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क्या है विक्रम संवत, जिसे कहते हैं हिंदू नववर्ष और किस महान शासक ने की थी शुरुआत

विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने की थी। शकों को पराजित करने के बाद चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इसकी शुरुआत की थी। इस संवत को नेपाल में भी मान्यता दी जाती है

क्या है विक्रम संवत, जिसे कहते हैं हिंदू नववर्ष और किस महान शासक ने की थी शुरुआत
Surya Prakashलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीWed, 22 Mar 2023 11:36 AM
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चैत्र नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी हो गई है। इसे विक्रम संवत भी कहा जाता है। आज से विक्रम संवत 2080 प्रारंभ हो गया है। इसकी शुरुआत 57 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने की थी। शकों को पराजित करने के बाद चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इसकी शुरुआत की थी। इस संवत को नेपाल में भी मान्यता दी जाती है, जो भारत के बाद दूसरा हिंदू बहुसंख्यक देश है। 9वीं सदी में कुछ पुरालेखों के अध्ययन के बाद विक्रमी संवत के बारे में जानकारी मिली थी। इससे पहले इसे कृत संवत अथवा मालवा संवत के नाम से भी जाना जाता था। 

कुछ लोग चंद्रगुप्त मौर्य और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम को एक समझते हुए भ्रमित हो जाते हैं। हालांकि दोनों में बड़ा अंतर है। चंद्रगुप्त मौर्य 326 ईसा पूर्व में मगध साम्राज्य के शासक बने थे और इसमें चाणक्य ने उनकी मदद की थी। वहीं चंद्रगुप्त विक्रमादित्य गुप्त वंश की तीसरी पीढ़ी के शासक थे। गुप्त वंश की स्थापना चंद्रगुप्त ने की थी और उनके उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त थे। उन्हें भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है। इसके बाद चंद्रगुप्त द्वितीय के हाथ इस वंश की सत्ता आई थी, जिसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। इस तरह चंद्रगुप्त द्वितीय को इतिहास के विद्यार्थी चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से भी जानते हैं।

जानिए क्यों हुई थी विक्रम संवत की शुरुआत

उन्होंने शकों को पराजित किया था और 57 ईसा पूर्व में इस विजय के उपलक्ष्य में विक्रम संवत का प्रारंभ किया था। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल को मध्य काल में भारत का स्वर्ण युग भी कहा जाता है। सिंधु नदी से लेकर बंगाल तक में उनका शासन था। इसके अलावा उनकी बेटी प्रभावती गुप्त दक्षिण में वाकटका साम्राज्य की महारानी थीं। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंचा था। चीनी यात्री फाहियान ने चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में दौरा किया था और उसने इस राज्य को शांत एवं समृद्ध बताया था।

कालिदास, वराहमिहिर जैसे विद्वान थे विक्रमादित्य के दरबार में

मेघदूत और अभिज्ञान शाकुंतलम जैसी अमर कृतियों के रचयिता कालिदास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के ही दरबारी कवि थे। उनके अलावा हरिसेन, वररुचि, वराहमिहिर जैसे विद्वान भी चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नौ रत्नों में शामिल थे। विक्रम संवत कैलेंडर चंद्र आधारित है। इसमें कुल 12 महीने होते हैं और एक साल में कुल 354 दिन माने गए हैं। हर महीना कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के तौर पर दो भागों में विभाजित रहा है। 

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