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जांबाज: 9 गोलियां, 40 जख्म के बावजूद 'चीते' ने दी थी मौत को मात, अब मिला कीर्ति चक्र

सैन्य अभियानों में अदम्य साहस और पराक्रम के लिए हर साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिए जाने वाले कीर्ति चक्र के लिए इस साल पांच जवानों को चुना गया है। इनमें से तीन को यह सम्मान मरणोपरांत प्रदान किया...

जांबाज: 9 गोलियां, 40 जख्म के बावजूद 'चीते' ने दी थी मौत को मात, अब मिला कीर्ति चक्र
लाइव हिन्दुस्तान,दिल्ली Tue, 15 Aug 2017 02:09 PM
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सैन्य अभियानों में अदम्य साहस और पराक्रम के लिए हर साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिए जाने वाले कीर्ति चक्र के लिए इस साल पांच जवानों को चुना गया है। इनमें से तीन को यह सम्मान मरणोपरांत प्रदान किया जाएगा। रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक जानकारी के मुताबिक इस साल कीर्ति चक्र के लिये चुने गए जवानों में आतंकरोधी अभियानों में अपने प्राणों की आहुति देने वाले दो जवान भी शामिल हैं। गोरखा राइफल्स के हवलदार गिरिस गुरंग, नगा रेजीमेंट के मेजर डेविड मनलुन और सीआरपीएफ की 49वीं बटालियन के कमांडेंट प्रमोद कुमार को इस साल मरणोपरांत कीर्ति चक्र दिया जाएगा। 
      
इनके अलावा गढ़वाल राइफल के मेजर प्रीतम सिंह कुंवर और सीआरपीएफ के वरिष्ठ अधिकारी चेतन कुमार चीता को भी कीर्ति चक्र के लिए चुना गया है। कीर्ति चक्र वीरता के लिए दिया जाने वाला दूसरा शीर्ष पदक है।

9 गोलियां, 40 जख्म के बावजूद 'चीते' ने दी थी मौत को मात

कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए सीआरपीएफ के कमांडेंट चेतन चीता घायल हो गए थे। जिसके बाद उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था। उन्हें नौ गोलियां लगी थी जिसके बाद उन्हें 14 फरवरी को दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था। एम्स ट्रॉमा सेंटर के चीफ अनुराग श्रीवास्तव ने तब कहा था कि जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था तब चेतन चीता के शरीर में कई गंभीर चोटें थीं। उनके शरीर से खून बह रहा था। दोनों हाथों में फ्रेक्चर था, चेहरे में कई चोट थी और दाई आंख पर बुलेट इंजरी थी। 

चीता का इलाज करने वाले डॉ अमित गुप्ता ने बताया था कि उनके ब्रेन में इंजरी थी इसलिए उनके सिर का ऑपरेशन किया गया है। ये ऑपरेशन 15 फरवरी को किया गया था। उनकी सीधी आंख की आईबॉल में भी बुलेट इंजरी थी। इसकी वजह से उनकी आईबॉल में छेद था और उसका भी ऑपरेशन किया गया। 

चीता को वेंटिलेटर पर रखा गया था। सांस लेने के लिए उनके गले में छेद किया गया था ताकि वह आसानी से सांस ले सके। उनके पैर में भी चोट थी। अब उन्हें स्पीच थेरिपी भी दी जा रही है ताकि वह सही से बोल सकें। उन्हें एक महीने तक आईसीयू केयर में रखा गया था। 

कमांडेंड चीता का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने कहा कि उनके इलाज के लिए 100 से ज्यादा स्टाफ लगा हुआ था। इसमें डॉक्टरों के अलावा अन्य स्टाफ जैसे नर्स, टेक्नीशियन और ब्लड बैंक स्टाफ के लोग शामिल थे। उन्होंने बताया कि कमांडेंट चीता के आत्मविश्वास के चलते वह इतनी जल्दी अस्पताल से वापस लौट सके। उन्होंने बताया कि अमूमन ऐसे मामलों में मरीज को दो महीनों से दो साल तक का समय लग जाता है। 

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