क्या ब्रेन ईटिंग अमीबा सच में खा जाता है इंसानों का दिमाग
ब्रेन ईटिंग अमीबा, जिसे नेग्लीरिया फाउलराए कहा जाता है, से केरल में 65 से अधिक मामले सामने आए हैं, जिसमें 18 मौतें हो चुकी हैं। यह अमीबा ताजे पानी में पाया जाता है और नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश...

ब्रेन ईटिंग अमीबा की वजह से जानलेवा बीमारी होती है.इससे संक्रमित होने के बाद इंसान का बचना बेहद मुश्किल हो जाता है.हालांकि, यह बीमारी संक्रामक नहीं है, यानी एक से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती है.एक इंसान के शरीर में औसतन 30 हजार अरब से भी ज्यादा कोशिकाएं होती हैं, वहीं, अबीमा एक ऐसा जीव होता है, जिसमें सिर्फ एक कोशिका होती है.इसी एक कोशिका के सहारे अमीबा अपना खाना ढूंढ़ता है, उसे खाता है, पचाता है और फिर अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकाल देता है.अक्सर जलाशयों में पाए जाने वाले अमीबा की एक प्रजाति ने इंसानों में सेहत को लेकर एक बड़ा डर पैदा कर दिया है.दरअसल, भारत के केरल राज्य में इस साल "ब्रेन ईटिंग अमीबा" के 65 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं और इसके चलते 18 लोगों की मौत हो चुकी है.इस अमीबा को वैज्ञानिक भाषा में "नेग्लीरिया फाउलराए" कहा जाता है.इसे ब्रेन ईटिंग अमीबा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दिमाग में संक्रमण कर, दिमाग के टिशू यानी ऊतकों को नष्ट कर सकता है. इंसानों में कैसे पहुंचता है यह अमीबाअमेरिका के "रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र" (सीडीसी) की वेबसाइट के मुताबिक, ब्रेन ईटिंग अमीबा ताजे पानी की झीलों, जलाशयों, नदियों, गर्म झरनों और मिट्टी में पनपता है.जिन स्विमिंग पूलों का ठीक ढंग से रखरखाव नहीं किया जाता, वहां भी इस अमीबा के पनपने का खतरा होता है.जिस पानी में यह अमीबा मौजूद होता है, उसमें नहाना बेहद खतरनाक होता है.दरअसल, नहाते समय यह अमीबा नाक के जरिए आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है और फिर दिमाग तक पहुंच सकता है.इसके चलते, इंसानों में होने वाली बीमारी को प्राइमरी अमीबिक मैनिंगोइंसेफेलाइटिस (पीएएम) कहा जाता है.यह स्थिति बेहद दुर्लभ लेकिन जानलेवा होती है.केरल में पिछले साल मई से लेकर जुलाई तक पीएएम के चार मामले सामने आए थे और चारों मामलों में पीड़ित बच्चों की मौत हो गई थी.इस साल सामने आए 67 मामलों में से 18 लोगों की मौत हो चुकी है.सीडीसी के मुताबिक, अमेरिका में 1962 से 2024 तक इसके 167 मामले सामने आए और उनमें से सिर्फ चार लोग ही जीवित बच सके. किन देशों में पाया जाता है यह अमीबाअमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की वेबसाइट पर पिछले साल इस अमीबा के बारे में एक अध्ययन छपा था.इसके मुताबिक, अंटार्कटिका को छोड़कर दुनिया के हर देश में इस अमीबा की मौजूदगी दर्ज की जा चुकी है.1965 से 2018 के बीच, दुनिया भर में इसके करीब 380 मामले ही रिपोर्ट किए गए.जाहिर है कि यह काफी दुर्लभ है लेकिन साथ ही खतरनाक भी.इस अध्ययन के मुताबिक, यह अमीबा इंसानों में तब प्रवेश करता है, जब इसका प्रजनन चक्र चल रहा होता है.इससे संक्रमित होने के बाद, लक्षण दिखने में एक से 14 दिन का वक्त लग सकता है.हालांकि, इस अमीबा से संक्रमित पानी को पीने से बीमारी नहीं फैलती क्योंकि उसके लिए पानी का नाक में जाना जरूरी होता है.इसके अलावा, यह बीमारी संक्रामक भी नहीं है, यानी एक से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती है.दिमाग में जाकर क्या करता है यह अमीबासीडीसी के मुताबिक, ब्रेन ईटिंग अमीबा आमतौर पर बैक्टीरिया खाता है, लेकिन जब यह अमीबा इंसानों में प्रवेश करता है तो यह उनके दिमाग को खाने के स्रोत की तरह इस्तेमाल करता है. कई अध्ययनों में बताया गया है कि यह अमीबा तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा संवाद के लिए छोड़े जाने वाले रसायनों के प्रति आकर्षित होता है.इसके चलते वह नाक में घुसने के बाद, ओलफैक्ट्री नर्व से होते हुए दिमाग के सामने वाले हिस्से में पहुंच जाता है.दिमाग में जाकर यह अमीबा दिमाग के ऊतकों को तो नष्ट करता है, साथ ही शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी हमला करता है.दरअसल, दिमाग में संक्रमण होने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली एक मजबूत प्रतिक्रिया देती है.इस प्रतिक्रिया से यह अमीबा तो नहीं मरता है लेकिन दिमाग में गंभीर सूजन हो जाती है.इसके शुरुआती लक्षणों में उल्टी, बुखार, सिरदर्द और सुस्ती आदि शामिल हैं.बीमारी के गंभीर होने पर भ्रमित होने, गर्दन अकड़ने, रोशनी से डर लगने और दौरे आने जैसे लक्षण दिखने लगते हैं.सीडीसी के मुताबिक, इसके लक्षण दिखने के एक से 18 दिन के भीतर ज्यादातर लोगों की मौत हो जाती है.आमतौर पर पीड़ित पहले कोमा में जाता है और फिर उसकी मौत होती है.




