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Ayodhya Verdict: देश का सबसे बड़ा मसला SC ने 42 मिनट में सुलझाया, जानें किसे क्या मिला

घड़ी में जैसे ही सुबह के 10:30 बजे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सबसे बड़े फैसले पर संविधान पीठ का आदेश पढ़ना शुरू कर दिया। सालों से चले आ रहे इस कानूनी विवाद पर फैसला सुनाने के लिए जस्टिस गोगोई ने...

Ayodhya Verdict: देश का सबसे बड़ा मसला SC ने 42 मिनट में सुलझाया, जानें किसे क्या मिला
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 09 Nov 2019 06:19 PM
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घड़ी में जैसे ही सुबह के 10:30 बजे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सबसे बड़े फैसले पर संविधान पीठ का आदेश पढ़ना शुरू कर दिया। सालों से चले आ रहे इस कानूनी विवाद पर फैसला सुनाने के लिए जस्टिस गोगोई ने आधे घंटे का समय मांगा और पूरा निर्णय 42 मिनट में पढ़ डाला। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हम सर्वसम्मति से फैसला सुना रहे हैं। इस अदालत को धर्म और श्रद्धालुओं की आस्था को स्वीकार करना चाहिए। अदालत को संतुलन बनाए रखना चाहिए। कोर्ट के दस्तावेजों के मुताबिक, इस विवाद की शुरुआत 1858 से हुई थी। 28 नवंबर 1858 को पंजाब का एक सिख युवक कुछ लोगों के साथ मस्जिद परिसर में घुस गया और वहां जगह-जगह हिंदू धार्मिक झंडा फहरा दिया था। हालांकि इस मामले को 1885 में पहली बार न्यायालय में उठाया गया था। फैजाबाद की जिला अदालत में महंत रघुबर दास ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की अर्जी लगाई, जिसे ठुकरा दिया गया था।

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जानें कोर्ट में कब क्या हुआ
10.30 बजे : फैसले की कॉपी पर संविधान पीठ के पांचों न्यायाधीशों ने हस्ताक्षर किए
10.31 : शिया वक्फ बोर्ड की जमीन पर नियंत्रण की याचिका खारिज कर दी गई (सर्वसम्मति से) 
10.32 : मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला सुनाना शुरू किया, बोले- करीब आधा घंटा लगेगा
10.38 : जस्टिस गोगोई ने कहा, धार्मिक तथ्यों नहीं, बल्कि एएसआई की रिपोर्ट को ध्यान में रखकर कोर्ट फैसला ले रहा है, मस्जिद कब बनी स्पष्ट नहीं
10.39 : निर्मोही अखाड़े का दावा भी खारिज, कहा-निर्मोही अखाड़ा शबैत नहीं यानी उसे प्रबंधन का अधिकार नहीं 
10.41 : जस्टिस गोगोई ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं।
10.44 : पुरातत्व विभाग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसने पाया कि नीचे हिंदू मंदिर पाया गया, गुंबद के नीचे वो समतल की स्थिति में था, हिंदू अयोध्या को राम का जन्मस्थान मानते हैं।
10.45 : एएसआई रिपोर्ट के मुताबिक, खाली जमीन पर मस्जिद नहीं बनी थी। एएसआई यह नहीं बताया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई, मुस्लिम गवाहों ने भी माना, दोनों पक्ष पूजा करते थे 
10.54 : यह सबूत मिले हैं कि राम चबूतरा और सीता रसोई पर हिंदू अंग्रेजों के जमाने से पहले भी पूजा करते थे। रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्य बताते हैं कि विवादित जमीन का बाहरी हिस्सा हिंदुओं के अधीन था
10.55 : मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि खाली जगह पर मस्जिद नहीं बनी थी, सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए शांतिपूर्ण कब्जा दिखाना असंभव है 
10.59 : 1856-57 से पहले आंतरिक अहाते पर हिंदुओं पर कोई रोक नहीं थी, संघर्ष की वजह से वहां शांतिपूर्ण पूजा के लिए रेलिंग बनाई गई 
11.00 : मुस्लिमों का बाहरी अहाते पर कोई अधिकार नहीं रहा। सुन्नी वक्फ बोर्ड यह सबूत नहीं दे पाया कि यहां उसके एकमात्र अधिकार है
11.05 : मुस्लिमों को मस्जिद के लिए दूसरी जगह मिलेगी। संविधान कभी धर्म से भेदभाव नहीं करता 
11.07 : केंद्र सरकार तीन महीने में योजना तैयार करेगी, बोर्ड ऑफ ट्रस्टी का गठन होगा। सुन्नी वक्फ बोर्ड को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा अहम जगह पर पांच एकड़ जमीन दी जाए। फिलहाल अधिकृत जमीन का कब्जा रिसीवर के पास रहेगा
11.11 : विवादित ढांचे की जमीन हिंदुओं को दी जाए। मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाएगी सरकार। पांच जजों ने एकमत से दिया फैसला
11: 12 : मुख्य न्यायाधीश ने फैसला सुनाने के बाद सभी पक्षों का धन्यवाद किया

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चार टाइटल सूट में जानें किसे क्या मिला

1. गोपाल सिंह विशारद
मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखे जाने के बाद गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में सिविल अदालत में मुकदमा दायर किया। उन्होंने मांग की थी कि भगवान राम उसी जगह विराजमान रहें और हिन्दुओं को पूजा अर्चना का अधिकार दिया जाए। अदालत ने उनकी मांग को उचित ठहराते हुए गोपाल सिंह विशारद को मंदिर में पूजा करने का अधिकार दे दिया।

2. निर्मोही अखाड़ा
अदालत ने निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया। अखाड़े ने कहा था कि विवादित भूमि का आंतरिक और बाहरी अहाता भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में मान्य है। हम रामलला के सेवायत हैं। यह हमारे अधिकार में सदियों से रहा है। ऐसे में हमें ही रामलला के मंदिर के पुनर्निर्माण, रखरखाव और सेवा का अधिकार मिलना चाहिए। अदालत ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि निर्मोही अखाड़ा राम लला की मूर्ति का उपासक या अनुयायी नहीं है। उसे सेवादार का भी अधिकार नहीं है। हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलों में माना था कि निर्मोही अखाड़ा वहां का सेवादार रहा है।

3. सुन्नी वक्फ बोर्ड
सुन्नी वक्फ बोर्ड और तमाम मुस्लिम पक्षकारों की मांग थी कि विवादित जगह पर मस्जिद थी और वहीं रहनी चाहिए। अगर मंदिर को जगह दी भी गई तो उन्हें पूरी तरह से बाहर नहीं किया जा सकता है। अदालत ने उनकी दलील स्वीकार नहीं की और पूरी विवादित जमीन रामलला विराजमान को देने का फैसला सुनाया। हालांकि, मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया जहां मस्जिद बनाई जाएगी।

4.रामलला विराजमान
यह साल 1989 में दाखिल किया गया और इसने पूरे केस का परिदृश्य बदल दिया। यह सूट रामलला विराजमान के नाम से है। इसमें कहा गया है कि रामलला शिशु के रूप में विराजमान है और उनके अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है। सर्वोच्च अदालत ने रामलला को कानूनी व्यक्ति मानते हुए उन्हें जमीन का मालिकाना हक देने का फैसला सुनाया।


फैसले के चार प्रमुख आधार
1. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट से साफ है कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी। खुदाई में मस्जिद के नीचे विशाल संरचनाएं मिलीं हैं, उनमें जो कलाकृतियां पाई गईं उससे पता चलता है कि वह इस्लामिक ढांचा नही था।
2. मुस्लिम पक्ष ने दावा किया था कि विवादित स्थल पर 1934 से 1949 तक नमाज पढ़ी जाती थी। हालांकि, संविधान पीठ ने उनके इस दावे को नहीं माना। वहीं, हिंदू पक्ष यह साबित करने में कामयाब रहा कि बाहरी चबूतरे पर लगातार हिंदुओं का कब्जा था और वे वहां पूजा किया करते थे।
3. अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया।  हिंदू मुख्य गुंबद को ही राम जन्म स्थान मनाते हैं। ऐतिहासिक ग्रंथों के विवरण से चबूतरा, सीता रसोई, भंडारे से भी हिंदू पक्ष के दावे की पुष्टि होती है। ऐतिहासिक ग्रंथ में स्कंद पुराण, पद्म पुराण का जिक्र किया गया था।
4.शिया बनाम सुन्नी केस में शिया वक्फ बोर्ड की अपील खारिज करते हुए अदालतने कहा कि मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं पड़ता। 22 दिसंबर  1949 की रात मस्जिद में मूर्ति रखी गई। एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने। नमाज पढ़ने की जगह को हम मस्जिद मानने से मना नहीं कर सकते। जज ने कहा कि जगह सरकारी जमीन है।
 

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