चौरी-चौरा कांडः जब आंदोलनकारियों ने फूंक दिया थाना, 172 को सुनाई गई फांसी की सजा; गांधी जी ने उठा लिया बड़ा कदम
4 फरवरी 1922 में गोरखपुर के पास चौरा-चौरी में आंदोलनकारियों ने थाने को आग लगा दी थी। इसके बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का ऐलान कर दिया।
चौरी-चौरा कांड इतिहास की एक ऐसी घटना थी जिसके बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का ऐलान कर दिया। गांधी जी ने खुद अपने लेख में कहा था कि उन्होंने चौरी-चौरा की घटना को लेकर ही आंदोलन वापस लिया है वरना देश में ऐसी और भी घटनाएं हो सकती थीं। गोरखपुर के चौरा-चौरी में गुस्साई भीड़ ने थाने में आग लगा दी थी जिसमें कम से कम 23 पुलिसकर्मी मारे गए थे। इस मामले में केस चला तो 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई और कई लोगों को कालापानी भेज दिया गया। आइए जानते हैं कि आखिर 4 फरवरी 1922 की घटना क्या थी और इसकी नींव कैसे पड़ी।
महात्मा गांधी ने 16 फरवरी को एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था, 'चौरी-चौरा का अपराध।' इस लेख में उन्होंने हिंसा के लिए पुलिसवालों को जिम्मेदार ठहराया था। साथ ही प्रदर्शनकारियों को भी तुरंत गिरफ्तारी देने को कह दिया था। दरअसल जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद पूरे देश में रोष था। महात्मा गांधी ने स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया। गांधी जी के कहने पर पूरा देश एकजुट होने लगा। लोग विदेशी सामान की होली जलाने लगे और सरकारी काम से छुट्टी लेने लगे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में मुस्लिम लीग भी जुड़ गई।
इसी दौरान गोरखपुर के पास चौरा-चौरी गांव के पास ही कांग्रेस के स्वयंसेवकों ने एक मंडल बनाया। इसमें वॉलंटियरों की भर्ती चल रही थी। गंधी जी ने जब खिलाफत आंदोलन को भी असहयोग आंदोलन केसाथ जोड़ा तो भारी संख्या में मुसलमान भी इसमें शरीक होने लगे। जनवरी 2922 को चौरा के रहने वाले ही मुहम्मद साईं ने खिलाफत आंदोलन के चहरे हकीम आरिफ को भाषण देने के लिए बुलाया था। वहीं पास में डुमरी गांव में एक बाजार थी जिसका नाम था मुंडेरा बाजार। इस बाजार के मालिक संत बक्स सिंह थे।
मुंडेरा बाजार में वॉलंटियर धऱना देना चाहते थे लेकिन संत बक्स इसके खिलाफ था। उसने स्वयंसेवकों को वहां से भगा दिया। इसके बाद वॉलंटियर भी जिद पर अड़ गए। अगली बार ज्यादा संख्या में लोग धरना देने पहुंचे। इस बार संत बक्स विरोध नहीं कर पाए और इसके बाद एक बड़ा जुलूस निकाला गया। 1 फरवरी को फिर से मुंडेरा बाजार में धरने का प्लान बना। संत बक्स ने फिर उनको भगा दिया। फिर आ गया 4 फरवरी का वह दिन जब बड़ी घटना होने वाली थी। शनिवार के दिन बड़ी संख्या में लोग मुंडेरा बाजार में इकट्ठा हुए।
गांधी टोपी कुचली तो भड़क गई हिंसा
वॉलंटिर संत बक्स से बदला लेने का प्लान कर रहे थे। इसकी खबर चौरी-चौरा के दारोगा गुप्तेश्वर सिंह को लगी तो उसने अतिरिक्त पुलिस फोर्स बुला ली। पुलिस ने पहले कार्यकर्ताओं से वहां से हटने को कहा लेकिन जब वे नहीं माने तो बाजाप बंद करवाने का ऐलान कर दिया गया। थोड़ी ही देर मे भीड़ और बढ़ गई। भीड़ इतनी बढ़ती चली गई कि लोगों को संभालना मुश्किल हो रहा था। इसी बीच पुलिस ने भी आक्रोश दिखाया। इसी बीच एक सिपाही ने एक आंदोलनकारी की गांधी टोपी निकाली और कुचलने लगा। इसके बाद तो आंदोलनकारी बुरी तरह भड़क गए और नारेबाजी तेज हो गई। तभी पुलिस ने गोलीबारी शुरू कर दी। बताया जाता है कि इसमें कई आंदोलनकारियों की मौत हो गई।
भीड़ ज्यादा थी। थोड़ी देर मे ही पुलिसवालों के पास कारतूस खत्म हो गई। वे थाने की ओर भागे। आंदोलनकारियों ने उन्हें दौड़ा लिया और थाने में पहुंचकर आग लगा दी। दारोगा गुप्तेश्वर को भी भीड़ ने उठाकर आग में फेंक दिया। इस हिंसा में 23 पुलिसवाले जिंदा जला दिए गए। घठना के बाद सैकड़ों लोगों के खिलाफ के दर्ज हुआ। 225 लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाया। एक साल बाद सेशन कोर्ट ने 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई।
कांग्रेस कमेटी इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंची। तब इस मामले की पैरवी महामना मदनमोहन मालवीय कर रहे थे। हाई कोर्ट ने कई लोगों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदली। 19 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। 16 को काला पानी भेज दिया गया। करीब 40 लोग बरी भी हो गए। महात्मा गांधी इस घटना से बहुत आहत हुए थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। क्रांतिकारियों को महात्मा गांधी का यह फैसला अच्छा नहीं लगा। यह भी कहा जाता है कि आंदोलन वापस लेना और इस कांड की वजह से ही आजादी मिलने में 25 साल की देरी हो गई।