वैसे तो कहा जाता है कि नाम में कुछ नहीं रखा है। लेकिन कोरोना के तेजी से फैल रहे नए प्रकार के नाम को लेकर वैज्ञानिक अभी भी माथापच्ची कर रहे हैं। डब्ल्यूएचओ ने तो बाकायदा एक बड़ी बैठक भी इस मुद्दे पर कर ली है, लेकिन कोई नाम नहीं सुझा पा रहे हैं।
नेचर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार बीती 12 जनवरी को जिनेवा में इस मुद्दे पर डब्ल्यूएचओ की कई घंटे चली बैठक में नए प्रकार का नामकरण नहीं हो सका। नाम को लेकर विशेषज्ञों में सहमति नहीं बन पाई।
बैठक में उपस्थित विशेषज्ञों के दो विचार स्पष्ट थे। एक, जिस देश में यह वायरस मिला है, उसके नाम पर इसकी पहचान रखना ठीक नहीं क्योंकि जिस देश में पहले वायरस मिला है, यह जरूरी नहीं कि वहीं इसका सृजन हुआ हो। दूसरे, नामकरण इसके खतरों के आधार पर होना चाहिए। मसलन यह तेजी से फैलता है, यह नाम में स्पष्ट झलकना चाहिए।
तीन देशों में करीब एकसाथ मिला:
अभी वैज्ञानिक नए कोरोना प्रकार को बी-1.1.7 के नाम से संबोधित कर रहे हैं। लेकिन कई जगह इसे यूके वेरिएंट, कहीं साउथ अफ्रीका वेरिएंट तो कहीं ब्राजील वेरिएंट भी कहा जाता है। तीन देशों में यह करीब-करीब साथ-साथ ही मिला था। लेकिन इन देशों के प्रतिनिधि अपने देश के नाम से वायरस को जोड़े जाने से असहमत हैं। ब्रिटेन के मीडिया में वायरस को केंट वरिएंट भी लिखा जा रहा है क्योंकि सबसे पहले यह ब्रिटेन के केंट क्षेत्र में मिला था। लेकिन विशेषज्ञ देश के साथ-साथ किसी क्षेत्र से भी वायरस के नाम को जोड़े जाने के पक्ष में नहीं हैं। बता दें कि इससे पहले भी इस प्रकार के नामकरण पर संबंधित देश आपत्ति जता चुके हैं।
नाम तय करने की नीति बनेगी
डब्ल्यूएचओ की बैठक में जब कोई नतीजा नहीं निकला तो इस बात पर जोर दिया गया कि नए मिलने वाले वायरस के नाम तय करने को लेकर एक समग्र नीति बननी चाहिए। नाम में उस चिंता को प्रदर्शित किया जाए जो उस वायरस के संक्रमण से पैदा होती है। बहरहाल, यह माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और बैठकें हो सकती हैं। इस प्रकार वायरस के नाम तय करने को लेकर कोई ठोस नीति सामने आ सकती है।