ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News देश कम लोग पहुंचते हैं अदालत, ज्यादातर आबादी मौन रहकर सह रही पीड़ा: चीफ जस्टिस NV रमण

कम लोग पहुंचते हैं अदालत, ज्यादातर आबादी मौन रहकर सह रही पीड़ा: चीफ जस्टिस NV रमण

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमण ने कहा, 'आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था। लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है।'

 कम लोग पहुंचते हैं अदालत, ज्यादातर आबादी मौन रहकर सह रही पीड़ा: चीफ जस्टिस NV रमण
Niteesh Kumarपीटीआई,नई दिल्लीSat, 30 Jul 2022 02:25 PM

इस खबर को सुनें

0:00
/
ऐप पर पढ़ें

चीफ जस्टिस एन. वी. रमण ने न्याय तक पहुंच को 'सामाजिक उद्धार का उपकरण' बताया है। उन्होंने शनिवार को कहा कि जनसंख्या का बहुत कम हिस्सा ही अदालतों में पहुंच सकता है और अधिकतर लोग जागरुकता व आवश्यक माध्यमों के अभाव में मौन रहकर पीड़ा सहते रहते हैं।

न्यायमूर्ति रमण ने अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों की पहली बैठक में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि लोगों को सक्षम बनाने में प्रौद्योगिकी बड़ी भूमिका निभा रही है। उन्होंने न्यायपालिका से 'न्याय देने की गति बढ़ाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी उपकरण अपनाने' की अपील की।

जस्टिस रमण ने कहा, 'सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की इसी सोच का वादा हमारी (संविधान की) प्रस्तावना प्रत्येक भारतीय से करती है। वास्तविकता यह है कि आज हमारी आबादी का केवल एक छोटा प्रतिशत ही न्याय देने वाली प्रणाली से जरूरत पड़ने पर संपर्क कर सकता है। जागरुकता और आवश्यक साधनों की कमी के कारण अधिकतर लोग मौन रहकर पीड़ा सहते रहते हैं।'

'न्याय तक पहुंच सामाजिक उद्धार का साधन'
चीफ जस्टिस ने कहा, 'आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था। लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है। सामाजिक उद्धार के बिना यह भागीदारी संभव नहीं होगी। न्याय तक पहुंच सामाजिक उद्धार का एक साधन है।'

रमण ने भी कहा कि जिन पहलुओं पर देश में कानूनी सेवा अधिकारियों के हस्तक्षेप और सक्रिय रूप से विचार किए जाने की आवश्यकता है, उनमें से एक पहलू विचाराधीन कैदियों की स्थिति है। उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री और अटॉर्नी जनरल ने मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के हाल में आयोजित सम्मेलन में भी इस मुद्दे को उठाकर उचित किया। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि नालसा (राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण) विचाराधीन कैदियों को अत्यावश्यक राहत देने के लिए सभी हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है।'

न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि भारत, दुनिया की दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, जिसकी औसत उम्र 29 वर्ष साल है और उसके पास विशाल कार्यबल है। लेकिन कुल कार्यबल में से मात्र तीन प्रतिशत कर्मियों के दक्ष होने का अनुमान है। प्रधान न्यायाधीश ने जिला न्यायपालिका को दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की न्याय देने की प्रणाली के लिए रीढ़ की हड्डी बताया।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें