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Maharashtra polls : गठबंधन में शिव सेना ने आखिर 'छोटे भाई' की भूमिका क्यों स्वीकारी

Maharashtra Elections 2019 : महाराष्ट्र में सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिव सेना ने घोषणा की थी कि आगामी विधानसभा चुनाव वे मिलकर लड़ेंगे। इसी कड़ी में मंगलवार को भारतीय जनता...

Maharashtra polls : गठबंधन में शिव सेना ने आखिर 'छोटे भाई' की भूमिका क्यों स्वीकारी
हिटी,नई दिल्ली Wed, 02 Oct 2019 04:15 PM
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Maharashtra Elections 2019 : महाराष्ट्र में सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिव सेना ने घोषणा की थी कि आगामी विधानसभा चुनाव वे मिलकर लड़ेंगे। इसी कड़ी में मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी ने 125 सीटों पर उम्मीदवारों की सूची जारी की। जबकि, उसकी सहयोगी शिव सेना ने 68 प्रत्याशियों की लिस्ट पहले ही जारी कर दी थी। बता दें कि राज्य में विधानसभा की 288 सीटों के  लिए चुनाव 21 अक्तूबर को मतदान  होगा। और 24 अक्तूबर को परिणामों  की घोषणा होगी।    

सीट बंटवारे को लेकर शुरुआती दौर में शिव सेना के कड़े तेवर दिखाने के बावजूद अब यह साफ हो गया है कि गठबंधन में भाजपा बड़े भाई की भूमिका में होगी। आपको याद दिला दें कि सीट बंटवारे पर बात नहीं बनने की वजह से दोनों दलों ने पिछला विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ा था। बड़ा सवाल यह है कि

मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर कायम रहते हुए भी शिव सेना 'छोटे भाई' की भूमिका क्यों स्वीकारी?  इसके पीछे चार मुख्य कारण हो सकते हैं।

बदली फिज़ां

शिव सेना को यह लगने लगा है कि पिछले 5 साल में भाजपा की ताकत और आकार में बड़ा बदलाव हुआ है। भाजपा अब केवल शहरी क्षेत्रों तक ही  नहीं सिमटी है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी उसने मजबूत पकड़ बनाई है। यही नहीं, शिव सेना के सामने पिछली विधानसभा और निगम चुनावों में प्रदर्शन के आंकड़े भी हैं, जिनमें वह अपने दम पर अकेली मैदान में उतरी तो थी पर मजबूत प्रदर्शन नहीं कर पाई।

एकजुट विपक्ष

2014 के विधानसभा चुनावों में जब भाजपा और शिव सेना ने अलग-अलग लड़ने का फैसला किया था, तब विपक्ष बंटा हुआ था। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच भी चुनावों से पहले कोई गठबंधन नहीं हो पाया था। दोनों ही पार्टियों को पता है कि इस बार उनके लिए करो या मरो वाली स्थिति है। इसलिए कांग्रेस और एनसीपी विधानसभा चुनावों में साथ-साथ उतरी हैं। एसे में शिव सेना अकेले चुनाव में उतरने का जोखिम नहीं उठा सकती थी।

परिवार की साख

उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे इस बार खुद भी चुनावी समर में उतरने की घोषणा कर चुके हैं। सीधे चुनावी अखाड़े में कूदने वाले आदित्य ठाकरे परिवार के पहले सदस्य होंगे। एसे में बेहतर प्रदर्शन के जरिए शिव सेना दुनिया को यह संदेश देना चाहेगी कि युवा नेता आदित्य अब परिपक्व राजनीतिज्ञ हो चुके हैं, और अपने  बूते  पार्टी को  आगे  ले  जाने में सक्षम हैं। इसके लिए भाजपा का साथ बेहद जरूरी है।

ऊंचा मनोबल

लगातार प्रदेश भाजपा के नेताओं के निशाने पर रहने के बावजूद शिव सेना अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रखना चाहती है। शिव सेना के कम सीटों पर चुनाव  लड़ने के  संकेत से  पार्टी  कार्यकर्ता खुश नहीं हैं।  महाराष्ट्र में  बड़े  भाई की भूमिका छिनने से कार्यकर्ताओं में मायूसी है। पार्टी इसके बावजूद कार्यकर्ताओं तक यह संदेश पहुंचाना चाहती है कि दोनों दल चाहे  कितनी भी  सीटों  पर लड़ रहे  हों, आखिरकार आदित्य ठाकरे को भी मुख्यमंत्री पद मिलेगा। और यह बड़ी वजह है कि शिव सैनिकों को बेहतर परिणाम के लिए जी-जान से जुट जाना चाहिए। ताकि, अपने हिस्से की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर शिव सेना कब्जा जमा सके।

 

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