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बंगाल के गवर्नर ने अटल-कलाम से की ममता की तुलना, BJP ने कहा-किताब तो हिटलर और मुसोलिनी ने भी लिखी थी

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तारीफ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर भारी पड़ती नजर आ रही है। भाजपा ने इसके लिए राज्यपाल की आलोचना की है। उसने कहा है कि किताबें तो हिटलर-मुसोलिनी ने भी लिखी थी।

बंगाल के गवर्नर ने अटल-कलाम से की ममता की तुलना, BJP ने कहा-किताब तो हिटलर और मुसोलिनी ने भी लिखी थी
Deepakहिंदुस्तान टाइम्स,कोलकाताTue, 07 Feb 2023 08:05 PM
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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तारीफ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर भारी पड़ती नजर आ रही है। भाजपा ने इसके लिए राज्यपाल सीवी आनंद की आलोचना की है। उसने कहा है कि किताबें तो हिटलर और मुसोलिनी ने भी लिखी थीं। असल में ममता बनर्जी ने सोमवार को कोलकाता के सेंट जेवियर्स यूनिवर्सिटी से डी लिट की ऑनरेरी उपाधि ग्रहण की। राज्यपाल सीवी आनंद ने उन्हें अपने हाथ से डिग्री प्रदान की। इस मौके पर संबोधन के दौरान राज्यपाल ने ममता बनर्जी की तुलना पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णनन, डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी के साथ-साथ पूर्व ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल और अंग्रेजी कवि जॉन मिल्टन तक से कर डाली।

गवर्नर ने कही थी यह बात
बोस ने अपने संबोधन के दौरान कहा कि हम सर्वपल्ली राधाकृष्णनन को याद करते हैं। ऑक्सफोर्ड के शानदार प्रोफेसर एक विचारक और लेखक थे। हमारे पास एपीजे अब्दुल कलाम जैसी शख्सियत है, जिसने युवाओं के लिए विंग्स ऑफ फायर लिखी और अपने लेखन से उन्हें प्रेरित किया। हमारे पास अटल बिहारी वाजपेयी थे, जिनकी टीम में ममता बनर्जी शामिल थीं। यह सभी सियासत में होने के साथ-साथ लेखक भी थे। पश्चिम बंगाल का निवासी होने के नाते यह हमारे लिए गर्व की बात है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इसी शानदार परिपाटी का पालन कर रही हैं। बता दें कि ममता बनर्जी ने 134 किताबें लिखी हैं, लेकिन उनके आलोचकों का कहना है कि उनका लिखा हुआ छापने लायक तक नहीं है।

भाजपा की तीखी प्रतिक्रिया
वहीं, राज्यपाल के इस भाषण पर भाजपा की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आई है। बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने ट्वीट किया कि सेंट जेवियर्स यूनिवर्सिटी ने मुख्यमंत्री को डी लिट की उपाधि से नवाजा। इस मौके पर राज्यपाल इस तरह से बोल रहे थे, मानों बंगाल विधानसभा के बजट सेशन के भाषण की तैयारी कर रहे होंगे। सिर्फ इतना ही नहीं, अधिकारी ने एक कोलाज भी पोस्ट किया, जिसमें अडोल्फ हिटलर, मुसोलिनी, सद्दाम हुसन और माओत्से तुंग की लिखी किताबें हैं। गौरतलब है कि यह सभी मानवाधिकार हनन के दोषी माने जाते हैं। इसके आगे अधिकारी ने लिखा कि मैं राज्यपाल की बातों से आंशिक तौर पर सहमत हूं। उन्होंने तंज करते हुए लिखा कि ममता बनर्जी विंस्टन चर्चिल की तरह हो सकती हैं, जो कि 1943 के बंगाल अकाल के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। यह एक किस्म का नरसंहार था, जिसमें 40 लाख से ज्यादा लोगों ने भूख और कुपोषण के चलते प्राण त्याग दिए थे।

सीपीआई-एम ने भी साधा निशाना
सीपीआई-एम ने भी ममता बनर्जी के ऊपर निशाना साधा। सीपीआई-एम के सेंट्रल कमेटी सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने कहा कि कई साल पहले दावा किया था कि उन्होंने एक विदेशी यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली है। बाद में यह दावा झूठा साबित हुआ। अब एक राज्यपाल को उनकी तारीफ करते देखना अच्छा लग रहा है। उन्होंने आगे सवाल भी उठाया कि क्या वह यह सम्मान पाने की हकदार हैं? हालांकि मंगलवार शाम छह बजे तक इस पर राज भवन की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई थी। हिंदुस्तान टाइम्स ने राज्यपाल की प्रिंसिपल सेक्रेट्री नंदिनी चक्रवर्ती और स्पेशल सेक्रेट्री देबाशीष से संपर्क करने की कोशिश की। हालांकि राजभवन स्टाफ की तरफ से कहा गया कि दोनों मीटिंग में व्यस्त हैं। 

टीएमसी का पलटवार
वहीं, टीएमसी ने भी इन आरोपों पर पलटवार किया है। टीएमसी के राज्यसभा सांसद शांतनु सेन ने आरोप लगाया कि भाजपा इस कदर ईर्ष्यालु हो चुकी है कि वह राज्यपाल और मुख्यमंत्री को बंगाल की बेहतरी के लिए एक साथ काम करते हुए देख नहीं पा रही है। सेन ने कहा कि जगदीप धनखड़ के बंगाल का राज्यपाल रहने के दौरान भाजपा ने राजभवन को अपने पार्टी ऑफिस की तरह इस्तेमाल किया। लेकिन वर्तमान राज्यपाल भाजपा की इच्छा के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं। 

पहले भी हुए हैं विवाद
गौरतलब है कि ममता बनर्जी की 2018 में भी आलोचना हुई थी, जब उन्हें कलकत्ता यूनिवर्सिटी ने डी लिट की उपाधि से नवाजा था। इसी तरह मई 2022 में, लेखक और शोधकर्ता रत्न राशिद बंदोपाध्याय ने रवींद्रनाथ टैगोर की 161 वीं जयंती के अवसर पर बनर्जी को एक नए पुरस्कार से सम्मानित करने के सांस्कृतिक संस्थान के फैसले का विरोध करते हुए पश्चिमबंगा बांग्ला अकादमी का प्रतिष्ठित पुरस्कार लौटा दिया था। इसी तरह के एक कदम में साहित्य अकादमी (पूर्वी क्षेत्र) की आम परिषद के सदस्य अनादिरंजन बिस्वास ने राष्ट्रीय संस्थान के बंगाली सलाहकार बोर्ड से इस्तीफा दे दिया था।

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