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अयोध्या विवाद: मुस्लिम पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट के लिखित नोट उसके रिकॉर्ड में रखने की इजाजत

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड सहित मुस्लिम पक्षकारों को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में अपने लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति दे दी। मुस्लिम पक्षकारों ने इसमें कहा है कि...

अयोध्या विवाद: मुस्लिम पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट के लिखित नोट उसके रिकॉर्ड में रखने की इजाजत
लाइव हिन्दुस्तान टीम ,नई दिल्लीMon, 21 Oct 2019 02:28 PM
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उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड सहित मुस्लिम पक्षकारों को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में अपने लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति दे दी। मुस्लिम पक्षकारों ने इसमें कहा है कि शीर्ष अदालत का निर्णय देश की भावी राज्य व्यवस्था पर असर डालेगा। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ के समक्ष मुस्लिम पक्षकारों के एक वकील ने कहा कि उन्हें राहत में बदलाव के बारे में लिखित नोट रिकॉर्ड पर लाने की अनुमति दी जाये ताकि इस मामले की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ इस पर विचार कर सके।

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने छह अगस्त से इस मामले में 40 दिन सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को कहा था कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा। इस वकील ने यह भी कहा कि विभिन्न पक्षकार और शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने लिखित नोट सीलबंद लिफाफे में दाखिल करने पर आपत्ति जताई है। मुस्लिम पक्षकारों के वकील ने कहा, ''हमने अब रविवार को सभी पक्षकारों को अपने लिखित नोट भेज दिए हैं। साथ ही उन्होंने अनुरोध किया कि रजिस्ट्री को उनके रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया जाये।"

हालांकि, पीठ ने इस लिखित नोट के विवरण के बारे में कहा कि सीलबंद लिफाफे में दाखिल यह नोट पहले मीडिया के एक वर्ग में खबर बन चुका है। संविधान पीठ के समक्ष लिखित नोट दाखिल करने वाले मुस्लिम पक्षकारों ने बाद में आम जनता के लिये एक बयान जारी किया था। मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन द्वारा तैयार किये गये इस नोट में कहा गया है, ''इस मामले में न्यायालय के समक्ष पक्षकार मुस्लिम पक्ष यह कहना चाहता है कि इस न्यायालय का निर्णय चाहें जो भी हो, उसका भावी पीढ़ी पर असर होगा। इसका देश की राज्य व्यवस्था पर असर पड़ेगा।"

इसमें कहा गया है कि न्यायालय का फैसला इस देश के उन करोड़ों नागरिकों और 26 जनवरी, 1950 को भारत को लोकतंत्रिक राष्ट्र घोषित किये जाने के बाद इसके सांविधानिक मूल्यों को अपनाने और उसमें विश्वास रखने वालों के दिमाग पर असर डाल सकता है। इसमे यह भी कहा गया है कि शीर्ष अदालत के निर्णय के दूरगामी असर होंगे, इसलिए न्यायालय को अपने ऐतिहासिक फैसले में इसके परिणामों पर विचार करते हुये राहत में ऐसा बदलाव करना चाहिए जो हमारे सांविधानिक मूल्यों में परिलक्षित हो।

हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों ने शनिवार को शीर्ष अदालत में अपने अपने लिखित नोट दाखिल किये थे। राम लला विचारमान के वकील ने जोर देकर कहा है कि इस विवादित स्थल पर हिन्दू आदिकाल से पूजा अर्चना कर रहे हैं और भगवान राम के जन्म स्थान के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला- के बीच बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी। संविधान पीठ ने सभी पक्षकारों से कहा था कि वे इस विवाद में मांगी गयी राहत में बदलाव करने संबंधी लिखित नोट तीन दिन के भीतर दाखिल करें।

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