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CJI रंजन गोगोई बोले, न्यायपालिका की आजादी गंभीर खतरे में

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई)जस्टिस रंजन गोगोई ने शनिवार को कहा कि न्यायपालिका की आजादी गंभीर खतरे में है। उन्होंने यह टिप्पणी उनके खिलाफ एक महिला द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को...

 CJI रंजन गोगोई बोले, न्यायपालिका की आजादी गंभीर खतरे में
नई दिल्ली | श्याम सुमन Sun, 21 Apr 2019 09:26 AM
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सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई)जस्टिस रंजन गोगोई ने शनिवार को कहा कि न्यायपालिका की आजादी गंभीर खतरे में है। उन्होंने यह टिप्पणी उनके खिलाफ एक महिला द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर की गई विशेष सुनवाई के दौरान की। इस पीठ में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल थे। 

मुख्य न्यायाधीश ने शनिवार को सुबह साढ़े 10 बजे सुनवाई शुरू होने के बाद कहा उन्हें विश्वास है कि इस आरोप के पीछे एक बड़ा षड्यंत्र है जो मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहता है। मैं देश की जनता को बताना चाहता हूं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बहुत-बहुत गंभीर खतरा है। यदि जजों को ऐसी परिस्थितियों के साथ काम करना पड़ेगा तो अच्छे लोग कभी इस कार्यालय में नहीं आएंगे। 
 

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जस्टिस गोगोई ने कहा, मैं यह इस देश का एक नागरिक होने के नाते कह रहा हूं। लेकिन कुछ भी हो, मैं अपने कार्यकाल के अंतिम दिन तक निडर होकर इस कुर्सी पर रहूंगा और काम करता रहूंगा। उन्होंने कहा, यह अविश्वसनीय है, मैं इन आरोपों को नकारने के लिए नीचे नहीं झुकूंगा। मैंने आज अदालत में बैठने का असामान्य और असाधारण कदम उठाया है क्योंकि चीजें बहुत आगे बढ़ चुकी हैं। 

बीस साल की सेवा का यह सिला : मुख्य न्यायाधीश ने भावुक होकर कहा कि मेरे 20 साल के निस्वार्थ करियर के बाद कोई विश्वास नहीं करेगा कि मेरे बैंक खाते में सिर्फ 6.80 लाख रुपये हैं। 20 लाख रुपये मैंने अपनी बेटी को दिए थे। कोई मुझे धन के मामले में नहीं पकड़ सकता, लोग कुछ ढूंढ़ना चाहते हैं और उन्हें यह मिला। जब मैंने एक जज के रूप में करियर शुरू किया, मुझे बहुत उम्मीदें थीं और अब जब मैं सेवानिवृत्ति के कगार पर हूं तो मेरे पास छह लाख रुपये का बैलेंस है। 20 साल की सेवा के बाद सीजेआई को यह इनाम मिला है। 

बलि का बकरा नहीं बना सकते : अदालत ने कहा कि न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता। मीडिया को सच्चाई का पता लगाए बिना इस महिला की शिकायत का प्रकाशन नहीं करना चाहिए। जस्टिस गोगोई ने कहा कि यह मामला ऐसे समय आया है जब उनकी अध्यक्षता वाली पीठ को अगले सप्ताह अनेक संवेदनशील मामलों की सुनवाई करनी है और यह देश में लोकसभा चुनावों का महीना भी है। 

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न्यायिक आदेश नहीं 
पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश कर रहे थे लेकिन उन्होंने न्यायिक आदेश पारित करने का काम जस्टिस अरुण मिश्रा और संजीव खन्ना पर छोड़ दिया था। आदेश में कहा गया है कि मामले पर विचार करने के बाद फिलहाल कोई भी न्यायिक आदेश पारित करने से गुरेज कर रहे हैं। मीडिया मामले को प्रकाशित करते हुए देखे कि बेबुनियाद आरोपों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित न हो। 

यह ब्लैकमेल की तकनीक
सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जरनल तुषार मेहता ने कहा कि यह ब्लैकमेल की तकनीक है। सुनवाई में अटॉर्नी जरनल केके वेणुगोपाल भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी इस तरह की दो घटनाएं सामने आई थीं। पहला मामला शीर्ष अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश और दूसरा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के खिलाफ था और इन मामलों में मीडिया को कुछ भी प्रकाशित नहीं करने की हिदायत दी गई थी। उन्होंने कहा लेकिन आरोपों को प्रकाशित करने वाले न्यूज पोर्टल ने बेधड़क से इनका प्रकाशन किया।

आरोप निराधार
24 घंटे में महिला ने मामले में कोर्ट के महासचिव कार्यालय से जवाब देने की मांग की। महासचिव कार्यालय ने कहा, ई-मेल पर सुप्रीम कोर्ट का जवाब यह है कि 11 अक्तूबर 2018 की कथित घटना से संबंधित आरोप तथा अन्य आरोप जो लगाए गए हैं दुर्भावनापूर्ण, निराधार, पूर्णरूप से झूठे हैं। इन्हें नकारा जाता है।

क्या है मामला
21 दिसंबर 2018 तक सुप्रीम में जूनियर कोर्ट सहायक रही महिला कर्मी ने 19 अप्रैल 2019 को शीर्ष अदालत के 22 जजों को हलफनामा भेज यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया और 11 अक्तूबर 2018 को हुई कथित दो घटनाओं का जिक्र किया। यह जानकारी शनिवार को सार्वजनिक हो गई।

अन्य पीठ करेगी सुनवाई
कोर्ट ने कहा कि इस मामले को एक उचित पीठ सुनेगी जिसमें वरिष्ठ जज होंगे। यह कहकर अदालत ने कार्यवाही खत्म कर दी। जाहिर है इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश शामिल नहीं होंगे। 

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