बिहार चुनाव में नए राजनीतिक समीकरण तय करेंगे चुनावी परिणाम
बिहार विधानसभा के पहले चरण से लिए प्रचार शुरू हो गया है। चुनाव में किस्मत आजमा रही सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवार मैदान में उतर चुके हैं। पर सभी सियासी पार्टियां नफा नुकसान का हिसाब लगाने में जुटी...
बिहार विधानसभा के पहले चरण से लिए प्रचार शुरू हो गया है। चुनाव में किस्मत आजमा रही सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवार मैदान में उतर चुके हैं। पर सभी सियासी पार्टियां नफा नुकसान का हिसाब लगाने में जुटी हैं। हर कोई यह जानना चाहता है जेडीयू के अलग होने से राजद- कांग्रेस को फायदा होता या नुकसान। इसी तरह भाजपा को कितना लाभ मिलता है।
चुनावी आंकडे बताते हैं कि वर्ष 2015 के चुनाव में राजद-कांग्रेस को जेडीयू के साथ चुनाव लड़ने का बहुत फायदा मिला था। हालांकि, 2010 के मुकाबले जेडीयू के प्रदर्शन कमजोर रहा। इसकी एक बड़ी वजह यह भी थी कि जेडीयू ने 2015 में 2010 के मुकाबले कम सीट पर चुनाव लड़ा था। जेडीयू के साथ आने से भाजपा विरोधी वोट एकजुट हुआ और राजद की सीट 22 से बढ़कर 80 और कांग्रेस की सीट 2010 की 4 के मुकाबले 27 हो गई।
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महागठबंधन के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि जेडीयू के साथ आने से राजद-कांग्रेस को फायदा हुआ। जेडीयू के पास अपना वोट है, यह वोट राजद-कांग्रेस उम्मीदवारों को ट्रांसफर हुआ। इसके साथ मुसलिम और दलित ने भी इन पार्टियों को वोट किया। क्योंकि, 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए बयान से राजद-कांग्रेस और जेडीयू गठबंधन का फायदा मिला।
कांग्रेस-राजद को भी साथ चुनाव लड़ने एक-दूसरे को फायदा मिलता है। क्योंकि, 2010 में दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थी। कांग्रेस ने सभी 243 सीट पर अपनी किस्मत आजमाई, पर वह सिर्फ चार सीट जीत पाई। वर्ष 2015 में जेडीयू के अलग होने से भाजपा को सीधा नुकसान हुआ। पार्टी सिर्फ 53 सीट जीत पाई, जबकि 2010 के चुनाव में 91 सीट मिली थी।
रणनीतिकार मानते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू, भाजपा और लोजपा एक साथ चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। राजद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस को एक सिर्फ एक सीट मिली। इन चुनाव में लोजपा भी जेडीयू-भाजपा गठबंधन से अलग है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार चुनाव के नए समीकरण कितना-फायदा नुकसान पहुंचाते हैं।