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CAA पर विरोध: दिल्ली हिंसा को रोकने में क्यों नाकाम रही दिल्ली पुलिस?

पिछले तीन दिनों में उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, यमुना विहार, बाबरपुर, खजूरी खास में लोगों की गाड़ियों, दुकानों और घरों में आग लगाई गई और पुलिस मूकदर्शक बनी रही। पिछले करीब दो दशक में यह सबसे...

CAA पर विरोध: दिल्ली हिंसा को रोकने में क्यों नाकाम रही दिल्ली पुलिस?
एचटी,नई दिल्ली। Wed, 26 Feb 2020 06:38 AM
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पिछले तीन दिनों में उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, यमुना विहार, बाबरपुर, खजूरी खास में लोगों की गाड़ियों, दुकानों और घरों में आग लगाई गई और पुलिस मूकदर्शक बनी रही। पिछले करीब दो दशक में यह सबसे बड़ा साम्प्रदायिक दंगा है, जिसमें अब तक करीब 13 लोगों की मौत हो गई है।

जानकारों की मानें तो दिल्ली में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में दिल्ली पुलिस की विफलता के पीछे कई कारण हैं, जैसे- हिंसक घटनाओं को डील करने में शीर्ष लोगों में अनुभव की कमी, नेतृत्व में विश्वास की कमी और विभाग की तरफ से लगातार स्थिति के आकलन में विफलता।

हिन्दुस्तान टाइम्स ने कई रिटायर्ड और सर्विंग ऑफिसर्स से बात की, जिन्होंने सीधे तौर पर मौजूदा दिल्ली पुलिस डीसीपी पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनमें ऐसी स्थिति के सामना करने का कोई अनुभव नहीं है। दिल्ली में 1984 सिख विरोधी दंगा, मंडल आयोग के वक्त भड़की हिंसा, एलके आडवाणी के रथ यात्रा के दौरान तनाव और 1992 में बाबरी ढांचा गिराए जाने के वक्त भड़की हिंसा जैसी स्थिति से सामना नहीं हुआ है।

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उन्होंने बताया कि ज्यादातर लोग जो इस स्थिति को संभाल रहे हैं वो हैं एसीपी और इंस्पेक्टर जिन्होंने अपने पूरे जीवन में ऐसा दंगा नहीं देखा है।

दिल्ली पुलिस के सीनियर लीडरशिप में पुलिस कमिश्न अमूल्य पटनायक (जिनका कार्यकाल इस महीने खत्म हो रहा है) ने खुद ज्यादातर वक्त स्पेशल यूनिट्स में बिताए हैं, जैसे- क्राइम ब्रांच, विजिलेंस और एडमिनिस्ट्रेशन। कई महीनों तक उनकी नेतृत्व क्षमता पर परख की जाती रही है।

दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में वकीलों की तरफ से पुलिसवालों पर हमले के बाद उन्हें पुलिस के जवानों का मनोबल बढ़ाना पड़ा था। इसके साथ ही, जेएनयू हिंसा में आरोप लगने के बाद कि पुलिस ने कुछ नहीं किया, उन्हें इन आरोपों पर बचाव करना पड़ा। इसके अलावा, उन्हें इस बात पर सफाई देनी पड़ी की क्यों नागरिकता कानून पर विरोध के दौरान दिल्ली पुलिस जामिया यूनिवर्सिटी में घुसकर छात्रों पर हमले किए। अब उन्हें इन सवालों का सामना करना पड़ेगा कि आखिर कैसे और क्यों उत्तर-पूर्व दिल्ली में स्थिति की गलत समीक्षा की और शांति बहाल करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।

1984 दंगे समेत कई दंगे जैसी स्थिति को संभालने वाले एक रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर ने कहा- “इन सभी घटनाओं में ऐसा लगता है कि कोई न कोई योजना, कार्रवाई, जवानों की तैनाती और न इलाके में भीड़ को लेकर समझ रही। क्यों नहीं दिल्ली पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के प्रभावित इलाकों में अब तक कर्फ्यू लगाया? इससे इससे जीवन और संपत्ति दोनों के नुकसान को बचाया जा सकता था।”

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