबाजी और हंगामा भी किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हम विपक्षी दलों ने मिलकर इस मामले में एक रुख तय किया है। LIC के पैसे की बर्बादी और कई बैंकों का पैसा अडानी एंटरप्राइजेज में लगा हुआ है। हम चाहते हैं कि इस घोटाले की जांच हो। जेपीसी से इसकी जांच कराई जाए। वहीं, कांग्रेस के संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने सरकार पर लोगों की बचत की रक्षा करने के प्रति असंवेदनशील होने का आरोप लगाया और जेपीसी से जांच कराने की मांग दोहराई।

भाजपा का कहना है कि अडानी मामले में जेपीसी जांच की विपक्ष की मांग जायज नहीं है। बीजेपी सांसद महेश जेठमलानी ने विपक्ष के इस आरोप को खारिज कर दिया कि अडाणी समूह में LIC की ओर से निवेश सरकार के इशारे पर किया गया। उन्होंने कहा कि मामले की जेपीसी से जांच कराने की मांग को जायज नहीं ठहराया जा सकता। दूसरी ओर, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) इस मामले में जेपीसी से जांच कराने की मांग को लेकर 13 फरवरी को प्रदर्शन करने जा रही है। भाकपा ने अपनी यूनिट्स से कहा है कि वे 13 फरवरी को 'विरोध दिवस' के रूप में मनाएं। सवाल है कि आखिर ये जेपीसी क्या है? अडानी मामले में विपक्ष इसी से जांच कराने पर जोर क्यों दे रहा है?

जेपीसी क्या है?
जेपीसी का फुल फॉर्म ज्वॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी है। यह अस्थायी समिति है। इसका गठन संसद की ओर से किसी विशेष मामले या रिपोर्ट की जांच के लिए होता है। दरअसल, संसद में काफी काम रहता है और समय का अभाव भी होता है। ऐसे में अलग-अलग विधेयकों, मुद्दों और रिपोर्ट्स की जांच के लिए JPC गठित की जाती है। जेपीसी को सबूत जुटाने का हक होता है। यह समिति किसी भी व्यक्ति, संस्था या उस पक्ष को बुलाकर पूछताछ कर सकती है जिसे लेकर जांच चल रही है। खास बात यह है कि इसका गठन अनेक दलों के सदस्यों को मिलाकर किया जाता है।

बोफोर्स घोटाला
राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स तोप खरीद मामले में घोटाले के आरोप लगे थे। इसकी जांच के लिए 1987 में जेपीसी का गठन हुआ था। इस कथित घोटाले में इतालवी व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची का नाम सामने आया था, जिसे राजीव गांधी परिवार का नजदीकी माना जाता था। इस सौदे के तहत 400 बोफोर्स तोपों की खरीद 1.3 अरब डॉलर में हुई थी। विपक्ष के दबाव में JPC का गठन हुआ। माना जाता है कि 1989 में हुए आम चुनाव में इसके चलते ही कांग्रेस हार गई।

हर्षद मेहता घोटाला
हर्षद मेहता घोटाला बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता से जुड़ा हुआ है। शेयर मार्केट घोटाले को लेकर हर्षद मेहता का नाम सामने आया था। उस वक्त केंद्र में पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार थी जिस पर सुरक्षा मामलों व बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता के आरोप लगे। इस मामले की जांच के लिए 1992 में जेपीसी गठित की गई। जब 1996 में आम चुनाव हुए तो कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा।

2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला
2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए 2011 में जेपीसी का गठन हुआ था। दरअसल, 2010 में सीएजी की रिपोर्ट आई थी, जिसमें 2008 में बांटे गए स्पेक्ट्रम पर सवाल उठाए गए थे। इसमें कहा गया था कि स्पेक्ट्रम की नीलामी की बजाय ‘पहले आओ पहले पाओ’ की नीति अपनाई गई, जिससे सरकार को 1,76,000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। माना जाता है कि इसकी जांच रिपोर्ट ने 2014 के चुनाव में कांग्रेस की हार में बड़ी भूमिका निभाई थी।

इन 3 मामलों के अलावा केतन पारेख शेयर मार्केट घोटाला (2001), सॉफ्ट ड्रिंक में पेस्टिसाइड का मामला (2003) और VVIP हेलिकॉप्टर घोटाला (2013) में JPC का गठन हुआ है। इस तरह यह समझा जा सकता है कि जेपीसी क्या अहमियत रखती है और क्यों अडानी मामले को लेकर विपक्ष इसके गठन की मांग पर अड़ा हुआ है। अब यह देखना होगा कि देश के इतिहास में एक और बार जेपीसी का गठन होता है या नहीं।